

विश्वव्यापी प्रसार: 2023 में लगभग 78.8 करोड़ (14 फीसदी वयस्क आबादी) क्रॉनिक किडनी डिजीज से प्रभावित हैं, जो 1990 की तुलना में लगभग दोगुना है।
मृत्यु दर में वृद्धि: क्रॉनिक किडनी डिजीज अब दुनिया के शीर्ष 10 मौत के कारणों में शामिल है और 2023 में इससे लगभग 15 लाख लोगों की मौत हुई।
मुख्य खतरा: रोग के सबसे बड़े कारण हैं हाई ब्लड शुगर (डायबिटीज), उच्च रक्तचाप और मोटापा, जो इसके बढ़ते प्रसार के लिए जिम्मेदार हैं।
हृदय रोग से संबंध: किडनी की खराबी दुनिया में हृदय रोग से होने वाली 12 फीसदी मौतों के लिए जिम्मेवार है और जीवन की गुणवत्ता को भी कम करती है।
पहचान और उपचार में चुनौतियां: अधिकांश मरीज शुरुआती चरणों में अनजाने में रहते हैं और डायलिसिस या ट्रांसप्लांट जैसी महंगी सुविधाओं की पहुंच कम-आय वाले देशों में बहुत सीमित है।
आज पूरी दुनिया एक नई और बढ़ती हुई स्वास्थ्य समस्या का सामना कर रही है जो है क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) यानी गुर्दों की लंबे समय ही बीमारी। हाल ही में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन ने यह चौंकाने वाला खुलासा किया है कि दुनिया भर में अब लगभग 78.8 करोड़ लोग (यानी लगभग 14 फीसदी वयस्क आबादी) किसी न किसी रूप में किडनी की बीमारी से जूझ रहे हैं। यह संख्या 1990 में 37.8 करोड़ थी, यानी तीन दशकों में यह लगभग दोगुनी हो गई है।
बढ़ते आंकड़े और गंभीर स्थिति
यह नया अध्ययन अमेरिका के एनवाईयू लैंगोन हेल्थ, यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो, और इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) द्वारा किया गया है, जो ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) 2023 परियोजना का हिस्सा है। अध्ययन के अनुसार, 2023 में करीब 15 लाख लोगों की मौत केवल किडनी की बीमारी से हुई, जो 1993 की तुलना में लगभग छह फीसदी अधिक है। पहली बार, क्रॉनिक किडनी डिजीज दुनिया में मौत के शीर्ष 10 कारणों में शामिल हो गई है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि अध्ययन दिखाता है कि क्रॉनिक किडनी डिजीज अब एक आम, घातक और तेजी से बढ़ती हुई स्वास्थ्य समस्या बन गई है। इसे अब कैंसर, हृदय रोग और मानसिक स्वास्थ्य की तरह वैश्विक प्राथमिकता माना जाना चाहिए।
किडनी डिजीज क्या है?
क्रॉनिक किडनी डिजीज वह स्थिति है जब गुर्दे धीरे-धीरे अपनी क्षमता खो देते हैं, यानी वे शरीर के खून से अपशिष्ट पदार्थ और अतिरिक्त तरल पदार्थ को सही ढंग से बाहर नहीं निकाल पाते।
शुरुआती चरणों में यह बीमारी अक्सर बिना लक्षणों के रहती है, लेकिन जैसे-जैसे गुर्दों की क्षमता घटती जाती है, व्यक्ति को थकान, सूजन, भूख न लगना, पेशाब में बदलाव और सांस लेने में कठिनाई जैसी समस्याएं होने लगती हैं।
अगर समय पर इलाज न मिले, तो यह गुर्दों का पूरी तरह से काम बंद कर देना (किडनी फेल्योर) में बदल सकती है, जिसके बाद मरीज को डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है।
प्रमुख कारण
इस अध्ययन के अनुसार, किडनी की बीमारी के तीन सबसे बड़े कारण हैं:
ब्लड शुगर का बढ़ना (डायबिटीज)
उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर)
मोटापा (उच्च बॉडी मास इंडेक्स)
ये तीनों आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं और विकसित व विकासशील दोनों प्रकार के देशों में तेजी से बढ़ रहे हैं।
हृदय रोग से जुड़ा खतरा
किडनी की बीमारी केवल गुर्दों को ही प्रभावित नहीं करती, बल्कि यह दिल के रोगों का बड़ा कारण भी बन रही है। अध्ययन के अनुसार, दुनिया में हृदय रोग से होने वाली 12 फीसदी मौतों में किडनी की खराबी भी एक योगदान कारक है। साथ ही, 2023 में यह बीमारी दुनिया में जीवन की गुणवत्ता कम करने वाले 12वें प्रमुख कारण के रूप में सामने आई है।
पहचान और इलाज की चुनौतियां
सबसे बड़ी चिंता यह है कि किडनी की बीमारी कम जानी और कम जांची जाती है। बहुत से लोगों को यह तब पता चलता है जब बीमारी अपने एडवांस चरण में पहुंच चुकी होती है। विशेषकर अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिका जैसे कम आय वाले क्षेत्रों में डायलिसिस और ट्रांसप्लांट की सुविधा बहुत सीमित है और आम लोगों की पहुंच से बाहर है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि किडनी की बीमारी का शुरुआती चरण में पता लगाने के लिए अधिक लोगों को मूत्र परीक्षण (यूरिन टेस्ट) करवाने की जरूरत है। इसके साथ ही यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जिन लोगों को बीमारी है, वे इलाज का खर्च उठा सकें।
नई दवाएं और उम्मीद
पिछले पांच सालों में ऐसी नई दवाएं आई हैं जो किडनी डिजीज की प्रगति को धीमा कर सकती हैं और दिल के दौरे, स्ट्रोक और हृदय विफलता के खतरे को भी घटा सकती हैं। लेकिन अभी इन दवाओं की पहुँच विश्व स्तर पर सीमित है। आने वाले वर्षों में इनके प्रभाव दिखाई देने की उम्मीद है।
वैश्विक नीति और आगे का रास्ता
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मई 2025 में क्रॉनिक किडनी डिजीज को अपनी वैश्विक योजना में शामिल किया है, जिसका लक्ष्य 2030 तक गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) से होने वाली समयपूर्व मौतों में एक-तिहाई की कमी करना है।
इस दिशा में आम जनता में जागरूकता बढ़ाने, नियमित स्वास्थ्य जांच (विशेषकर मूत्र और रक्त परीक्षण) को बढ़ावा देने की और गरीब देशों में इलाज को सुलभ व किफायती बनाने की जरूरत है।
गुर्दों की बीमारी अब कोई “शांत बीमारी” नहीं रही। यह धीरे-धीरे दुनिया की सबसे गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक बन गई है। अगर हम शुरुआती जांच, संतुलित आहार, शारीरिक सक्रियता और उच्च रक्तचाप व शुगर के नियंत्रण पर ध्यान दें, तो इस बीमारी से बचाव संभव है।
आज जरूरत है कि सरकारें, स्वास्थ्य संस्थान और आम लोग मिलकर इसे एक वैश्विक स्वास्थ्य प्राथमिकता के रूप में स्वीकार करें, ताकि आने वाले समय में लाखों लोगों की जान बचाई जा सके।