उम्र बढ़ने पर चमगादड़ों में भी घट जाती है सुनने की क्षमता, शोध में हुआ खुलासा

सुनने की क्षमता में गिरावट की यह दर करीब एक डेसिबल प्रति वर्ष थी। देखा जाए तो गिरावट की दर हम इंसानों जितनी ही है
फ्रूट बेट; फोटो: पिक्साबे
फ्रूट बेट; फोटो: पिक्साबे
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क्या आप जानते हैं कि हम इंसानों की तरह ही उम्र बढ़ने के साथ चमगादड़ों में सुनने की क्षमता घट जाती है। बात हैरान कर सकती है लेकिन सच है। इससे पहले यह समझा जाता था कि चमगादड़ों में बढ़ती उम्र का सुनने की क्षमता पर प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि यह जीव अपनी आंखों से ज्यादा सुनने की क्षमता पर निर्भर करते है, जो उन्हें ‘इकोलोकेशन’ में मदद करती है।

चमगादड़ ऐसे जीव हैं जिन्हें कुछ लोग पसंद करते हैं और कुछ नापसंद। लेकिन इकोसिस्टम के लिए यह भी अत्यंत जरूरी हैं इससे इंकार नहीं किया जा सकता। हाल के वर्षों में जिस तरह से कोविड-19 बीमारी फैली है और इसका एक सिरा इन जीवों से भी जुड़ा है। यह जीव भी वैज्ञानिकों के लिए कौतूहल का विषय बन गए हैं। गौरतलब है कि इन जीवों को अपनी ‘सुपर इम्युनिटी’ के लिए भी जाना जाता है। यह भी एक वजह है कि वैज्ञानिक इस जीव को ज्यादा से ज्यादा समझने की कोशिश कर रहे हैं।

इजराइली वैज्ञानिकों द्वारा की गई इस रिसर्च के मुताबिक यह सही है कि चमगादड़ बुढ़ापे में अपनी सुनने की क्षमता खो देते हैं। हालांकि रिसर्च में यह भी सामने आया है कि यह जीव अपनी श्रवण शक्ति को होने वाले इस नुकसान को सीमित करने के लिए कुछ जन्मजात क्षमता विकसित कर सकते हैं। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल लाइफ साइंस एलायंस में प्रकाशित हुए हैं।

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि चूंकि यह जीव अत्यधिक शोर वाली कॉलोनियों में बसेरा करते हैं, जो उनके सुनने की क्षमता को जल्द नुकसान पहुंचाती हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि यह जीव 100 डेसिबल से अधिक शोर के संपर्क में रहते हैं, जो मोटे तौर पर मोटरसाइकिल या चेनसॉ के शोर के बराबर होता है।

सुनने की क्षमता में दर्ज की गई हर वर्ष एक डेसिबल की गिरावट

वैज्ञानिकों के मुताबिक यदि आकार के लिहाज से देखें तो अन्य स्तनधारी जीवों की तुलना में चमगादड़ की कई प्रजातियों का जीवन काल काफी लम्बा होता है। अनुमान है कि इनका जीवन काल करीब 40 वर्षों का होता है। इस बारे में तेल अवीव विश्वविद्यालय के एक न्यूरो इकोलॉजिस्ट योसी योवेल का कहना है कि, "कई जीवों में उच्च आवृत्ति को सुनने की काबिलियत उन्हें जीवित रहने में मदद करती है। इसी तरह इकोलोकेटिंग चमगादड़ों के अस्तित्व के लिए आवश्यक है।

यह जीव अपने पर्यावरण में पथ निर्देशन के लिए इस क्षमता पर भरोसा करते हैं।" हालांकि उनके अनुसार आज तक किसी भी अध्ययन में व्यवस्थित रूप से चमगादड़ों में सुनने की क्षमता पर उम्र के प्रभावों की जांच नहीं की है।

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 47 इजिप्टिशियन फ्रूट बैट की उम्र और सुनने की क्षमता का अध्ययन किया है। इसके लिए उन्होंने अलग-अलग आवृतियों की आवाजों और चमगादड़ के दिमाग में होने वाली प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया है।

वैज्ञानिकों को स्पष्ट रूप से उम्र बढ़ने के साथ सुनने की क्षमता में आई गिरावट का पता चला है। यह गिरावट विशेष रूप से उच्च आवृत्ति की ध्वनियों में कहीं ज्यादा स्पष्ट थी। निष्कर्ष से पता चला है कि सुनने की क्षमता में गिरावट की यह दर करीब एक डेसिबल प्रति वर्ष थी। देखा जाए तो गिरावट की यह हम इंसानों जितनी ही है।

इंसानों की तुलना में देखें तो यह चमगादड़ बहुत ज्यादा शोर में रहते हैं। इसके बावजूद उनके सुनने की क्षमता में होने वाली हानि इंसानों के समान ही है जो दर्शाता है कि यह जीव बहुत शोर वाले वातावरण में रहने के भी अनुकूल बन सकते हैं। ऐसे में यदि यह समझ में आ जाए कि यह जीव ऐसा कैसे करते हैं तो इससे मनुष्यों में होने वाले इस नुकसान को कम करने के लिए बेहतर समझ विकसित की जा सकती है।

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