कड़वी हकीकत: जरूरी सर्जरी से वंचित रह जाते हैं हर साल 16 करोड़ मरीज

अंतराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन में यह बात कही गई है
कड़वी हकीकत: जरूरी सर्जरी से वंचित रह जाते हैं हर साल 16 करोड़ मरीज
Published on

नए वैश्विक अध्ययन में सामने आया है कि जरूरी सर्जरी आज भी दुनिया की एक बड़ी आबादी की पहुंच से बाहर है। खासकर कमजोर और मध्यम आय वाले देशों में लोगों के लिए यह एक कड़वी सच्चाई है। रिपोर्ट से पता चला है कि हर साल दुनिया भर में 16 करोड़ लोग जरूरी सर्जरी से वंचित रह जाते हैं, जो उनकी जान बचा सकती है।

यह वो करोड़ों लोग हैं जो ऐसी बीमारियों से जूझ रहे हैं, जिनका इलाज संभव है लेकिन व्यवस्था, संसाधनों और प्राथमिकता की कमी उन्हें मरने के लिए छोड़ देती है। शोधकर्ताओं ने भी चेताया है कि सस्ती और सुरक्षित सर्जरी तक सभी की पहुंच का लक्ष्य गंभीर रूप से पटरी से उतर चुका है।

ऐसे में 20 देशों के 60 स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक वैश्विक गठबंधन ने सर्जरी के इस संकट पर तत्काल कार्रवाई की मांग की है। अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि निम्न और मध्यम आय वाले महज 26 फीसदी देश ही जरूरी सर्जरी को 2 घंटे के भीतर उपलब्ध कराने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं, जबकि इनमें से कोई भी देश हर साल प्रति लाख लोगों पर 5,000 सर्जरी के मानक को हासिल नहीं कर पाया है।

इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट में प्रकाशित हुए हैं।

यह भी पढ़ें
बढ़ती मांग, घटता दान: क्या जलवायु संकट बन सकता है रक्त की कमी का कारण?
कड़वी हकीकत: जरूरी सर्जरी से वंचित रह जाते हैं हर साल 16 करोड़ मरीज

मानकों से कोसों दूर जमीनी हकीकत

रिपोर्ट के मुताबिक सर्जरी की गुणवत्ता भी एक बड़ी चिंता का विषय है। विडम्बना यह है कि हर साल दुनिया में 35 लाख वयस्कों की मौत सर्जरी के 30 दिनों के भीतर हो जाती है। यह आंकड़ा एड्स, टीबी और मलेरिया से होने वाली कुल मौतों (20 लाख) से भी कहीं बड़ा है। इतना ही नहीं हर साल करीब 5 करोड़ मरीज सर्जरी के बाद जटिलताओं से जूझते हैं, जिनमें घाव में होने वाला संक्रमण सबसे आम है।

यह समस्या किस कदर गंभीर है, इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 96 फीसदी संक्रमित घाव ऐसे होते हैं, जिनपर दवाएं आसानी से असर नहीं होती। मतलब की कहीं न कहीं वो एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी होते हैं, जिससे समस्या और गंभीर हो जाती है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक सर्जरी एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोध बढ़ाने में भी मुख्य भूमिका निभाती है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर अनील भांघु का कहना है, "सर्जरी कोई लक्जरी नहीं, बल्कि एक जीवन रक्षक और किफायती स्वास्थ्य सेवा है, जो मजबूत स्वास्थ्य व्यवस्था की नींव है। यदि इस क्षेत्र में तुरंत निवेश न किया गया, तो लाखों लोग ऐसी बीमारियों से यूं ही मरते रहेंगे, जिनका इलाज संभव है।"

यह भी पढ़ें
भारत में कैसे लगाई जा सकती है गैरजरूरी सिजेरियन डिलीवरी पर लगाम
कड़वी हकीकत: जरूरी सर्जरी से वंचित रह जाते हैं हर साल 16 करोड़ मरीज

ऐसे में रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि सर्जरी को एक अलग-थलग सेवा के रूप में नहीं, बल्कि स्वास्थ्य तंत्र का एक अहम हिस्सा माना जाना चाहिए। सर्जरी में निवेश से कई बीमारियों के इलाज में सुधार हो सकता है, क्योंकि इससे डायग्नोस्टिक्स, इंटेंसिव केयर और जरूरी दवाओं की पहुंच बढ़ती है।

खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में जहां स्तन, पेट, कोलन और रेक्टल कैंसर जैसी सर्जरी का विस्तार 8,84,000 लोगों को दोबारा काम पर लौटने में मदद कर सकता है।

अनुमान है कि इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था में हर साल 80 अरब डॉलर से अधिक का फायदा होगा। शोधकर्ताओं के मुताबिक ऐसे फंडिंग मॉडल विकसित किए जाने चाहिए जिनसे मरीजों को आर्थिक संकट का सामना न करना पड़े।

जेब पर भारी पड़ रहा इलाज

चिंता की बात है कि कमजोर और मध्यम आय वाले देशों में आधे से ज्यादा कैंसर मरीज सर्जरी का खर्च अपनी जेब से भर रहे हैं। इसकी वजह से उन्हें भारी आर्थिक बोझ और गरीबी का सामना करना पड़ता है।

शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया है कि भविष्य में आने वाली आपदाओं जैसे महामारी, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं और संघर्षों के समय सर्जिकल सेवाओं को मजबूत और लचीला बनाना भी जरूरी है। सर्जिकल सिस्टम में सर्कुलर इकोनॉमी के सिद्धांत अपनाकर ऑपरेटिंग थिएटर से निकलने वाले कचरे और कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है, जो अस्पताल के कुल उत्सर्जन का करीब 25 फीसदी तक होता है।

यह भी पढ़ें
आम नागरिकों के इलाज का मुख्य आधार हैं सरकारी अस्पताल, बनाए रखनी होगी प्रतिष्ठा: उच्च न्यायालय
कड़वी हकीकत: जरूरी सर्जरी से वंचित रह जाते हैं हर साल 16 करोड़ मरीज

इसके साथ ही, सर्जिकल नेतृत्व में लैंगिक असमानताओं को दूर किया जाना चाहिए, जिससे हाशिए पर रह रहे समुदायों को बेहतर पहुंच मिले।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सर्जरी न केवल स्वास्थ्य बल्कि आर्थिक उत्पादकता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी अहम है। मतलब की सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में भी यह योगदान दे सकती है।

यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर दिमित्री नेपोगोडिव का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, वैश्विक स्वास्थ्य बजट में हो रही कटौतियों के बीच सर्जरी एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है। हमें सर्जरी की पहुंच बढ़ाने के साथ-साथ उसकी गुणवत्ता भी बनाए रखनी होगी। इसके साथ ही हमें भविष्य की अनिश्चितताओं के लिए भी तैयार रहना होगा।"

उनके मुताबिक महामारी, जलवायु परिवर्तन और युद्ध जैसी घटनाएं आने वाले समय में इलाज में बाधा डाल सकती हैं, हालांकि कोविड-19 के बाद से ज्यादातर देशों ने इस तैयारी में बहुत कम कदम उठाए हैं।

यह अध्ययन एक गंभीर चेतावनी है कि अगर हम तुरंत प्रभावी कदम नहीं उठाएंगे, तो करोड़ों लोग अपनी जान गंवा सकते हैं। अब वक्त आ गया है कि सरकारें, स्वास्थ्य संस्थान और वैश्विक समुदाय मिलकर सर्जिकल सेवाओं को हर व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए ठोस कदम उठाएं। तभी हम एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य का सपना पूरा कर पाएंगे, जहां इलाज की कमी से लोग नहीं मरेंगे।

यह भी पढ़ें
डब्ल्यूएचओ ने मरीजों के अधिकारों को रेखांकित करने वाला पहला मरीज सुरक्षा अधिकार चार्टर किया लॉन्च
कड़वी हकीकत: जरूरी सर्जरी से वंचित रह जाते हैं हर साल 16 करोड़ मरीज

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in