

प्रभाव का पैमाना: हर 19 में से एक किसान स्थायी क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) से प्रभावित।
अज्ञात कारण: आधे मामलों का कारण सामान्य बीमारियों से नहीं, इसे सीकेडीयू कहा जाता है।
गर्मी और काम: लंबे समय तक धूप में काम और अत्यधिक गर्मी सीकेडी के खतरे से जुड़े।
अस्थायी गुर्दे की चोट: गर्मियों में छोटे, चुपचाप होने वाले गुर्दे के नुकसान लंबे समय में स्थायी बीमारी का कारण बन सकते हैं।
निवारक उपाय: पर्याप्त पानी, आराम, छाया, शौचालय, शिक्षा और तंबाकू निषेध से खतरे को कम किया जा सकता है।
तमिलनाडु के कई गांवों में अब एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या सामने आई है। हाल ही में किए गए एक बड़े राज्यव्यापी अध्ययन ने बताया कि हर 19 में से एक किसान को गुर्दे की स्थायी बीमारी (क्रोनिक किडनी डिजीज) है। इसके आधे मामले तो ऐसे हैं जिनकी वजह डायबिटीज या हाई ब्लड प्रेशर जैसी सामान्य बीमारियों से नहीं समझाई जा सकती। इसे अज्ञात कारणों से होने वाली क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडीयू) कहते हैं।
यह अध्ययन लैंसेट रीजनल हेल्थ - साउथ ईस्ट एशिया में प्रकाशित हुआ है और इसे राज्य के किसानों में पहली बार बड़े पैमाने पर किया गया। इसमें 3,350 वयस्कों की जांच की गई और उनके स्वास्थ्य को दो बार परखा गया, एक बार गर्मियों में और फिर तीन महीने बाद सर्दी के मौसम में।
कैसे किया गया अध्ययन
शोधकर्ताओं ने तमिलनाडु को पांच कृषि-जलवायु क्षेत्रों में बांटा और हर क्षेत्र से गांव-गांव जाकर नमूने लिए गए। हर प्रतिभागी का रक्त परीक्षण और स्वास्थ्य जांच की गई।
अगर किसी के रक्त परीक्षण में गुर्दे की कार्यक्षमता कम पाई गई, तो उसे तीन महीने बाद दोबारा बुलाया गया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि गुर्दे की समस्या स्थायी है या अस्थायी।
गुर्दे की कार्यक्षमता मापने के लिए अनुमानित ग्लोमेरुलर निस्पंदन दर (ईजीएफआर) का इस्तेमाल किया गया। यह रक्त में क्रिएटिनिन की मात्रा से पता चलता है। जब ईजीएफआर कम होता है, तो गुर्दा अपनी सफाई क्षमता खो देता है।
क्या कहते हैं नतीजे
कुल प्रतिभागियों में 5.31 फीसदी को गुर्दे की स्थायी बीमारी (क्रोनिक किडनी डिजीज) थी। इनमें से लगभग आधे अज्ञात कारणों से होने वाली क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडीयू) पाया गया।
अस्थायी गुर्दे की समस्या
पहले दौर में 584 लोगों में असामान्य गुर्दे की जांच मिली, लेकिन तीन महीने बाद केवल 178 लोगों में ही यह बनी रही। बाकी 406 लोगों में समस्या अस्थायी थी। इसे उपनैदानिक तीव्र गुर्दे की चोट (एकेआई) कहते हैं। मतलब गुर्दा थोड़े समय के लिए प्रभावित हुआ, फिर ठीक हो गया। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्मियों में छोटे-छोटे गुर्दे के नुकसान लंबे समय में स्थायी बीमारी का कारण बन सकते हैं।
कौन लोग हैं खतरे में?
उम्र बढ़ना, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, एनीमिया, कम शिक्षा वाले। जीवन शैली: तंबाकू का इस्तेमाल और लंबे समय तक धूप में काम।
गर्मी का असर
शोधकर्ताओं ने शरीर पर महसूस होने वाली गर्मी का सार्वभौमिक तापीय जलवायु सूचकांक से आंकलन किया।
38 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान वाले दिन “बहुत अधिक गर्मी का तनाव” दिखाते हैं।
यह तापमान नक्शे और सीकेडी के नक्शे से लगभग मेल खाते हैं, सबसे ज्यादा सीकेडी (7.7 फीसदी) - उत्तर-पूर्व तमिलनाडु (गरम इलाका)। सबसे कम सीकेडी (2.16 फीसदी) - उत्तर-पश्चिम तमिलनाडु (ठंडा इलाका)।
शोध में कहा गया है कि लक्षण आम लोगों के लिए नहीं दिखते, अधिकतर लोगों में कोई स्पष्ट लक्षण नहीं थे। केवल 1.64 फीसदी ने शरीर में सूजन या पानी की समस्या बताई। लगभग 13 फीसदी ने कहा कि उन्हें रात में दो से अधिक बार पेशाब करने के लिए उठना पड़ता है। यानी बीमारी शुरुआत में चुपचाप होती है और लोगों को पता नहीं चलता।
शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कई सुझाव दिए हैं:
नियमित जांच: किसानों की सालाना ईजीएफआर और यूरिन टेस्ट होना चाहिए।
गर्मी से बचाव: हर घंटे कम से कम 750 मिली पानी पीना चाहिए।
हर घंटे 15 मिनट का आराम जरूरी।
छाया और शौचालय की सुविधा भी जरूरी।
शिक्षा और जीवनशैली सुधार: शिक्षा का विस्तार और तंबाकू निषेध कार्यक्रम।
शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि इस पर शोध करने की जरूरत है। छोटे, अस्थायी गुर्दे के नुकसान के लंबे समय में असर को समझना।
खेत में रसायनों और धूप के प्रभाव का अध्ययन करना शामिल है।
शोध की सीमाएं
सभी का अल्ट्रासाउंड या बायोप्सी नहीं किया गया। खेत में प्रत्यक्ष तापमान या रसायनों का मापन नहीं हुआ। इसलिए सीधे कारण-प्रभाव की पुष्टि नहीं की जा सकती है।
यह अध्ययन बताता है कि तमिलनाडु के किसानों में सीकेडी एक गंभीर समस्या है। हर 19 में से एक किसान स्थायी सीकेडी से प्रभावित पाया गया। लगभग आधे मामलों का कारण अज्ञात था। गर्मियों में छोटे-छोटे गुर्दे के नुकसान लंबी अवधि में बीमारी का कारण बन सकते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि पानी, आराम और छाया जैसी सुविधाएं तुरंत लागू की जानी चाहिए। साथ ही सामाजिक जागरूकता, शिक्षा और तंबाकू निषेध से भी जोखिम कम हो सकता है।
गर्मी और लंबे समय तक धूप में काम करना सिर्फ अस्थायी परेशानी नहीं, बल्कि लंबी बीमारी की शुरुआत हो सकती है। अगर सरकार और समाज समय रहते कदम उठाएं, तो किसानों को सुरक्षित रखा जा सकता है।