स्मार्टफोन ब्रेक: मस्तिष्क को आश्चर्यजनक तरीके से प्रभावित कर सकती है स्मार्टफोन से महज 72 घंटों की दूरी

स्मार्टफोन के सीमित उपयोग से मस्तिष्क की गतिविधियों में डोपामाइन और सेरोटोनिन से जुड़े क्षेत्रों में बदलाव देखा गया। यह क्षेत्र एक तरह के न्यूरोट्रांसमीटर हैं जो मिजाज, भावनाओं और लत को नियंत्रित करते हैं
एक दिन में 2600 बार अपना फोन चेक करते हैं, फोन गुम जाने के खयाल से ही घबरा जाते हैं और फोन वाइब्रेट न भी कर रहा हो तब भी वाइब्रेशन महसूस करते हैं। इसे फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम कहते हैं; फोटो: आईस्टॉक
एक दिन में 2600 बार अपना फोन चेक करते हैं, फोन गुम जाने के खयाल से ही घबरा जाते हैं और फोन वाइब्रेट न भी कर रहा हो तब भी वाइब्रेशन महसूस करते हैं। इसे फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम कहते हैं; फोटो: आईस्टॉक
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आज हर किसी के हाथों में स्मार्टफोन है। यह स्मार्टफोन आज पूरी तरह से हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं। सुबह दिन की शुरूआत से रात सोने तक यह पहली और आखिरी चमक होती है, जिसे हम हर दिन देखते हैं। ऐसा लगता है कि यह हमारा ही एक हिस्सा है, जिसे छोड़ना मुश्किल है।

लेकिन क्या आपने कभी इससे दूर जाने के बारे में सोचा है? यह हमारे स्वास्थ्य को किस तरह प्रभावित कर सकता है? इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढने के लिए वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक नया अध्ययन किया है। इस अध्ययन से पता चला है कि स्मार्टफोन से ब्रेक वास्तव में हमारे मस्तिष्क के काम करने का तरीका बदल सकता है।

जर्नल कम्प्यूटर्स इन ह्यूमन बिहेवियर में प्रकाशित एक नए अध्ययन से पता चला है कि स्मार्टफोन से 72 घंटों का ब्रेक, मस्तिष्क की केमिस्ट्री में आश्चर्यजनक तरीके से बदलाव ला सकता है।

यह अध्ययन हेडेलबर्ग और कोलोन विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है, जो 18 से 30 वर्ष की आयु के 25 युवाओं पर आधारित है। वैज्ञानिकों ने इन युवाओं से 72 घंटों के लिए स्मार्टफोन का उपयोग सीमित करने को कहा, उन्हें केवल आवश्यक कार्यों जैसे कि काम, दैनिक गतिविधियों और परिवार से बात करने के लिए ही स्मार्टफोन का उपयोग करने को कहा गया।

इन तीन दिनों के दौरान शोधकर्ताओं ने मनोवैज्ञानिक परीक्षण किए और फंक्शनल मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग (एफएमआरआई) तकनीक का उपयोग करके प्रतिभागियों के मस्तिष्क का स्कैन किया। इसका मकसद फोन के सीमित उपयोग से दिमाग पर पड़ने वाले प्रभावों को जांचना था।

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एक दिन में 2600 बार अपना फोन चेक करते हैं, फोन गुम जाने के खयाल से ही घबरा जाते हैं और फोन वाइब्रेट न भी कर रहा हो तब भी वाइब्रेशन महसूस करते हैं। इसे फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम कहते हैं; फोटो: आईस्टॉक

इस स्कैन से प्रतिभागियों के मस्तिष्क के उन क्षेत्रों में परिवर्तन देखे गए जो इच्छा और आनंद को नियंत्रित करते हैं। ये क्षेत्र खुशी महसूस करने, पुरस्कार पाने की चाहत या किसी चीज की लालसा से जुड़े हैं। यह बदलाव शराब या अन्य तरह के नशे की लत में देखे जाने वाले पैटर्न से मिलते-जुलते थे।

देखा जाए तो फोन का बहुत अधिक ज्यादा उपयोग भावनाओं, विचारों और सामाजिक जीवन को कई तरह से प्रभावित करता है। वैज्ञानिक भी इसके जरूरत से ज्यादा उपयोग के पड़ते प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं, क्योंकि यह न केवल मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है, साथ ही नशे की तरह ही लोग इसकी लत का शिकार भी बन सकते हैं।

दिमाग पर हावी होता स्मार्टफोन

इस अध्ययन में जिन युवाओं का चयन किया गया था, वो नियमित रूप से स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते थे। अध्ययन के दौरान 72 घंटे के फोन ब्रेक से पहले, उनमें स्मार्टफोन के इस्तेमाल और गेमिंग से जुड़ी किसी भी शारीरिक, मनोवैज्ञानिक या सामाजिक समस्या की गंभीरता से जांच की गई। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया गया कि क्या उन्हें किसी तरह की मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या तो नहीं है।

प्रतिभागियों ने अपने मस्तिष्क स्कैन से पहले अपने मिजाज, स्मार्टफोन की आदतों और लालसा के बारे में सवालों के जवाब दिए। फिर, उनसे 72 घंटों के लिए अपने फोन का सीमित इस्तेमाल करने के लिए कहा गया।

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तीन दिनों तक फोन का अधिक उपयोग न करने के बाद, प्रतिभागियों के मस्तिष्क का स्कैन किया गया। इस दौरान उन्हें विभिन्न तरह की छवियां दिखाई गई, जैसे प्रकृति के दृश्य, चालू और बंद स्मार्टफोन।

स्कैन से पता चला कि स्मार्टफोन का उपयोग सीमित करने से मस्तिष्क की गतिविधियों में डोपामाइन और सेरोटोनिन से जुड़े क्षेत्रों में बदलाव देखा गया। गौरतलब है कि यह क्षेत्र एक तरह के न्यूरोट्रांसमीटर हैं जो मिजाज, भावनाओं और लत को नियंत्रित करते हैं।

हालांकि, इन बदलावों को पूरी तरह से समझने के लिए और अधिक शोध की जरूरत है, लेकिन शुरुआती अध्ययन बताते हैं कि स्मार्टफोन का सीमित उपयोग करने से दिमाग की प्रतिक्रिया वैसी ही हो सकती है जैसी किसी आदत या नशे को छोड़ने पर होती है।

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि स्मार्टफोन के सीमित उपयोग से कुछ हद तक नशे की लत या मनपसंद भोजन की लालसा छोडने जैसा ही महसूस हो सकता है। इसका असर नियमित और काफी ज्यादा स्मार्टफोन देखने वालों में भी दर्ज किया गया।

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क्या मोबाइल को जरूरत से ज्यादा टाइम दे रहें हैं 'आप'

आज बच्चे मोबाइल फोन, लैपटॉप, कंप्यूटर आदि के इतने आदी हो गए हैं कि उनके लिए इसके बिना रहना नामुमकिन सा हो गया है जो न केवल उनकी शिक्षा बल्कि उनके स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है।

एक अन्य अध्ययन में भी सामने आया है कि यदि हम दिन में 2,600 बार अपना फोन चेक करते हैं, फोन गुम जाने के खयाल से ही घबरा जाते हैं और फोन वाइब्रेट न भी कर रहा हो तब भी वाइब्रेशन महसूस करते हैं, तो इसे फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम कहते हैं। यही नहीं मैसेज आने का अलर्ट भी मैसेज पढ़ने की तरह हमारा ध्यान भंग करने को काफी होता है।

स्क्रीन टाइम बढ़ने को लेकर हमारे मन में जो डर है उसके तीन बिंदु हैं- मानसिक स्वास्थ्य, एडिक्शन और अपने आसपास के वातावरण से जुड़ाव यानी लेवल ऑफ इंगेजमेंट। शोधों में ज्यादा स्क्रीन टाइम वाले टीनेजर्स और डिप्रेशन जैसी बीमारियों में महीन लेकिन महत्वपूर्ण जुड़ाव देखा गया है।

ऐसे में जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी आगे बढ़ रही है, यह समझना महत्वपूर्ण हो जाता है कि स्मार्टफोन से जुड़ी आदतें हमारे दिमाग को किस तरह प्रभावित कर रही हैं। यह जानकारी स्वस्थ ‘डिजिटल दिनचर्या’ को अपनाने में मददगार साबित हो सकती है।

देखा जाए तो डिजिटल तकनीकें किसी दोधारी तलवारों से कम नहीं, जिनका यदि सही उपयोग न किया जाए तो वो उपयोग करने वालों को ही नुकसान पहुंचा सकती हैं। ऐसा ही कुछ शिक्षा के क्षेत्र में स्मार्ट फोन जैसी डिजिटल तकनीकों की वजह से हो रहा है।

संयुक्त राष्ट्र ने अपनी नई रिपोर्ट में स्मार्टफोन के बढ़ते उपयोग पर चिंता जताते हुए कहा है कि “शिक्षा क्षेत्र में स्मार्ट फोन जैसी डिजिटल तकनीकों का उपयोग समझदारी से किए जाने की जरूरत है।“

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