
क्या आप जानते हैं कि इंसानों की तरह ही दूसरे जीवों को भी कैंसर होता है। लेकिन क्या उनके आकार और कैंसर के बीच भी कोई सम्बन्ध होता है। लम्बे समय से वैज्ञानिक यही मानते रहे कि किसी जानवर के आकार और कैंसर के जोखिम के बीच कोई संबंध नहीं है। लेकिन एक नए अध्ययन में दशकों पुरानी इस धारणा को चुनौती दी गई है।
इस बारे में किए एक नए अध्ययन से पता चला है हाथी, जिराफ और अजगर जैसे बड़े जानवरों को चूहे, चमगादड़ और मेंढक जैसे छोटे जानवरों की तुलना में अधिक कैंसर होता है। इसके साथ ही पशु जगत में कैंसर को लेकर 45 वर्षों से चली आ रही धारणा पलट गई है।
यह नया अध्ययन रीडिंग विश्वविद्यालय, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। इस अध्ययन में उन्होंने उभयचरों, पक्षियों, स्तनधारियों और सरीसृपों की 263 प्रजातियों के कैंसर संबंधी आंकड़ों का की जांच की है।
यह निष्कर्ष "पेटो पैराडॉक्स" को चुनौती देते हैं, यह 1977 में किए अवलोकनों पर आधारित अवधारणा है, जिसमें कहा गया है कि किसी जानवर के आकार का उसके कैंसर के जोखिम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
इस अध्ययन के नतीजे जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पीएनएएस) में प्रकाशित हुए हैं।
बता दें कि "पेटो पैराडॉक्स" कैंसर और जानवरों के आकार के बीच संबंधों को उजागर करता है। इस अवधारणा के मुताबिक ज्यादा कोशिकाएं होने के बावजूद हाथी और व्हेल जैसे बड़े जानवरों में छोटे जानवरों की तुलना में कैंसर की दर उतनी नहीं होती। इस पैराडॉक्स के मुताबिक ज्यादा कोशिकाएं होने के बावजूद इन बड़े जीवों के पास अपने आप को कैंसर से बचाने के कुछ खास तरीके होते हैं।
उदाहरण के लिए, हाथियों में टीपी53 नामक जीन की अतिरिक्त प्रतियां होती हैं, जो क्षतिग्रस्त डीएनए को ठीक करने और कैंसर को शुरू होने से पहले ही रोकने में मदद करती हैं।
वहीं इस पैराडॉक्स के उलट नए अध्ययन के मुताबिक बड़े जानवरों में ट्यूमर का जोखिम और प्रसार अधिक होता है, जो हानिकारक और हानिरहित दोनों तरह के होते हैं। शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि हाथी जैसी प्रजातियां जो तेजी से बड़ी होती गईं, उनमें कैंसर के खिलाफ बेहतर प्राकृतिक सुरक्षा विकसित हुई।
रीडिंग विश्वविद्यालय और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर क्रिस वेंडीटी ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “हर कोई इस मिथक को जानता है कि हाथी चूहों से डरते हैं, लेकिन जब कैंसर की बात आती है, तो चूहों को इसकी चिंता कम होती है। हमारे अध्ययन से पता चला है कि हाथी जैसे बड़े जानवरों में कैंसर की दर अधिक होती है, क्योंकि उनमें इतनी ज्यादा कोशिकाएं होती हैं जिन्हें नुकसान हो सकता है।“
अध्ययन में अपनी तरह के सबसे बड़े डेटासेट का विश्लेषण किया गया है। वैज्ञानिकों ने 31 उभयचरों, 79 पक्षियों, 90 स्तनधारियों और 63 सरीसृपों के कैंसर संबंधी रिकॉर्ड का अध्ययन किया है। उन्होंने यह समझने के लिए उन्नत तरीकों का इस्तेमाल किया है कि कैंसर की दर शरीर के आकार से कैसे जुड़ी है और समय के साथ जानवरों में कैसे बदलाव आए हैं।
क्या है कैंसर और आकार के बीच संबंध
वैज्ञानिकों ने पक्षियों और स्तनधारियों का अध्ययन उभयचरों और सरीसृपों से अलग किया है। बता दें कि पक्षी और स्तनधारी एक निश्चित आकार के बाद बढ़ना बंद कर देते हैं। वहीं उभयचर और सरीसृप जीवन भर बढ़ सकते हैं। भले ही इन जीवों में विकास का पैटर्न अलग था, लेकिन इसके बावजूद दोनों समूहों में, बड़े जानवरों में कैंसर की दर अधिक थी।
हालांकि साथ ही अध्ययन से पता चला है कि हाथी जैसे जानवर जो समय के साथ तेजी से बड़े आकार में विकसित हुए उनमें कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को नियंत्रित करने और ट्यूमर को रोकने के लिए बेहतर तंत्र विकसित हुए हैं। उदाहरण के लिए, हाथी को कैंसर का खतरा बाघ जितना ही होता है, भले ही वह उससे आकार में दस गुना बड़ा होता है।
रीडिंग विश्वविद्यालय और अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता डॉक्टर जोआना बेकर ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, " जैसे-जैसे जानवर बड़े होते गए, उनमें कैंसर के विरुद्ध मजबूत प्रतिरक्षा भी विकसित हो गई।" उनके मुताबिक हाथियों को अपने आकार के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है, उनमें कैंसर को नियंत्रित करने के लिए विशेष जैविक उपकरण भी विकसित हुए। यह इस बात का एक बेहतरीन उदाहरण है कि किस तरह प्रकृति कठिन समस्याओं का समाधान करती है।
आधुनिक चिकित्सा के अनुसार यह समझना मुश्किल है कि आकार-कैंसर के इस पैटर्न में मनुष्य कहां फिट बैठते हैं। शोध में एक सामान्य प्रवृत्ति का पता चला है, जहां बड़ी प्रजातियों में आमतौर पर कैंसर की दर अधिक होती है। वहीं साथ ही यह भी सामने आया है कि कैसे कुछ प्रजातियों ने बड़े होने के साथ कैंसर के खिलाफ बेहतर प्रतिरक्षा भी विकसित की है।
अध्ययन से पता चलता है कि बड़े जानवरों ने कोशिका वृद्धि को नियंत्रित करने और समय के विशिष्ट बिंदुओं पर कैंसर को रोकने के बेहतर तरीके विकसित किए हैं। इससे वैज्ञानिकों को कैंसर को बेहतर तरीके से समझने और मनुष्यों में इसके इलाज के नए तरीके खोजने में मदद मिल सकती है।
आमतौर पर बड़े डील-डौल वाली प्रजातियों को छोटे जानवरों की तुलना में ज्यादा कैंसर होता है। लेकिन वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसी भी प्रजातियों की पहचान की है जिन्हें उनके आकार के हिसाब से अपेक्षा से कहीं ज्यादा या कम कैंसर होता है।
उदाहरण के लिए आम 'बजरी', जिसका वजन 30 ग्राम से भी कम होता है, उसमें कैंसर की दर उसके आकार के लिहाज से 40 गुना अधिक होती है। दूसरी ओर, तिल-चूहे (नेकेड मोल रैट) में कैंसर का कभी कोई रिकॉर्ड नहीं मिला है।
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी से जुड़े अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर जॉर्ज बटलर ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "यह समझना कि कौन से जानवर कैंसर का सामना करने में स्वाभाविक रूप बेहतर हैं, शोध के नए रास्ते खोलता है।“
“इन सफल प्रजातियों का अध्ययन करके, हम बेहतर ढंग से समझ सकते हैं कि कैंसर कैसे विकसित होता है। साथ ही इससे बीमारी से लड़ने के नए तरीके और भविष्य में सफल उपचार खोजने में मदद मिल सकती है।“