एक बार शरीर में घुसने के बाद ये सूक्ष्म कण खून तक पहुंच सकते हैं और वहां से दिल, दिमाग और दूसरे अहम अंगों में फैल सकते हैं; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
एक बार शरीर में घुसने के बाद ये सूक्ष्म कण खून तक पहुंच सकते हैं और वहां से दिल, दिमाग और दूसरे अहम अंगों में फैल सकते हैं; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

हर साल 90,000 माइक्रोप्लास्टिक कण निगल रहे बोतलबंद पानी पीने वाले: रिपोर्ट

रिसर्च से पता चला है कि अगर बोतलबंद पानी नियमित पिया जाए, तो हर साल माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक के हजारों कण सीधे शरीर में जमा हो सकते हैं
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Summary
  • शोधकर्ताओं ने पाया कि बोतलबंद पानी में माइक्रोप्लास्टिक की उच्च मात्रा होती है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

  • ये कण शरीर में घुसकर दिल, दिमाग और अन्य अंगों में फैल सकते हैं। प्लास्टिक के कणों के कारण ऑक्सीडेटिव तनाव और हार्मोनल असंतुलन जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

  • सरकारों को इस पर ध्यान देने की जरूरत है।

क्या आप जानते हैं कि औसतन हर व्यक्ति साल में 52,000 तक माइक्रोप्लास्टिक के कण निगल जाता है। इसका खुलासा कॉनकॉर्डिया विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं ने अपने नए अध्ययन में किया है। अपने इस अध्ययन में उन्होंने 140 से अधिक वैज्ञानिक शोधों की समीक्षा की है।

शोधकर्ताओं का यह भी दावा है कि जो लोग बोतलबंद पानी पीते हैं वो नल जल पीने वालों की तुलना में माइक्रोप्लास्टिक के करीब 90,000 कण अतिरिक्त निगल जाते हैं। गौरतलब है कि प्लास्टिक के ये महीन कण इतने सूक्ष्म होते हैं कि आंखों से दिखाई नहीं देते।

माइक्रोप्लास्टिक का आकार एक माइक्रोन (यानी एक मिलीमीटर के हजारवें हिस्से) से लेकर पांच मिलीमीटर तक होता है। वहीं प्लास्टिक के इससे भी महीन कणों को नैनोप्लास्टिक कहा जाता है।

शोधकर्ताओं ने इस बात की भी पुष्टि की है कि प्लास्टिक के ये कण बोतलों के निर्माण, भंडारण, धूप-गर्मी और इस्तेमाल के दौरान समय के साथ टूटकर निकलते रहते हैं। उनके मुताबिक अक्सर ये बोतलें कम गुणवत्ता वाले सिंगल यूज प्लास्टिक से बनी होती हैं, इसलिए धूप या तापमान के बदलने पर इनमें से छोटे-छोटे कण बार-बार निकलते रहते हैं।

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एक बार शरीर में घुसने के बाद ये सूक्ष्म कण खून तक पहुंच सकते हैं और वहां से दिल, दिमाग और दूसरे अहम अंगों में फैल सकते हैं; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

बाकी प्लास्टिक के कण जहां खाने की श्रृंखला के जरिए शरीर में जा रहे हैं, वहीं ये सीधे पानी के साथ शरीर के अंदर पहुंच जाते हैं।

यह अध्ययन कॉनकॉर्डिया विश्वविद्यालय से जुड़ी पीएचडी शोधकर्ता सारा साजेदी के नेतृत्व में किया गया है, जिसके नतीजे जर्नल ऑफ हैजर्डस मैटेरियल्स में प्रकाशित हुए हैं। इसमें उन्होंने बोतलबंद पानी के स्वास्थ्य से जुड़े गंभीर खतरों की पड़ताल की है।

शरीर पर गहरा असर

शोधकर्ताओं के मुताबिक एक बार शरीर में घुसने के बाद ये सूक्ष्म कण खून तक पहुंच सकते हैं और वहां से दिल, दिमाग और दूसरे अहम अंगों में फैल सकते हैं।

साजेदी के मुताबिक, प्लास्टिक के इन महीन कणों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकते हैं। शरीर में पहुंचने के बाद ये खून में घुलकर महत्वपूर्ण अंगों तक पहुंच जाते हैं। इससे लगातार सूजन, कोशिकाओं पर ऑक्सीडेटिव दबाव, हार्मोनल असंतुलन, प्रजनन क्षमता में कमी, दिमागी नुकसान और कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं।

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एक बार शरीर में घुसने के बाद ये सूक्ष्म कण खून तक पहुंच सकते हैं और वहां से दिल, दिमाग और दूसरे अहम अंगों में फैल सकते हैं; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

हालांकि इनके लंबे समय तक होने वाले प्रभावों को अभी पूरी तरह समझा नहीं जा सका है, क्योंकि इस पर पर्याप्त जांच और मानक परीक्षण पद्धतियां उपलब्ध नहीं हैं।

साजेदी मानती हैं कि सरकारें प्लास्टिक कचरे पर कानून तो बना रही हैं, लेकिन ज्यादातर ध्यान थैलियों, स्ट्रॉ और पैकेजिंग पर है। बोतलबंद पानी पर बहुत कम कदम उठाए गए हैं।

उनका प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “आपातकाल में प्लास्टिक बोतल से पानी पीना ठीक है, लेकिन इसे रोजमर्रा की आदत नहीं बनाना चाहिए। असली खतरा तात्कालिक जहर से नहीं बल्कि लंबे समय तक जमा होते रहने वाले जहर से है।“

देखा जाए तो दुनिया भर में बोतल बंद पानी की मांग लगातार बढ़ रही है। लेकिन क्या बोतल बंद पानी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिहाज से फायदे का सौदा है, यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है?

पिछले शोधों में भी बढ़ती समस्या पर डाला गया है प्रकाश

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार हर मिनट बोतल बंद पानी की 10 लाख बोतलें खरीदी जाती हैं। वहीं दुनिया भर में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है।

विशेषज्ञों के मुताबिक प्लास्टिक की बोतलों से हानिकारक केमिकलों के रिसने का खतरा बना रहता है, खासकर अगर पानी को लंबे समय तक इन बोतलों में स्टोर किया जाता है, या फिर इन्हें धूप या बेहद अधिक तापमान में छोड़ दिया जाता है।

अध्ययन से पता चला है कि बोतलबंद पानी के दस से 78 फीसदी तक नमूनों में दूषित पदार्थ होते हैं। यहां तक कि इनमें माइक्रोप्लास्टिक जैसे प्रदूषक भी पाए गए हैं, जो हार्मोन को प्रभावित कर सकते हैं। इसके साथ ही बोतलबंद पाने में अन्य हानिकारक पदार्थ जैसे कि फथलेट्स और बिस्फेनॉल ए भी पाए गए हैं।

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शोधकर्ताओं के मुताबिक माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी से ऑक्सीडेटिव तनाव, प्रतिरक्षा प्रणाली में कमजोरी और रक्त में वसा के स्तर में बदलाव जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। वहीं बीपीए के संपर्क में आने से जीवन में आगे चलकर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इनमें उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और मोटापा शामिल हैं।

अध्ययन के मुताबिक प्लास्टिक की बोतलों से पैदा हो रहे कचरे के साथ-साथ, इनके लिए कच्चे माल की जरूरत होती है, साथ ही निर्माण के दौरान बहुत ज्यादा उत्सर्जन होता है, जो पर्यावरण के साथ-साथ जलवायु पर भी गहरा असर डालता है।

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