“स्क्रीन टाइम” बच्चों को कहां ले जा रहा है?

बच्चों और युवाओं की फोन और सोशल मीडिया तक पहुंच को प्रतिबंधित करने की मांग कई देशों में तेजी से बढ़ी
फोटो: आईस्टॉक
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आज की तारीख में देश-दुनिया के अभिभावकों का सबसे अधिक समय इस बात पर माथापच्ची करते हुए खर्च हो रहा है कि वे अपने बच्चों को मोबाइल स्क्रीन से दूर कैसे रखें। इस संबंध में विश्व के कई देशों में इस पर कई बहसें और सरकारों द्वारा कई प्रकार के प्रतिबंध लगाने की तैयारी की जा रही है।

ब्रिटेन में दो महीने पहले डेजी ग्रीनवेल और क्लेयर फर्नीहॉफ ने अपने छोटे बच्चों को स्मार्टफोन से कैसे दूर रखा जाए, इसकी चर्चा के लिए उन्होंने एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया। जब उन्होंने इंस्टाग्राम पर भी अपनी योजनाओं के बारे में पोस्ट किया तो देखते ही देखते बड़ी संख्या में माता-पिता इसमें शामिल होने लगे। अब उनके समूह “स्मार्टफोन-फ्री चाइल्डहुड” में 60,000 से अधिक सदस्य बन चुके हैं। ये सभी इस बात पर बहस कर रहे हैं कि अपने बच्चों को मोबाइल जैसे राक्षसी उपकरणों से कैसे दूर रखा जाए।

ध्यान देने वाली बात यह है कि ब्रिटेन में स्थित यह एक अकेला समूह नहीं है जो बच्चों के स्क्रीन टाइम को लेकर चिंतित है। पिछले महीने यानी मार्च में अमेरिका के फ्लोरिडा राज्य ने 14 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने वाला एक कानून भी पारित किया है।

वहीं ब्रिटेन की सरकार 16 साल से कम उम्र के बच्चों को मोबाइल फोन की बिक्री पर ही प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है। इन चिंताओं को जोनाथन हैड्ट की हालिया किताब, “द एनक्सियस जेनरेशन” में भी शामिल किया गया है। जिसमें तर्क दिया गया है कि स्मार्टफोन और विशेष रूप से उनके माध्यम से एक्सेस किए जाने वाले सोशल नेटवर्क, “बचपन की पुनर्रचना” का कारण बन रहे हैं।

किताब में कहा गया है कि स्मार्टफोन और सोशल मीडिया बच्चों की दिनचर्या का एक बड़ा हिस्सा बन गए हैं। ब्रिटेन में हुए शोध के अनुसार, 12 साल की उम्र तक के लगभग हर बच्चे के पास एक फोन होता है। एक बार जब उन्हें इसकी जानकारी मिल जाती है, तो वे अपना अधिकांश स्क्रीन समय सोशल मीडिया पर ही बिताते हैं। गैलप के सर्वेक्षणों के अनुसार, अमेरिकी किशोर प्रतिदिन लगभग पांच घंटे सोशल ऐप्स पर बिताते हैं। यूट्यूब, टिकटॉक और इंस्टाग्राम सबसे लोकप्रिय हैं।

इसमें फेसबुक, दुनिया का सबसे बड़ा सोशल नेटवर्क और वह चौथे स्थान पर है। दूसरी ओर कहा जा रहा है कि समृद्ध दुनिया के अधिकांश हिस्सों में युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट आई है। एक रिपोर्ट के अनुसार कम से कम एक अमेरिकी किशोरों की हिस्सेदारी 2010 के बाद से 15 प्रतिशत से अधिक बढ़ गई है। इसके अनुसार 17 अमीर देशों में, किशोर लड़कियों और युवा महिलाओं के बीच आत्महत्या में तेजी से वृद्धि हुई है।

2010 के दशक में जैसे ही स्मार्टफोन और सोशल ऐप्स का चलन बढ़ा, मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट शुरू हो गई। कुछ अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि जो बच्चे सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताते हैं उनका मानसिक स्वास्थ्य हल्के उपयोगकर्ताओं की तुलना में खराब होता है।

द इकोनॉनिमस्ट के अनुसार 2017 में यूनिवर्सिडैड डी लास विवि के रॉबर्टो मोस्क्यूरा और उनके सहयोगियों ने अमेरिका में फेसबुक उपयोगकर्ताओं के एक समूह को एक सप्ताह के लिए मंच से दूर रहने के लिए कहा। परहेज करने वालों ने नियंत्रण समूह की तुलना में कम उदास होने की सूचना दी और अधिक विविध गतिविधियों में भाग लिया।

2018 में स्टैनफोर्ड और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक बार फिर अमेरिका में ऐसा ही प्रयोग किया। फेसबुक से एक महीने दूर रहने के बाद उनके डिटॉक्सिज ने नियंत्रण समूह की तुलना में अधिक खुशी महसूस की, उन्होंने ऑनलाइन कम समय बिताया, परिवार और दोस्तों के साथ अधिक समय बिताया और राजनीतिक रूप से कम ध्रुवीकृत हुए।

2018 के अध्ययन के लेखकों में से एक, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के मैथ्यू गेंटज को मानते हैं, “हमारे पास वास्तव में ठोस सबूत काफी सीमित हैं।” लेकिन, उनका तर्क है कि यदि आप यह सब एक साथ रखें, तो मुझे लगता है कि यह कहना पर्याप्त है कि इस बात की पर्याप्त संभावना है कि यह नुकसान बड़े और वास्तविक हैं। अधिकांश अध्ययन फेसबुक पर केंद्रित हैं, जो इन दिनों किशोरों के लिए मीडिया आहार का एक छोटा सा हिस्सा है। और वे अधिकतर अमेरिका में हैं। मोस्क्यूरा प्रयोग में पाया गया कि हालांकि लोगों ने कहा कि जब वे फेसबुक का उपयोग नहीं करते थे तो वे अधिक खुश थे।

ऐसे कुछ संकेत हैं कि जहां विशेषज्ञ इस बात पर विचार कर रहे हैं कि सोशल मीडिया की सबसे खराब स्थिति पर कैसे लगाम लगाई जाए, वहीं आम उपयोगकर्ता खुद ही इस पर काम कर रहे हैं कि ऐसा कैसे किया जाए। सार्वजनिक रूप से अपने बारे में पोस्ट करना कम होता जा रहा है। एक शोध फर्म गार्टनर के अनुसार, पिछले साल केवल 28 फीसदी अमेरिकियों ने कहा कि उन्हें अपने जीवन का ऑनलाइन दस्तावेजीकरण करने में मजा आया, जो 2020 में 40 फीसदी से कम है।

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