हर मिनट बिक रही 10 लाख पानी की बोतलें, सेहत और आबोहवा पर क्या होगा असर ?

दुनिया भर में बोतल बंद पानी की मांग लगातार बढ़ रही है। लेकिन क्या बोतल बंद पानी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिहाज से फायदे का सौदा है, यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है
बोतल बंद पानी क बढ़ती मांग क्या कंपनियों के साथ-साथ पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिहाज से भी फायदेमंद है; फोटो: आईस्टॉक
बोतल बंद पानी क बढ़ती मांग क्या कंपनियों के साथ-साथ पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिहाज से भी फायदेमंद है; फोटो: आईस्टॉक
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क्या आप जानते हैं कि हर मिनट बोतल बंद पानी की 10 लाख बोतलें खरीदी जाती हैं। वहीं दुनिया भर में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है। लेकिन क्या यह बोतल बंद पानी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिहाज से सुरक्षित है, यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है।

विशेषज्ञों के मुताबिक यह बोतलबंद पानी आम लोगों और पृथ्वी पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में करीब 200 करोड़ लोग ऐसे हैं जो आज भी सुरक्षित पेयजल से दूर हैं, यदि उनतक पीने का साफ पानी पहुंच भी रहा है तो वो बहुत सीमित है। ऐसे में यह बोतल बंद पानी उनकी मजबूरी है।

लेकिन हममे से काफी लोगों के लिए यह सुविधा और विश्वास का मामला है। बोतल बंद पानी का व्यापार करने वाली कंपनियां अक्सर ऐसे प्रस्तुत करती हैं कि बोतल बंद पानी, नलजल की तुलना में कहीं ज्यादा सुरक्षित और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। हालांकि कतर स्थित वेइल कॉर्नेल मेडिसिन और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं के मुताबिक यह हमेशा सच नहीं होता।

इस बारे में शोधकर्ताओं ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि बोतलबंद पानी, हमेशा नल जल की तरह सख्त गुणवत्ता जांच से नहीं गुजरता। विशेषज्ञों के मुताबिक प्लास्टिक की बोतलों से हानिकारक केमिकलों के रिसने का खतरा बना रहता है, खासकर अगर पानी को लंबे समय तक इन बोतलों में स्टोर किया जाता है, या फिर इन्हें धूप या बेहद अधिक तापमान में छोड़ दिया जाता है।

देखा जाए तो कई ब्रांड पानी को सुरक्षित और बेस्ट क्वालिटी का दावा करके बेच रहे हैं। लेकिन जिसे हम अमृत समझ कर पीते हैं उस पानी में कई ऐसे घटक हो सकते हैं जो हमारे स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं।

स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकता है बोतल बंद पानी

अध्ययन से पता चला है कि बोतलबंद पानी के दस से 78 फीसदी तक नमूनों में दूषित पदार्थ होते हैं। यहां तक कि इनमें माइक्रोप्लास्टिक जैसे प्रदूषक भी पाए गए हैं, जो हार्मोन को प्रभावित कर सकते हैं। इसके साथ ही बोतलबंद पाने में अन्य हानिकारक पदार्थ जैसे कि फथलेट्स और बिस्फेनॉल ए भी पाए गए हैं। गौरतलब है कि फथलेट्स का उपयोग प्लास्टिक को मजबूत बनाने के लिए किया जाता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी से ऑक्सीडेटिव तनाव, प्रतिरक्षा प्रणाली में कमजोरी और रक्त में वसा के स्तर में बदलाव जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। वहीं बीपीए के संपर्क में आने से जीवन में आगे चलकर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इनमें उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और मोटापा शामिल हैं।

वहीं इन दूषित पदार्थों के लम्बे समय में क्या प्रभाव पड़ेंगें इस बारे में अभी भी बहुत अधिक जानकारी नहीं है। इस बात की भी आशंका है कि माइक्रोप्लास्टिक हमारी खाद्य श्रृंखला में भी प्रवेश कर सकते हैं।

शोध के मुताबिक नलजल एक पर्यावरण अनुकूल विकल्प है। दूसरी तरफ प्लास्टिक से बनी बोतलें समुद्र में बढ़ते प्रदूषण का दूसरा सबसे आम प्रदूषक हैं। यह कुल प्लास्टिक कचरे का करीब 12 फीसदी हिस्सा हैं।

अनुमान है कि महज नौ फीसदी बोतलों को ही रीसाइकिल किया जाता है, जबकि अधिकांश लैंडफिल में चली जाती हैं, या फिर जला दी जाती हैं। वहीं इनमें से कुछ को प्रबंधन के लिए कमजोर देशों को भेज दिया जाता है। ऐसे में निष्पक्षता और सामाजिक न्याय को लेकर चिंताएं बढ़ जाती हैं।

प्लास्टिक की बोतलों से पैदा हो रहे कचरे के साथ-साथ, इनके लिए कच्चे माल की जरूरत होती है, साथ ही निर्माण के दौरान बहुत ज्यादा उत्सर्जन होता है। जो पर्यावरण के साथ-साथ जलवायु पर गहरा असर डालता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि हालांकि रेस्तरां और सार्वजनिक स्थानों पर पेयजल उपलब्ध कराने के साथ-साथ सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के प्रयास किए गए हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

शोधकर्ताओं का सुझाव है कि सरकारी कार्रवाई और जागरूकता अभियान इस दिशा में लोगों की सोच और व्यवहार को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इन अभियानों में लोगों को नलजल से पर्यावरण और स्वास्थ्य को होने वाले फायदों के बारे में जागरूक करना चाहिए। इससे ज्यादा से ज्यादा लोगों की आदतों में सकारात्मक बदलाव आएगा।

अध्ययन में जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक बोतलबंद पानी पर निर्भरता से स्वास्थ्य, धन और पर्यावरण को भारी नुकसान होता है। ऐसे में इसके बढ़ते उपयोग पर दोबारा विचार करने की जरूरत है। सरकारों को भी, खास तौर पर कमजोर देशों में सुरक्षित पेयजल से जड़े बुनियादी ढांचे में निवेश के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए।

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