किडनी की समस्या से पीड़ित हैं पांच फीसदी भारतीय बच्चे व किशोर : अध्ययन

अध्ययन के मुताबिक आंध्र प्रदेश, तेलंगाना व पश्चिम बंगाल में किडनी में खराबी के सबसे अधिक मामले सामने आए हैं
अध्ययन के मुताबिक, 4.9 प्रतिशत बच्चे और किशोर, जो प्रति 10 लाख की जनसंख्या पर लगभग 49,000 खराब किडनी फंक्शन की समस्या से पीड़ित हैं।
अध्ययन के मुताबिक, 4.9 प्रतिशत बच्चे और किशोर, जो प्रति 10 लाख की जनसंख्या पर लगभग 49,000 खराब किडनी फंक्शन की समस्या से पीड़ित हैं।फोटो साभार: आईस्टॉक
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एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में लगभग पांच प्रतिशत बच्चे और किशोर किडनी, गुर्दे के सही से काम न करने या खराब किडनी फंक्शन से पीड़ित हैं। किडनी को नुकसान पहुंचने से जैसे-जैसे समय बीतता है यह समस्या और भी बदतर हो जाती है जो क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) कह लाती है।

यह अध्ययन बठिंडा और विजयपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान और जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ इंडिया के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। इस नए अध्ययन को स्प्रिंगर लिंक नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

यह एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है और भारत में इसके कारण कितने बच्चों और किशोर पीड़ित हैं इसका सही आंकड़ा नहीं है। यह अध्ययन 2016 से 18 के बीच पांच से 19 वर्ष की आयु के 24,690 बच्चों और किशोरों के राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण पर आधारित है।

अध्ययन के परिणामों से पता चला कि 4.9 प्रतिशत बच्चे और किशोर, जो प्रति 10 लाख की जनसंख्या पर लगभग 49,000 खराब किडनी फंक्शन की समस्या से पीड़ित हैं।

राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण 2016-18 के मुताबिक, बच्चों और किशोरों में किडनी की खराब कार्यप्रणाली की राज्यवार व्यापकता
राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण 2016-18 के मुताबिक, बच्चों और किशोरों में किडनी की खराब कार्यप्रणाली की राज्यवार व्यापकतासोर्स : स्प्रिंगर लिंक पत्रिका

अध्ययनकर्ता ने अध्ययन के हवाले से कहा कि मुख्य समस्याओं में ग्रामीण निवास, मताओं की शिक्षा में कमी और शारीरिक विकास न हो पाना या बौनापन शामिल हैं। इन कारणों से निपट कर बाल स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है।

अध्ययन में कहा गया है कि, पुरुषों और ग्रामीण क्षेत्रों में किडनी की खराब कार्यप्रणाली का प्रचलन सबसे अधिक पाया गया। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, उसके बाद तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक मामले सामने आए, जबकि तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, राजस्थान और केरल में यह प्रचलन सबसे कम था।

अध्ययनकर्ता ने अध्ययन में कहा, भारतीय बच्चों और किशोरों में किडनी की खराब कार्यप्रणाली का सबसे अधिक प्रचलन इस बढ़ते सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे से निपटना जरूरी है। इसके लिए उन लोगों तो पहुंचना जो इस समस्या से जूझ रहे हैं, इस पर तत्काल नीति बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने आगे कहा राष्ट्रीय स्वास्थ्य में बाल चिकित्सा किडनी स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने का समय आ गया है।

बच्चों में क्रोनिक किडनी रोग से बचाव के तरीके

शोधकर्ताओं ने बच्चों में क्रोनिक किडनी रोग से बचने के तरीके भी सुझाए हैं, इसमें नियमित जांच और मूत्र परीक्षण करना, क्योंकि वे किडनी रोग का जल्द पता लगाने में मदद कर सकते हैं। रोग के बढ़ने को प्रबंधित करने और रोकने में शुरुआती हस्तक्षेप बहुत जरूरी है। स्वस्थ आहार, संतुलित आहार जिसमें सोडियम, फास्फोरस और पोटेशियम कम हो, किडनी के कार्य को बनाए रखने में मदद कर सकता है।

साथ ही, बच्चों को फल, सब्जियां, साबुत अनाज और प्रोटीन खाने के लिए प्रोत्साहित करना और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों और स्नैक्स से बच्चों को दूर करना, ऐसे भोजन जिनमें चीनी और नमक अधिक होता है। इस बात को भी सुनिश्चित करना कि बच्चा पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ पीता है जो किडनी के समुचित कार्य में मदद करता है। साथ ही, उन्हें नियमित रूप से पानी पीने के लिए प्रोत्साहित करना बहुत जरूरी है।

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