बच्चों में कोविड-19: संक्रमण ही नहीं, लॉन्ग कोविड के भी शिकार हो रहे बच्चे

अगर आप ये सोचते हैं कि वयस्कों ने कोविड-19 महामारी में बहुत दिक्कतें झेलीं, तो आप बच्चों के बारे में सोचिए उन्होंने कितना झेला होगा, क्योंकि वे तो अपना अनुभव साझा करने में सक्षम ही नहीं हैं
कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद अधिकांश बच्चों में दीर्घकालिक स्वास्थ्य संबंधी शिकायतें रहीं (फोटो: विकास चौधरी)
कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद अधिकांश बच्चों में दीर्घकालिक स्वास्थ्य संबंधी शिकायतें रहीं (फोटो: विकास चौधरी)
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गुजरात के सूरत के रहने वाले 7 माह के कियंत को जुलाई, 2021 में बुखार हो गया था। ये बुखार उसमें शायद उसकी दादी से आया था। कियंत के कारोबारी पिता कुश जयेशभाई शाह और उनकी पत्नी ने चार दिनों तक बच्चे का इलाज घर पर ही करने की कोशिश की। जयेश कहते हैं, “हमारे पास ये जानने का कोई तरीका ही नहीं था कि वो किस तरह के दर्द से गुजर रहा है। सात माह का बच्चा तो हर चीज के लिए रोता-बिलखता है।”

जब कियंत का बुखार ठीक नहीं हुआ, तो कियंत के डॉक्टर व शहर के जाने माने शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ केतन शाह ने उसके परिजनों से मल्टीसिस्टम इनफ्लेमेटरी सिंड्रोम इन चिल्ड्रेन (एमआईएस-सी) के लिए तैयार रहने को कहा। डॉक्टर केतन शाह शहर में शिशु अस्पताल भी चलाते हैं।

डॉ शाह समझाते हैं, “एमआईएस-सी तब होता है कि जब कोविड-19 के खिलाफ बनी एंटीबॉडी शरीर पर ही हमले करने लगती है। ये मस्तिष्क और यहां तक कि रक्त प्रवाह को भी प्रभावित कर सकता है।” वे कहते हैं कि ये विलक्षण बीमारी है और 21 साल से कम उम्र के 10,000 संक्रमितों में से तीन संक्रमितों में ऐसा होता है।

जांच में कियंत कोविड-19 संक्रमित पाया गया और उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसकी 2-डी इकोकार्डियोग्राम जांच की गई तो पता चला कि कोरोनरी धमनी फैल गई है। ये स्थिति हृदयाघात का कारण बन सकता है। इंडियन एकेडमी ऑफ पेडियॉट्रिक्स की ओर से विकसित किये गये प्रोटोकॉल के मुताबिक इस बीमारी से पीड़ित लोगों का इंट्रावेनस इम्युनोग्लोबुलिन इलाज किया जाता है और डेढ़ महीने तक स्टेरॉयड दिया जाता है।

कुश जयेशभाई शाह ने कहा “उसकी 2-डी टेस्ट में सुधार दिखा और शुक्र है कि वह अब बिल्कुल ठीक है।” कियंत इकलौता मासूम नहीं है, जिसने चुपचाप ये दर्द बर्दाश्त किया और हृदय एक मात्र अंग नहीं है, जो प्रभावित होता है। पटना के नेत्ररोग विशेषज्ञ सुनील सिंह कहते हैं, “कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद जितने भी बच्चे मेरे क्लीनिक में आये, उनमें से अधिकांश बच्चों में सिर दर्द, आंखों में दर्द और एकाग्रता में कमी की शिकायत थी।”

वे कहते हैं, “एक 10 साल की लड़की को इस साल मई में कोविड-19 हुआ था। इसके बाद वह आंखों में लाल दाग और थकावट की शिकायत लेकर क्लीनिक में आई थी। मैंने उसे कुछ विटामिन लेने और आंख से जुड़े कुछ व्यायाम की सलाह दी। मैं उसके लिए इतना ही कर सका।”

एम्स, पटना के नोडल अधिकारी संजीव कुमार ने कहा कि सितंबर, 2021 में बिहार के विभिन्न जिलों से कोविड-19 संक्रमण के बाद स्वास्थ्य के गंभीर लक्षणों के साथ पांच बच्चे एम्स में भर्ती हुए थे। इन बच्चों में सांस की तकलीफ की शिकायत थी और उनके फेफड़े पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं ले पा रहे थे। इनमें से 11 साल की एक बच्ची को बचाया नहीं जा सका।

डॉक्टर संजीव कुमार ने ये भी बताया कि कोविड-19 की पहली और दूसरी लहर में एमआईएस-सी से पीड़ित कुछ बच्चे भी भर्ती हुए थे। उन्होंने कहा कि आने वाले महीनों मे इससे पीड़ित और भी बच्चे भर्ती हो सकते हैं। हालांकि राज्य में हुए सीरो सर्वे के मुताबिक 75 प्रतिशत बच्चे कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं और वायरस के नये स्ट्रेन से वे दोबारा संक्रमित हो सकते हैं।

बच्चों में अब डॉक्टर नया ट्रेंड देख रहे हैं। जो बच्चे पूर्व में कोविड-19 से संक्रमित हुए थे वे दूसरे तरह के संक्रमण की जद में आ रहे हैं क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है। संभवतः उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में कोविड नियंत्रण के नोडल अधिकारी कमल कुमार कुशवाहा की बेटी इसी तरह की परेशानी से जूझ रही थी। उनकी पत्नी और बेटी को अप्रैल में कोरोना हुआ था, तो एक चिकित्सक की हैसियत से उन्होंने दोनों का इलाज किया था। लेकिन अब उनकी बेटी लगातार बुखार, सर्दी और खांसी से परेशान है। मरीजों का इलाज करते हुए भी उन्होंने पाया कि कोविड-19 के बाद बच्चे डेंगू और निमोनिया की शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के रहने वाले देवेंद्र सिंह के बच्चे को कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत अप्रैल, 2021 में कोविड संक्रमण हो गया था। इस कोविड संक्रमण के बाद से उनके बेटे को पिछले 8 महीने में 6 बार बुखार आ चुका है। शुरुआत में तो उन्हें पता ही नहीं चला कि ये सब असामान्य है। उनके बच्चे का इलाज करने वाले शिशुरोग विशेषज्ञ एके तिवारी कहते हैं, “ये ट्रेंड दूसरे बच्चों में भी देखा गया है, लेकिन दस्तावेजीकरण नहीं होने के कारण इस पहलू का निर्णायक अध्ययन नहीं किया जा सकता है।” देवेंद्र सिंह पेशे से शिक्षक हैं और अप्रैल, 2021 में पंचायत चुनाव की ड्यूटी पर थे, तभी उन्हें कोरोना हो गया था। एक हफ्ते के भीतर ही कोरोना का संक्रमण उनकी 9 साल की बेटी खुशी और ढाई साल के बेटे रेशू को भी कोविड संक्रमण हो गया था।

बच्चों में कोरोना के बाद की कठिनाइयां अनुमान पर आधारित हैं। कुछ कोविड पीड़ित बच्चे खाने में असमर्थ हैं क्योंकि उन्हें भोजन से कीड़े और सीवेज की गंध आती है, तो कुछ बच्चों में मनोरोग की समस्या दिख रही है। स्वास्थ्य अधिकारों पर काम करने वाले उड़ीसा में नागरिक संगठनों के नेटवर्क जनस्वास्थ्य अभियान के प्रमुख गौरांग महापात्रा बताते हैं कि चूंकि वयस्कों को कोविड वैक्सीन लग चुकी है, तो कोरोना से बीमार पड़ने वाले लोगों में बच्चों का अनुपात बढ़ गया है। वह आगे कहते हैं “आप किसी भी निजी अस्पताल में चले जाइए, जितने मरीज आपको मिलेंगे, उनमें से कम से कम 50 प्रतिशत मरीज कोविड-19 के बाद की दिक्कतों से परेशान मिलेंगे। बच्चों की बात करें, तो उनका अनुपात ज्यादा है।”

सशक्त समूह-1 (ईजी-1) का गठन राष्ट्रीय स्तर पर कोविड आपात रणनीति बनाने के लिए किया गया है। समूह के पास उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक मार्च, 2021 में कोविड-19 के कुल सक्रिय मामलों में एक से 10 साल के उम्र के बच्चों की तादाद 2.80 प्रतिशत थी, जो अगस्त में बढ़कर 7.04 प्रतिशत हो गई। 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अगस्त के कोविड-19 आंकड़े उपलब्ध हैं, जो बताते हैं कि 18 में से 8 राज्यों में कोविड-19 का आंकड़ा राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है।



भारत में ही नहीं वैश्विक स्तर पर भी बच्चों पर कोविड-19 के प्रभाव को लेकर बहुत कम आंकड़े उपलब्ध हैं। 24 नवम्बर 2021 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक बयान जारी कर कहा कि 30 दिसम्बर 2019 से 25 अक्टूबर 2021 के बीच वैश्विक स्तर पर सामने आये कोविड-19 संक्रमण के कुल मामलों में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या दो प्रतिशत और पांच साल से 14 साल की उम्र के बच्चों की संख्या सात प्रतिशत थी। वहीं, कोविड-19 के कुल सक्रिय मामलों में 15 से 24 साल की उम्र के लोगों की तादाद करीब 15 प्रतिशत थी।

हालांकि डब्ल्यूएचओ ने ये भी माना कि चूंकि कम उम्र के लोगों को मेडिकल सहायता की बहुत कम जरूरत पड़ी, इसलिए संभव है कि इन आंकड़ों में उनके स्वास्थ्य की स्थितियों की सही तस्वीर न आई हो। वैसे तो भारत में एनसीडीसी लोगों का उम्र आधारित आंकड़ा संग्रह करता है, लेकिन मोटे तौर पर बच्चों में कोविड के बारे में कुछ ज्यादा पता नहीं है। यहां तक कि ये आंकड़े सार्वजनिक पटल पर उपलब्ध नहीं हैं।

चिकित्सकों के अनुभव भी अलग-अलग रहे। देहरादून के जाने-माने शिशुरोग विशेषज्ञ विनोद चंद्रा के मुताबिक उनके पास कोरोना संक्रमित या कोरोना के बाद की कठिनाइयों को लेकर कोई बच्चा नहीं आया। वे कहते हैं, “राज्य में कोरोनावायरस से बच्चों के संक्रमित होने का आंकड़ा बिखरा हुआ है।”

केरल का अनुभव भी अप्रत्याशित है। केरल में कोरोनावायरस का संक्रमण बहुत ज्यादा है, लेकिन जब नवम्बर, 2021 में स्कूल खुले तो करीब 1,000 छात्रों और 300 शिक्षकों में ही कोविड-19 संक्रमण फैला। केरल में करीब 40 लाख छात्र और 1.75 लाख शिक्षक हैं।

केरल सरकार ने स्कूल खुलने के दो हफ्ते बाद महामारी का अनुमान लगाया था। राज्य में जो सीरो सर्वे किये गये थे, उसमें पता चला था कि राज्यों में मौजूद कुल बच्चों में 40 प्रतिशत बच्चों में ही बीमारी के खिलाफ एंटीबॉडी बनी थी, जिसका मतलब था कि बच्चों की एक बड़ी आबादी पर संक्रमण का खतरा था, लेकिन इसके बावजूद बच्चों में संक्रमण कम हुआ। केरल के स्कूल शिक्षा मंत्री वी सिवाकुट्टी महसूस करते हैं कि निवारक उपाय, भीड़ कम करने के लिए बायोबबल जैसे उपायों का बेहतर परिणाम निकला।

हालांकि इंडियन एकेडमी ऑफ पेडियॉट्रिक्स के पूर्व राज्य सचिव एम नारायणन ने लगातार नजर रखने की सलाह दी है क्योंकि जांच के लिए स्वैब देने में बच्चों की आनाकानी के चलते अंडररिपोर्टिंग हो सकती है।

अगली कड़ी में पढ़ें : क्या वैक्सीन ही बच्चों का इलाज

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