चुपचाप बढ़ रहा बच्चों का ब्लड प्रेशर: दो दशकों में दोगुणा हुआ संकट: लैंसेट रिपोर्ट

दो दशकों में दोगुने हुए उच्च रक्तचाप के मामले, खतरे में 11 करोड़ से अधिक बच्चे, कई बच्चों में नियमित जांच में भी सामने नहीं आती बीमारी
अध्ययन से पता चला है कि दुनिया में 19 वर्ष या उससे छोटे 11.4 करोड़ बच्चे उच्च रक्तचाप की समस्या से जूझ रहे हैं; फोटो: आईस्टॉक
अध्ययन से पता चला है कि दुनिया में 19 वर्ष या उससे छोटे 11.4 करोड़ बच्चे उच्च रक्तचाप की समस्या से जूझ रहे हैं; फोटो: आईस्टॉक
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सारांश
  • लैंसेट रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो दशकों में बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर के मामले दोगुने हो गए हैं।

  • 2000 में जहां करीब 3.2 फीसदी बच्चे हाई ब्लड प्रेशर का शिकार थे, वहीं 2020 में यह आंकड़ा बढ़कर 6.2 फीसदी को पार कर गया है।

  • मतलब की दुनिया में 19 वर्ष या उससे छोटे 11.4 करोड़ बच्चे इस समस्या से जूझ रहे हैं।

  • अध्ययन ने चेताया है कि यह बढ़ता खतरा आने वाले वर्षों में बच्चों के दिल और किडनी की बीमारियों को कहीं

  • 9.2 फीसदी बच्चे ‘मास्क्ड हाइपरटेंश’ से जूझ रहे हैं। बता दें कि ‘मास्क्ड हाइपरटेंशन’ ऐसी स्थिति है जिसमें ब्लड प्रेशर सामान्य जांच में तो ठीक दिखता है, लेकिन घर या क्लिनिक में 24 घंटे की गई निगरानी में बढ़ा मिलता है।

  • अध्ययन के मुताबिक मोटापे से ग्रस्त 19 फीसदी बच्चे हाई ब्लड प्रेशर का शिकार हैं। वहीं स्वस्थ वजन वाले बच्चों में यह दर महज 2.4 फीसदी दर्ज की गई। यानी मोटापे से ग्रस्त बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर का खतरा आठ गुणा अधिक है।

किताबों, खिलौनों के बीच जिन बच्चों को चिंता से कोसों दूर होना चाहिए, वे अब दिल और किडनी से जुड़ी बीमारियों के शुरुआती जोखिम में जी रहे हैं। एक नए वैश्विक अध्ययन से पता चला है पिछले दो दशकों के दौरान बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर के मामले करीब दोगुने हो गए हैं।

अध्ययन के मुताबिक, 2000 में जहां करीब 3.2 फीसदी बच्चे हाई ब्लड प्रेशर का शिकार थे, वहीं 2020 में यह आंकड़ा बढ़कर 6.2 फीसदी को पार कर गया है। मतलब की दुनिया में 19 वर्ष या उससे छोटे 11.4 करोड़ बच्चे इस समस्या से जूझ रहे हैं।

द लैंसेट चाइल्ड एंड अडोलेसेंट हेल्थ में प्रकाशित इस अध्ययन ने चेताया है कि यह बढ़ता खतरा आने वाले वर्षों में बच्चों के दिल और किडनी की बीमारियों को कहीं ज्यादा गंभीर बना सकता है।

अध्ययन का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि करीब 9.2 फीसदी बच्चे ‘मास्क्ड हाइपरटेंश’ से जूझ रहे हैं। बता दें कि ‘मास्क्ड हाइपरटेंशन’ ऐसी स्थिति है जिसमें ब्लड प्रेशर सामान्य जांच में तो ठीक दिखता है, लेकिन घर या क्लिनिक में 24 घंटे की गई निगरानी में बढ़ा मिलता है।

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इसका मतलब है कि नियमित हेल्थ चेकअप में उनका हाई बीपी अक्सर पकड़ा ही नहीं जाता। नतीजा यह कि लाखों बच्चे बिना पहचाने, खामोशी से बढ़ते इस खतरे के साथ जी रहे हैं।

मोटापे से ग्रस्त बच्चों में आठ गुणा ज्यादा खतरा

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि मोटापा बचपन में उच्च रक्तचाप का सबसे बड़ा कारण बन गया है। आंकड़ों के मुताबिक मोटापे से ग्रस्त 19 फीसदी बच्चे हाई ब्लड प्रेशर का शिकार हैं। वहीं स्वस्थ वजन वाले बच्चों में यह दर महज 2.4 फीसदी दर्ज की गई।

यानी मोटापे से ग्रस्त बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर का खतरा आठ गुणा अधिक है।

तेजी से बढ़ रहा प्री-हाइपरटेंशन

स्टडी में यह भी सामने आया है कि 8.2 फीसदी बच्चे और किशोर अब प्री-हाइपरटेंशन का शिकार हैं। गौरतलब है कि प्री-हाइपरटेंशन एक ऐसी स्थिति है, जहां से शरीर में उच्च रक्तचाप की शुरूआत होती है। इसे स्टेज-1 हाइपरटेंशन भी कहा जाता है। प्रीहाइपरटेंशन की स्थिति तब बनती है, जब ब्लड प्रेशर सामान्य से तो ऊपर होता है लेकिन उस स्तर तक नहीं पहुंचा होता जिसे हाइपरटेशन माना जाए।

गौरतलब है कि प्री-हाइपरटेंशन सबसे ज्यादा किशोरों में देखा गया, जहां इसकी दर 11.8 फीसदी है, जबकि करीब सात फीसदी छोटे बच्चों इस समस्या का शिकार हैं। अध्ययन में पाया गया कि 14 साल की उम्र के आसपास बच्चों का बीपी सबसे तेजी से बढ़ता है, और यह बढ़त खास तौर पर लड़कों में ज्यादा स्पष्ट दिखती है।

डॉक्टरों के मुताबिक, प्री-हाइपरटेंशन आगे चलकर आसानी से हाई ब्लड प्रेशर में बदल सकता है।

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क्यों जरूरी है नियमित जांच

अध्ययन में पाया गया कि सिर्फ डॉक्टर के क्लिनिक में बीपी मापने से कई बार गलत तस्वीर सामने आती है। उदाहरण के लिए अध्ययन में लगातार तीन बार क्लिनिक विजिट में बीपी मापने पर हाई बीपी की दर करीब 4.3 फीसदी मिली। लेकिन जब घर या 24 घंटे की एम्बुलेटरी बीपी मॉनिटरिंग शामिल की गई तो यह दर बढ़कर 6.7 फीसदी हो गई।

यानी बड़ी संख्या में बच्चे या तो गलत तरीके से सामान्य मान लिए जाते हैं या फिर सिर्फ क्लिनिक में घबराकर बीपी बढ़ा हुआ दिखाते हैं (व्हाइट-कोट हाइपरटेंशन), जिसकी दर 5.2 फीसदी पाई गई।

इस बारे में अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर इगोर रुडान का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, "20 वर्षों में बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर का दोगुना होना एक बहुत बड़ी चेतावनी है। अच्छी बात यह है कि अगर अभी जांच और रोकथाम पर ध्यान दिया जाए, तो भविष्य की बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं से बच्चों को बचाया जा सकता है।“

चीन के झेजियांग यूनिवर्सिटी और अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता डॉक्टर पेज सॉन्ग का कहना है, बच्चों में हाई बीपी अब उतना विरला नहीं है, जितना पहले माना जाता था। ऐसे में अब पहले से ज्यादा जरूरी है कि जिन बच्चों पर इसका खतरा मंडरा रहा है, उनकी समय रहते पहचान हो और उन्हें रोकथाम व इलाज की बेहतर सुविधा मिले।

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बचपन में ही इस समस्या को संभालना जरूरी है, ताकि बड़े होने पर गंभीर बीमारियों का खतरा कम हो सके।“

उनके मुताबिक सिर्फ क्लिनिक में बीपी मापने से वास्तविक स्थिति का अंदाजा नहीं लगता। समय रहते पहचान और इलाज बेहद जरूरी है, क्योंकि दिल की बीमारियों की शुरुआत अब बचपन में ही दिखाई देने लगी है।

क्या किया जाए आगे?

विशेषज्ञों का मानना है कि अब स्वास्थ्य प्रणालियों को बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर की जांच को सामान्य प्रोटोकॉल का हिस्सा बनाना होगा। ज्यादा से ज्यादा घर और 24 घंटे की मॉनिटरिंग को बढ़ावा देना होगा।

डॉक्टरों, परिवारों और नीति-निर्माताओं को इस खतरे के प्रति जागरूक करना जरूरी है। साथ ही मोटापे पर नियंत्रण, नियमित व्यायाम और संतुलित खानपान को प्राथमिकता देनी होगी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी 'ग्लोबल रिपोर्ट ऑन हाइपरटेंशन 2025' के मुताबिक दुनिया भर में करीब 140 करोड़ उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं। मतलब की वैश्विक आबादी का करीब 34 फीसदी हिस्सा इस समस्या से जूझ रहा है।

भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो देश में 21 करोड़ से ज्यादा वयस्क हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं, जिनमें से 17 करोड़ का रक्तचाप अनियंत्रित है।

चिंता की बात यह है कि इनमें से महज 39 फीसदी (8.22 करोड़) ही जानते हैं कि वो इस समस्या से पीड़ित हैं, जबकि करीब 83 फीसदी मरीजों यानी 17.3 करोड़ से ज्यादा का रक्तचाप नियंत्रित नहीं है। मतलब कि देश में हाई ब्लड प्रेशर के महज 17 फीसदी मरीजों में ही रक्तचाप नियंत्रित है।

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