एक नए चौंकाने वाले अध्ययन से पता चला है कि तम्बाकू इंसानी हड्डियों पर गहरा असर डालती है। यह मानव कंकाल की संरचना को बदल देती है। इसके निशान इतने गहरे होते हैं कि वो मृत्यु के सदियों बाद भी हड्डियों पर बने रहते हैं।
तम्बाकू एक ऐसा धीमा जहर है, जो इंसान को धीरे-धीरे अंदर ही अंदर खोखला बना देता है। इसकी वजह से कैंसर जैसी घातक बीमारियों का खतरा कहीं ज्यादा बढ़ जाता है। स्वास्थ्य पर इसके प्रभावों को लेकर कई शोध किए गए हैं, जो स्पष्ट तौर पर दर्शाते हैं कि इसकी वजह से मानव अंगों पर गहरा असर पड़ता है।
इसी कड़ी में वैज्ञानिकों ने मानव कंकाल पर तम्बाकू के प्रभावों को लेकर एक नया अध्ययन किया है। अपने इस अध्ययन में यूनिवर्सिटी ऑफ लीसेस्टर से जुड़े वैज्ञानिकों ने 12वीं से 19वीं शताब्दी के कंकालों का अध्ययन किया है ताकि यह समझा जा सके कि कैसे तम्बाकू की लत हड्डियों की संरचना को बदल देती है।
अध्ययन में वैज्ञानिकों ने शरीर पर तम्बाकू के पड़ने वाले दीर्घकालिक प्रभावों को भी उजागर किया है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुए हैं। अध्ययन में लीसेस्टर विश्वविद्यालय से जुड़े पुरातत्वविदों और वैज्ञानिकों को तम्बाकू का सेवन करने वालों की हड्डियों की संरचना में, इसका सेवन न करने वालों की तुलना में, उल्लेखनीय अंतर मिला है।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बारहवीं सदी के मानव कंकालों के अवशेषों का विश्लेषण किया है। इस अध्ययन से पता चला है कि तम्बाकू का सेवन इंसानों के कॉर्टिकल बोन यानी हड्डियों की बाहरी परत पर एक स्थाई निशान छोड़ देता है, यह निशान मृत्यु के काफी समय बाद भी बने रहते हैं।
बता दें कि कॉर्टिकल बोन शरीर के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती है। यह एक तरह के घने टिश्यू होते हैं जो हड्डियों की बाहरी परत को बनाते और मजबूती प्रदान करते हैं।
शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि अतीत में वो तम्बाकू का उपयोग करने और न करने वालों के बीच अंतर का पता लगाकर, इसकी वजह से स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों और बीमारियों के बारे में अधिक जानकारी हासिल कर सकते हैं।
अपने इस अध्य्यन में शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी प्रकाश डालने का प्रयास किया है कि अतीत में तम्बाकू ने लोगों के स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित किया था।
अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 323 व्यक्तियों के मानव कंकालों का विश्लेषण किया है। इसमें लंदन के यूस्टन में सेंट जेम्स गार्डन में दफन 177 वयस्क शामिल थे, जिन्हें 18वीं से 19वीं शताब्दी के बीच दफनाया गया था। वहीं लिंकनशायर के बार्टन-अपॉन-हंबर में एक ग्रामीण चर्च के कब्रिस्तान से दफन 146 लोगों के अवशेषों को भी शामिल किया गया था। यह वो लोग थे जो यूरोप में तम्बाकू के चलन से पहले 1150 से 1500 ईस्वी में यहां रहते थे। बता दें कि पश्चिमी यूरोप में तम्बाकू का चलन 16वीं सदी के बाद शुरू हुआ था।
पश्चिमी यूरोप में तम्बाकू के चलन से पहले और बाद में इंसानी हड्डियों का अध्ययन करके, शोधकर्ताओं ने पाया है कि तम्बाकू के आम हो जाने के बाद से पश्चिमी यूरोपीय लोगों की हड्डियों में स्पष्ट बदलाव हुए हैं।
मास स्पेक्ट्रोस्कोपी जैसी तकनीकों का उपयोग की मदद से वैज्ञानकों को पता चला है कि धूम्रपान करने वालों की हड्डियों में 45 ऐसे विशिष्ट आणविक लक्षण थे, जो धूम्रपान न करने वालों में मौजूद नहीं थे।
भारत में आज भी 25 करोड़ से ज्यादा लोग कर रहे हैं तम्बाकू का सेवन
अध्ययन पर प्रकाश डालते हुए डॉक्टर सारा इंस्किप ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से बताया कि तम्बाकू का सेवन करने और न करने वालों की हड्डियों की आणविक विशेषताओं में महत्वपूर्ण अंतर होता है। इसकी मदद से हम देख सकते हैं कि तम्बाकू हमारे कंकाल की संरचना को कैसे प्रभावित करता है।“
“इस शोध का उद्देश्य यह समझना है कि ये अंतर कैसे विकसित होते हैं, जो यह समझने में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं कि तम्बाकू के सेवन से कुछ हड्डियों और दांतों से जुड़ी समस्याओं का जोखिम क्यों बढ़ जाता है।“
वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने अपने एक अध्ययन में खुलासा किया था कि धूम्रपान से मस्तिष्क सिकुड़ सकता है। इस रिसर्च के मुताबिक धूम्रपान की यह लत दिमाग को समय से पहले बूढ़ा बना सकती है।
भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो देश में तम्बाकू का सेवन करने वाली को संख्या में पिछले कुछ दशकों में कमी जरूर आई है। लेकिन इसके बावजूद अभी भी 25.1 करोड़ से ज्यादा लोग इसका सेवन कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी रिपोर्ट “ग्लोबल रिपोर्ट ऑन ट्रेंड्स इन प्रीवलेंस ऑफ टोबैको यूज 2000-2030” के मुताबिक देश में अभी भी 19.8 करोड़ से ज्यादा पुरुष और 5.3 करोड़ महिलाएं तम्बाकू का सेवन कर रही हैं। यह वो लोग हैं जिनकी आयु 15 वर्ष या उससे अधिक है।
गौरतलब है कि 2010 में जहां 38 फीसदी भारतीय तम्बाकू का उपभोग कर रहे थे, वहीं अनुमान है कि 2025 में यह आंकड़ा 43 फीसदी की गिरावट के साथ घटकर 21.8 फीसदी रह जाएगा।
तम्बाकू सेवन करने वालों के अवशेषों में हड्डियों की संरचना में बदलावों की खोज से पुरातत्वविदों को पहली बार बिना दांतो वाले अवशेषों को वर्गीकृत करने में मदद मिली है। फोटो: यूनिवर्सिटी ऑफ लीसेस्टर