पुणे में जीबीएस के प्रकोप और जल प्रदूषण के बीच कनेक्शन पर एनजीटी ने मांगा जवाब

अदालत ने निर्देश दिया है कि अधिकारियों को यह पुष्टि करनी होगी कि आवेदन में किए गए दावे सही हैं या नहीं और यह बताना होगा कि इस बारे में क्या कार्रवाई की गई है
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, जीबीएस की जांच व लक्षणों और न्यूरोलॉजिकल जांच के निष्कर्षों पर आधारित है, जिसमें डीप-टेंडन रिफ्लेक्स में कमी या नुकसान शामिल है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, जीबीएस की जांच व लक्षणों और न्यूरोलॉजिकल जांच के निष्कर्षों पर आधारित है, जिसमें डीप-टेंडन रिफ्लेक्स में कमी या नुकसान शामिल है। फोटो साभार: आईस्टॉक
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पुणे और पिंपरी-चिंचवाड़ नगर निगमों को उन आरोपों का जवाब देने का निर्देश दिया है कि जल प्रदूषण के कारण पुणे और पिंपरी-चिंचवाड़ क्षेत्रों में गुइलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) हो रहा है।

6 मार्च, 2025 को अदालत ने निर्देश दिया है कि अधिकारियों को यह पुष्टि करनी होगी कि आवेदन में किए गए दावे सही हैं या नहीं और यह बताना होगा कि क्या कार्रवाई की गई है। एनजीटी की पश्चिमी बेंच इस मामले में अगली सुनवाई 16 अप्रैल, 2025 को करेगी।

गौरतलब है कि विधि के छात्रों द्वारा यह आवेदन इस प्रार्थना के साथ दायर किया गया था कि पुणे नगर निगम (पीएमसी) और पिंपरी-चिंचवाड़ नगर निगम (पीसीएमसी) को गुइलेन बैरे सिंड्रोम से प्रभावित क्षेत्रों में साफ पानी उपलब्ध कराने और जल गुणवत्ता की नियमित जांच करने को कहा जाए, क्योंकि गुइलेन बैरे सिंड्रोम दूषित पानी से होने वाली बीमारी है।

आवेदन में पुणे जिला कलेक्टर, महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) और महाराष्ट्र के जल आपूर्ति विभाग को निर्देश देने का अनुरोध किया है कि वे पुणे और पिंपरी-चिंचवाड़ में जल प्रदूषण के सभी स्रोतों की पहचान करें और उन्हें दूर करें, ताकि बीमारी को और अधिक फैलने से रोका जा सके।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, जीबीएस की जांच व लक्षणों और न्यूरोलॉजिकल जांच के निष्कर्षों पर आधारित है, जिसमें डीप-टेंडन रिफ्लेक्स में कमी या नुकसान शामिल है।

इसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और शहरी विकास मंत्रालय से जीबीएस रोगियों को चिकित्सा देखभाल, उपचार और वित्तीय सहायता प्रदान करने का भी अनुरोध किया गया है।

प्रदूषण फैलाने वालों से वसूला जाए भुगतान

आवेदन में पीएमसी और पीसीएमसी को निर्देश देने का अनुरोध किया है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र में प्रबंधित सभी कुओं में पानी की गुणवत्ता की जांच करें और प्रदूषण को दूर करें, ताकि उन्हें सुरक्षित रूप से बहाल किया जा सके।

आवेदन में यह भी अनुरोध किया गया है कि अधिकारियों को "प्रदूषण करने वाले को भुगतान करना होगा" नियम के तहत जवाबदेह ठहराया जाए और संबंधित बीमारी के प्रसार में लापरवाही के लिए जुर्माना लगाया जाए।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, जीबीएस की जांच व लक्षणों और न्यूरोलॉजिकल जांच के निष्कर्षों पर आधारित है, जिसमें डीप-टेंडन रिफ्लेक्स में कमी या नुकसान शामिल है।

आवेदकों ने बताया है कि पुणे में जीबीएस के 166 मामले सामने आए हैं, जो संभवतः दूषित पेयजल के कारण हुए हैं। वहां अब तक पांच लोगों की मौत हो चुकी है, 21 वेंटिलेटर पर हैं, 61 आईसीयू में हैं और 52 को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।

इसके समर्थन में, आवेदकों की ओर से पेश वकील ने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि किरकटवाड़ी, नांदेड़ और धायरी क्षेत्रों से लिए गए पानी के नमूनों में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया और ई कोली का स्तर बहुत अधिक था, जो प्रदूषण का संकेत है।

गौरतलब है कि गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) प्रतिरक्षा प्रणाली से जुड़ा एक दुर्लभ ऑटोइम्यून विकार है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ही स्वस्थ तंत्रिकाओं (नर्व्स) पर हमला करने लगती है।

इसके चलते मांसपेशियों में कमजोरी आ सकती है। साथ ही उनका सुन्न होना या दर्द जैसे लक्षण सामने आते हैं। वहीं इसके गंभीर मामलों में पक्षाघात तक हो सकता है। यह विकार तेजी से बढ़ता है और जीवन के लिए खतरा बन सकता है।

जीबीएस के अधिकांश मामलों में मानव और पोल्ट्री व मवेशियों के आंत में रहने वाला कैम्पिलोबैक्टर जेजुनाई बैक्टीरिया प्रमुख कारण बनता है।

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