बच्चों और युवाओं में एक जैसे नहीं होते लॉन्ग कोविड के लक्षण, वैज्ञानिकों ने किया खुलासा

लॉन्ग कोविड एक ऐसी स्थिति है जिसमें कोविड-19 के शिकार मरीज बीमारी के हफ्तों, महीनों या वर्षों बाद भी उससे जुड़े लक्षणों को अनुभव करते हैं
फोटो: विकास चौधरी
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कोविड एक ऐसी महामारी जिसने मानवता को पूरी तरह झकझोर दिया। आज भी वो मंजर भूले नहीं भूलता जब एक तरह जहां अस्पताल मरीजों से भर गए और जो बच गए वो घरों में बंद इस महामारी के जाने की दुआएं मांग रहे थे। देखा जाए तो महामारी का वो दौर करीब-करीब थम चुका है और जिंदगी पटरी पर लौटने लगी है। हालांकि बीच-बीच में इस महामारी के दोबारा सिर उठाने की सूचनाएं सामने आती रही हैं।

लेकिन इसके बावजूद कोविड-19, आज भी एक अबूझ पहेली बना हुआ है, जिसके बारे में जितना ज्यादा हम जानकारी हासिल कर रहें हैं, उतने ज्यादा नए तथ्य हमारे सामने आते जा रहे हैं। इस बारे में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अपने एक नए अध्ययन में खुलासा किया है कि बच्चों और किशोरों में लॉन्ग कोविड के लक्षण एक जैसे नहीं होते, इनमें काफी अंतर होता है। 

गौरतलब है कि लॉन्ग कोविड एक ऐसी स्थिति है जिसमें कोविड-19 के शिकार मरीज बीमारी के हफ्तों, महीनों या वर्षों बाद भी उससे जुड़े लक्षणों को अनुभव करते हैं।

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अमेरिकी बच्चों और किशोरों पर किए इस अध्ययन के मुताबिक जहां बच्चों में दिमाग, नींद आना और पेट से जुड़ी समस्याएं अधिक देखी गई। वहीं दूसरी तरफ किशोरों ने थकान, और शरीर दर्द के साथ स्वाद व गंध खोने जैसी परेशानियों का सामना किया। अध्ययन के मुताबिक किशोरों में लॉन्ग-कोविड के आम लक्षण काफी हद तक वयस्कों से मिलते जुलते थे। लेकिन बच्चों में यह काफी अलग थे।

गौरतलब है कि छोटे बच्चों में सामने आए लक्षणों में मुख्य रूप से नींद की समस्या, ध्यान लगाने में परेशानी और पेट संबंधी समस्याएं, जैसे दर्द, मतली, उल्टी और कब्ज शामिल थीं। यह अध्ययन अमेरिका के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ के कोरोना से स्वस्थ रखने से जुड़ी पहले का हिस्सा है। इसका उद्देश्य बच्चों और किशोरों में लॉन्ग कोविड के लक्षणों को समझना और उन्हें रोकना है।

अध्ययन में अमरीका के अलग-अलग स्वास्थ्य संस्थानों से जुड़े 39 शोधकर्ता शामिल थे। अध्ययन के नतीजे द जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (जामा) में प्रकाशित हुए हैं।

यह अध्ययन अमेरिका में 60 अलग-अलग क्षेत्रों में रहने वाले 5,376 बच्चों पर आधारित है। इनमें से 3,860 बच्चे और किशोर मार्च 2022 से दिसंबर 2023 के बीच कोविड-19 से संक्रमित पाए गए थे। इनमें 751 बच्चे और 3,109 किशोर शामिल थे। वहीं 1516 बच्चे और किशोर वो थे, जिन्हें कोविड-19 नहीं हुआ था। अध्ययन में शामिल बच्चों की आयु छह से 11 वर्ष के बीच जबकि किशोर 12 से 17 वर्ष की आयु के थे।

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क्या कहते हैं अध्ययन के नतीजे

रिसर्च में सामने आया है कि जिन बच्चों और किशोरों को कोविड-19 हुआ था, वो लम्बे समय तक इससे जुड़े समस्याओं से जूझ रहे थे। इतना ही नहीं उनके शरीर के किसी एक हिस्से में नहीं, बल्कि अक्सर विभिन्न हिस्सों में उससे जुड़ी समस्याएं थी।

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 18 ऐसे लक्षण पाए हैं जो छह से 11 वर्ष की आयु बच्चों में लंबे समय तक बने रहे। इनमें सबसे आम लक्षण सिरदर्द था, इसके बाद याददाश्त या ध्यान केंद्रित करने में समस्या, नींद न आना और पेट से जुड़ी समस्याएं शामिल थे। इसके अलावा अन्य लक्षणों में शरीर, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, दिन में थकान और बेचैनी महसूस होना शामिल थे।

वहीं किशोरों में, 17 लक्षण बेहद आम थे। इनमें सबसे आम लक्षण दिन के दौरान थकान महसूस होना, शरीर, मांसपेशियों या जोड़ों में दर्द और सिरदर्द थे। इनके साथ ही याददाश्त या ध्यान लगाने में समस्या जैसे लक्षण भी शामिल थे। वहीं कई किशोरों ने चिंता महसूस करने और सोने में परेशानी की भी बात भी कही, हालांकि उन्हें इससे जुड़े मुख्य लक्षणों में शामिल नहीं किया गया है।

2023 में किए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि कोविड-19 से उबरने के महीनों बाद भी लॉन्ग कोविड शरीर में मस्तिष्क, फेफड़ों और गुर्दे जैसे कई अहम अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है। लॉन्ग कोविड की यह समस्या कितनी बड़ी है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोविड-19 का शिकार हुए दस फीसदी मरीज अभी भी इसके लक्षणों से पीड़ित हैं।

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अप्रैल 2022 में किए एक अन्य अध्ययन के मुताबिक कोविड से उबरने के बाद भी करीब एक तिहाई लोगों में लॉन्ग कोविड की समस्या बनी रह सकती है। इस रिसर्च के मुताबिक करीब 31 फीसदी मरीजों ने थकान, 15 फीसदी ने सांस सम्बन्धी तकलीफों के बारे में जानकारी दी थी थी। वहीं 16 फीसदी मरीजों में गंध और सूंघने की क्षमता में कमी जैसे लक्षण सामने आए थे।

इस महामारी को चार वर्ष हो चुके हैं। हालांकि इसके बावजूद अभी भी इसका खतरा पूरी तरह टला नहीं है। भारत ही नहीं दुनिया के कई दूसरे देशों में संक्रमण के मामले सामने आते रहते हैं। जो कहीं न कहीं यह दर्शाता है कि मानव जाति अभी भी इस तरह की आपदाओं के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में प्रकृति के साथ होता खिलवाड़ कितना सही है यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है।

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