
जलवायु परिवर्तन का बढ़ता असर अब हर क्षेत्र को चुनौती दे रहा है, जिससे स्वास्थ्य भी अछूता नहीं है। प्राकृतिक आपदाओं से लेकर बढ़ती बीमारियों तक, कई ऐसी समस्याएं हैं जो स्वास्थ्य सेवाओं को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं। इन्हीं खतरों के बीच एक और गंभीर समस्या दबे पांव आकार ले रही है और वो है जरूरतमंदों के लिए रक्त की उपलब्धता का संकट।
क्या आप जानते हैं, बदलते मौसम और बढ़ती बीमारियों के कारण भविष्य में खून की कमी एक बड़ी चुनौती बन सकती है। प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक नए अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के चलते दुनिया भर में रक्त की उपलब्धता खतरे में पड़ सकती है।
ऐसे में अगर समय रहते सही कदम न उठाए गए, तो यह संकट दुनिया भर में स्वास्थ्य क्षेत्र के सामने नई और भयावह मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
यूनिवर्सिटी ऑफ सनशाइन कोस्ट और ऑस्ट्रेलियन रेड क्रॉस लाइफब्लड के शोधकर्ताओं के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं। चरम मौसमी घटनाओं के साथ-साथ संक्रामक बीमारियां भी तेजी से पैर पसार रही हैं। इससे रक्तदान करने वालों की संख्या घटने के साथ खून की मांग तेजी से बढ़ सकती है।
लाइफब्लड की शोधकर्ता और फेलो डॉक्टर एल्वीना विएनेट ने इस समस्या पर प्रकाश डालते हुए प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है, "गर्मी, बाढ़, चक्रवात और जंगलों में धधकती आग जैसी आपदाएं अब पहले से अधिक और तीव्र होंगी। इससे लोगों की आवाजाही सीमित हो जाएगी, नतीजन रक्त एकत्र करने, उसे सुरक्षित रखने, जांच करने और उसे अस्पतालों तक पहुंचाने में बाधाएं सामने आ सकती है, जबकि रक्त की शेल्फ लाइफ बहुत छोटी होती है।"
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि “जब ऑस्ट्रेलिया में 'ट्रॉपिकल साइक्लोन अल्फ्रेड' आया था, तो ऑस्ट्रेलिया में रक्त आपूर्ति गंभीर रूप से प्रभावित हुई थी।“
अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता और एसोसिएट प्रोफेसर हेलेन फैड्डी के मुताबिक, यह पहला मौका है जब दुनिया में रक्त आपूर्ति श्रृंखला पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को विस्तार से समझने का प्रयास किया है। उन्होंने आशंका जताई है कि, 'डोनर के स्वास्थ्य से लेकर रक्त संग्रह, प्रसंस्करण, भंडारण और वितरण तक, जलवायु परिवर्तन का असर हर चरण पर हो सकता है।'
आपदाओं, बढ़ती बीमारियों से बढ़ रही रक्त की मांग
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि बढ़ते तापमान और बारिश के पैटर्न में आते बदलावों के कारण डेंगू, वेस्ट नाइल वायरस और मलेरिया जैसी मच्छरों से फैलने वाली बीमारियां नए इलाकों को निशाना बना सकती हैं। चूंकि यह बीमारियां रक्त के जरिए फैलती हैं, इससे रक्तदान करने वालों की संख्या घट सकती है।
वहीं दूसरी तरफ प्राकृतिक आपदाओं और बीमारियों की बढ़ती घटनाओं के कारण गर्भावस्था संबंधी जटिलताओं, हृदय रोगों और सिकल सेल रोग जैसी स्थितियों में रक्त की मांग बढ़ सकती है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक भविष्य में मरीजों के लिए सही रक्त खोजना और भी मुश्किल हो सकता है। समुद्र का स्तर बढ़ने से लोगों का पलायन बढ़ेगा, नतीजन अलग-अलग समुदायों के लिए रक्त की आवश्यकता बढ़ेगी। ऐसे में ज्यादा से ज्यादा रक्तदान मददगार साबित हो सकता है।
इसी तरह अदृश्य बीमारियां और गर्मी से जुड़ी समस्याएं भी रक्तदान करने वालों के साथ-साथ अस्पताल के कर्मचारियों और स्वयंसेवकों को प्रभावित कर सकती हैं। डॉक्टर फैड्डी के मुताबिक नई बीमारियां उभर सकती हैं, साथ ही गर्मी से बढ़ने वाली स्वास्थ्य समस्याएं जैसे रक्तचाप और पानी की कमी, मानसिक दबाव या 'जलवायु चिंता' भी रक्तदान करने वालों को प्रभावित कर सकती हैं।
ऐसे में शोधकर्ताओं ने इस बात पर जोर दिया गया है कि रक्त आपूर्ति के पारंपरिक तरीकों पर निर्भरता कम करनी होगी और ऐसी रणनीतियां अपनानी होंगी जो जलवायु संकट के समय में तेजी से प्रतिक्रिया दे सकें।
शोधकर्ताओं का सुझाव है कि सरकारों और रक्त सेवा एजेंसियों को भविष्य की तैयारी में अभी से जुटना होगा। इसके लिए जरूरी होगा कि चेतावनी प्रणालियों को और मजबूत किया जाए, बीमारियों की निगरानी बढ़ाई जाए, रक्तदान के नियमों में लचीलापन लाया जाए, आपातकाल में रक्त परिवहन के लिए वैकल्पिक रास्ते तैयार किए जाएं, और अस्पतालों को भी इन चुनौतियों के लिए तैयार किया जाए।
डॉक्टर फैडी के अनुसार, कुछ देशों में पहले से ही नवाचारों की शुरुआत हो चुकी है, जैसे सर्जरी के दौरान रक्त का पुनः उपयोग (सेल साल्वेज तकनीक), ड्रोन द्वारा रक्त आपूर्ति और संकट के समय 'वॉकिंग ब्लड बैंक' जैसे उपाय किए जा रहे हैं, जो रक्तदान को और भी प्रभावी बना सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने जोर दिया है कि पर्यावरण में हो रहे बड़े बदलावों के बीच, हमें अपनी रणनीतियों को भी नया रूप देना होगा, ताकि जीवन रक्षक रक्त हर जरूरतमंद तक सुरक्षित तरीके से सही समय पर पहुंच सके।