
भारत में आत्महत्या की दर घट रही है, जोकि मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धता है। अंतराष्ट्रीय जर्नल द लैंसेट पब्लिक हेल्थ में प्रकशित एक नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि 1990 से 2021 के बीच पिछले तीन दशकों में देश में आत्महत्या से जुड़ी मृत्यु दर में 31.5 फीसदी की गिरावट आई है।
यह मानसिक स्वास्थ्य में सुधार को लेकर बनाई जा रही रणनीतियों में महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है। वहीं वैश्विक स्तर पर इस दौरान मृत्यु दर में 39.5 फीसदी की गिरावट आई।
इस अध्ययन में भारत को लेकर जो आंकड़े साझा किए गए हैं, उनके मुताबिक 2019 में प्रति लाख पर 19 लोगों ने आत्महत्या की थी। वहीं 2021 में यह आंकड़ा घटकर 13 रह गया, जो करीब 32 फीसदी की गिरावट को दर्शाता है।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है आत्महत्या सम्बंधित मृत्यु दर में यह कमी पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक दर्ज की गई। गौरतलब है कि जहां पुरुषों में आत्महत्या सम्बंधित मृत्यु दर में 1990 से 2021 के बीच करीब 25 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं महिलाओं में यह आंकड़ा समान अवधि के लिए 38.7 दर्ज किया गया।
पुरुषों से जुड़े आंकड़ों पर नजर डालें तो जहां 1990 में प्रति लाख पुरुषों पर करीब 21 ने आत्महत्या की थी। वहीं 2021 में पुरुषों में आत्महत्या मृत्यु दर प्रति लाख आबादी पर घटकर 15.7 रह गई। मतलब की इन तीन दशकों में इसमें करीब 25 फीसदी की गिरावट आई।
वहीं दूसरी तरफ 1990 में प्रति लाख महिलाओं में आत्महत्या सम्बंधित मृत्यु दर 16.8 थी, जो 2021 में 38.7 फीसदी की गिरावट के साथ घटकर 10.3 प्रति लाख रह गई। हालांकि 2019 से 2021 के बीच महिलाओं में आत्महत्या सम्बंधित मृत्यु दर में 1.31 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है।
यह अध्ययन ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज, इंजरी एंड रिस्क फैक्टर्स स्टडी (जीबीडी) 2021 के परिणामों पर आधारित है। अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि, भारत में 2020 के दौरान शिक्षित महिलाओं में आत्महत्या की दर सबसे अधिक थी, जिसका मुख्य कारण पारिवारिक समस्याएं थीं।
वहीं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी एक्सीडेंटल डेथ्स एंड स्यूसाइड्स इन इंडिया 2022 के मुताबिक, साल 2021 में 1,64,033 लोगों ने आत्महत्या की थी। वहीं 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 1,70,924 पर पहुंच गया, जो स्पष्ट तौर पर इस बात को दर्शाता है कि भले ही पिछले तीन दशकों में आत्महत्या के मामलों में गिरावट आई है।
लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह आंकड़ा बढ़ा है। आज लोगों में जिस तरह से तनाव, दुःख, खेद, रंज, निराशा और हताशा बढ़ रही है, उसकी वजह से लोग आत्महत्या की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
इस लिहाज से देखें तो भारत में साल 2022 में हर घंटे 19 लोगों ने आत्महत्या की। जबकि कृषि क्षेत्र से हर घंटे 1 से अधिक किसानों और कृषि श्रमिकों ने अपनी जान दी।
व्यवसायिक नजरिए से देखें तो साल 2022 में आत्महत्या करने वालों में सबसे अधिक 26.4 प्रतिशत हिस्सेदारी दिहाड़ी मजदूरों की रही, जबकि 14.8 प्रतिशत हिस्सेदारी गृहणियों की थी। 2021 में इनकी हिस्सेदारी क्रमश: 25.6 और 14.1 प्रतिशत थी।
हर 42 सेकंड में एक व्यक्ति कर रहा आत्महत्या
अध्ययन में वैश्विक आंकड़ों को उजागर किया है, इनके मुताबिक हर साल दुनिया भर में 746,000 लोग आत्महत्या कर रहे हैं। इनमें 519,000 पुरुष, जबकि 227,000 महिलाएं शामिल हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो हर 42 सेकंड में दुनिया के किसी न किसी हिस्से में एक व्यक्ति आत्महत्या कर रहा है।
वहीं वैश्विक स्तर पर देखें तो 1990 से 2021 के बीच आत्महत्या सम्बंधित मृत्यु दर में 39.5 फीसदी की गिरावट आई है। गौरतलब है कि 1990 में प्रति लाख लोगों में से करीब 15 ने आत्महत्या की थी। वहीं 2021 में यह आंकड़ा घटकर करीब नौ रह गया था। भारत की तरह ही वैश्विक स्तर पर भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं में आत्महत्या के मामले कहीं ज्यादा घटे हैं।
रुझानों के मुताबिक जहां 1990 में पुरुषों के मामले में आत्महत्या से जुड़ी मृत्यु दर्ज 19.3 थी। जो करीब 34 फीसदी की गिरावट के साथ 2021 में घटकर 12.8 रह गई। वहीं महिलाओं से जुड़े आंकड़ों पर नजर डालें तो जहां 1990 में प्रति लाख पर 10.9 महिलाओं ने आत्महत्या कि वहीं 2021 में यह दर्ज घटकर 5.4 रह गई।
मतलब कि जहां 2021 में पुरुषों में आत्महया सम्बन्धी मृत्यु दर 12.8 थी, जो महिलाओं में आधी से भी कम 5.4 प्रति लाख दर्ज की गई।
रिसर्च में यह भी सामने आया है कि पुरुष और महिलाओं में दोनों में अधेड़ उम्र के लिए कहीं अधिक आत्महत्या कर रहे हैं। 1990 में जहां आत्महत्या करने वाले पुरुषों की औसत आयु 43 वर्ष थी। वहीं महिलाओं के लिए यह आंकड़ा 42 दर्ज किया गया। 2021 में देखें तो आत्महत्या करने वाले पुरुषों की औसत आयु बढ़कर 47 वर्ष हो गई महिलाओं में भी यह आंकड़ा 47 दर्ज किया गया।
देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है, साथ ही लोगों में मानसिक तनाव बढ़ रहा है, उसके चलते यह समस्या बढ़ सकती है। ऐसे में यह जरुरी है कि भविष्य की स्वास्थ्य सम्बन्धी योजनाओं में इन पर भी ध्यान दिया जाए ।