देश में जिस तरह से खानपान की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है और जीवनशैली बदल रही है, उसके चलते स्वास्थ्य से जुड़ी अनगिनत समस्याएं पैदा हो रही हैं, ऊपर से तनाव यह सभी मिलकर भारतीयों को अंदर ही अंदर घुन की तरह खाए जा रहे हैं। इन्हीं स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है प्री-हाइपरटेंशन।
क्या आप जानते हैं कि आज भारत का हर तीसरा व्यक्ति प्री-हाइपरटेंशन की समस्या से जूझ रहा है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इसपर किए नए अध्ययन में खुलासा किया है कि देश में करीब 34 फीसदी लोग प्री-हाइपरटेंशन का शिकार हैं। वहीं यदि देश में जिलों के आधार पर देखें तो यह आंकड़ा 15.6 फीसदी से 63.4 फीसदी दर्ज किया गया है।
आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश के भोपाल में प्री-हाइपरटेंशन की दर सबसे कम 15.6 फीसदी दर्ज की गई। वहीं जम्मू-कश्मीर के राजौरी में यह 63.4 फीसदी रही। इसी तरह अनंतनाग में भी सर्वे किए गए 55.8 फीसदी लोग इसका शिकार थे।
यदि भारत के सभी जिलों को देखें तो 25 जिलों में प्री-हाइपरटेंशन का प्रसार सबसे अधिक यानी 50.1 से 63.4 फीसदी के बीच था। वहीं 165 जिलों में यह दर 40.1 से 50 फीसदी दर्ज की गई। वहीं अधिकांश 347 जिलों में यह दर 30.1 से 40 फीसदी के बीच रही, जबकि 162 जिलों में यह आंकड़ा 20.1 से 30 फीसदी के बीच दर्ज किया गया।
वहीं केवल आठ जिले यानी महज एक फीसदी जिलों में प्री-हाइपरटेंशन का प्रसार 15.6 फीसदी से 20 फीसदी के बीच रहा। यह आंकड़े इस बात का सबूत हैं कि देश के ज्यादातर जिलों में प्री-हाइपरटेंशन एक बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है।
दक्षिण भारतीय राज्यों में कुछ बेहतर है स्थिति
यदि राज्यवार आंकड़ों पर गौर करें तो देश के दक्षिणी हिस्सों में प्री-हाइपरटेंशन का प्रसार कम रहा, जहां इसकी औसत दर 30.2 फीसदी रही। इस क्षेत्र में जहां विशेष तौर पर पुडुचेरी में प्री-हाइपरटेंशन की दर 27.7 फीसदी, तेलंगाना में 28.2 फीसदी, तमिलनाडु में 29.7 फीसदी, और आंध्र प्रदेश में 29.8 फीसदी दर्ज की गई। इसी तरह उत्तरी भारत के राज्यों में स्थिति कमोबेश बेहतर रही, जहां इसका औसत 39.4 फीसदी रिकॉर्ड किया गया।
इन राज्यों में हिमाचल प्रदेश 35.3 फीसदी और चंडीगढ़ (28.6 फीसदी) में प्रदर्शन बेहतर रहा। वहीं दूसरी ओर देश के जिन राज्यों में प्री-हाइपरटेंशन की दर उच्च रही उनमें जम्मू और कश्मीर (45.2 फीसदी), लद्दाख (48.8 फीसदी), राजस्थान (43.5 फीसदी) और छत्तीसगढ़ (38.8 फीसदी) शामिल रहे।
दिलचस्प बात यह रही कि महिलाओं, साक्षर व्यक्तियों, शराब पीने वालों और जिनमें ब्लड शुगर के स्तर ऊंचा था, उन व्यक्तियों के प्री-हाइपरटेंसिव होने की संभावना कम देखी गई। इसी तरह अध्ययन में तंबाकू के सेवन और प्री-हाइपरटेंशन के बीच कोई महत्वपूर्ण सम्बन्ध नहीं देखा गया।
आईसीएमआर के नेशनल सेंटर फॉर डिजीज इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च (एनसीडीआईआर) के शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे 18 मार्च को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित हुए हैं। यह अध्ययन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस -5) के आंकड़ों पर आधारित है।
इसमें 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों के 707 जिलों को शामिल किया गया है। इस विश्लेषण का हिस्सा रहे 7,43,067 वयस्कों की आयु 18 से 54 वर्ष के बीच थी। इनमें 87.6 फीसदी महिलाएं, जबकि 12.4 फीसदी पुरुष थे।
अध्ययन में समृद्ध परिवारों और अधिक वजन या मोटे व्यक्तियों में प्री-हाइपरटेंशन की अधिक आशंका देखी गई।
रिसर्च के मुताबिक भारत में औसतन करीब 66.7 फीसदी लोगों ने कम से कम एक बार अपने रक्तचाप की जांच कराई थी। हालांकि इस जांच में काफी भिन्नता थी। जो जिलों के आधार पर 30.3 फीसदी से 98.5 फीसदी तक दर्ज की गई।
रक्तचाप की जांच के मामले में दक्षिण भारत की स्थिति कहीं ज्यादा बेहतर थी, जहां इसका औसत 75.8 फीसदी दर्ज किया गया। इसमें लक्षद्वीप (90.8 फीसदी), केरल (88.5 फीसदी), तमिलनाडु (83.3 फीसदी), और पुडुचेरी (83.2 फीसदी) अव्वल रहे।
उत्तर भारत में भी यह औसत 69.6 फीसदी रहा, इसमें चंडीगढ़ (82.6 फीसदी), पंजाब (82.5 फीसदी), दिल्ली (81.9 फीसदी), हरियाणा (78.1 फीसदी), और हिमाचल प्रदेश (76.5 फीसदी) में जांच की दर उल्लेखनीय रही।
वहीं यदि ब्लड प्रेशर से जुड़े आंकड़ों को देखें तो देश में 15.9 फीसदी आबादी का रक्तचाप बढ़ा पाया गया, जो जिलों के आधार पर 4.1 फीसदी से 51.8 फीसदी तक दर्ज किया गया। जहां दक्षिणी क्षेत्र ने 16.8 फीसदी के साथ इस मामले में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया।
इस क्षेत्र में लक्षद्वीप में 12.1 फीसदी आबादी उच्च रक्तचाप का शिकार थी। वहीं केरल में यह आंकड़ा 15.5 फीसदी, जबकि तमिलनाडु में 17.9 फीसदी रिकॉर्ड किया गया। इसी तरह 16.6 फीसदी के साथ औसत प्रदर्शन किया। इस क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश 16.7 फीसदी, चंडीगढ़ 19.4 फीसदी, और दिल्ली 18.6 शामिल हैं, जहां इनकी दर ऊंची रही।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में उच्च रक्तचाप की दर 16.3 फीसदी रही। इस क्षेत्र में सिक्किम में 29.1 फीसदी, अरुणाचल प्रदेश में 24.6 फीसदी जैसे राज्य शामिल हैं, जहां स्थिति तुलनात्मक रूप से ज्यादा खराब है। वहीं मध्य प्रदेश में इसके प्रसार की दर अपेक्षाकृत रूप से कम 14.3 फीसदी रिकॉर्ड की गई।
देखा जाए तो इस अध्ययन के नतीजे काफी हद तक 2019 से 21 के लिए किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस -5) से मेल खाते हैं। इस सर्वेक्षण के मुताबिक देश में 15 वर्ष या उससे अधिक आयु की 21 फीसदी महिला और 24 फीसदी पुरुष उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं। वहीं 39 फीसदी महिलाएं और 49 फीसदी पुरुष प्री-हाइपरटेंशन का शिकार हैं।
वहीं देश में 2017-18 के दौरान गैर-संचारी रोगों को लेकर किए एक सर्वे में आधे से भी कम लोगों ने इस बात की जानकारी दी कि उन्होंने जीवन में कभी ब्लड प्रेशर को मापे जाने की जानकारी दी। वहीं सर्वे में शामिल 28.5 फीसदी लोग उच्च रक्तचाप का शिकार पाए गए। इन सभी लोगों की आयु 18 से 49 वर्ष के बीच थी।
क्या है प्री-हाइपरटेंशन और क्यों है इतना खतरनाक
गौरतलब है कि प्री-हाइपरटेंशन एक ऐसी स्थिति है, जहां से शरीर में उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन की शुरूआत होती है। इसे स्टेज-1 हाइपरटेंशन भी कहा जाता है। प्रीहाइपरटेंशन की स्थिति तब बनती है, जब ब्लड प्रेशर सामान्य से तो ऊपर होता है लेकिन उस स्तर तक नहीं पहुंचा होता जिसे हाइपरटेशन माना जाए। देखा जाए तो यह एक तरह से चेतावनी का संकेत है कि भविष्य में आपको उच्च रक्तचाप हो सकता है।
वहीं हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप एक ऐसी चिकित्सीय स्थिति है जिसमें धमनियों में रक्त का दबाव काफी बढ़ जाता है। दबाव की इस वृद्धि के चलते, धमनियों में रक्त के प्रवाह को बनाए रखने के लिये दिल को सामान्य से कहीं अधिक काम करने की आवश्यकता पड़ती है। आमतौर पर 140/90 से ऊपर के रक्तचाप को हाइपरटेंशन के रूप में परिभाषित किया जाता है। वहीं अगर दबाव 180/120 से ऊपर है तो इसे घातक माना जाता है। इसकी वजह से हृदयरोग और स्ट्रोक जैसी गंभीर स्थिति पैदा हो सकती है।
देखा जाए तो भारत में गैर संचारी बीमारियां विकराल रूप ले चुकी हैं। आज देश में होने वाली 65 फीसदी मौतों के लिए यही गैर संचारी बीमारियां जिम्मेवार है, इनमें हाइपरटेंशन भी शामिल है। अकेले हृदय तथा रक्तवाहिकाओं संबंधी बीमारियां को देखें तो देश में 27.4 फीसदी मौतों के पीछे की वजह यही बीमारियां हैं।
ऐसे में इन समस्या पर गंभीरता से ध्यान देना जरूरी है, क्योंकि समय के साथ जैसे-जैसे खाने की गुणवत्ता, तनाव और जीवनशैली बिगड़ रही है यह समस्याएं कहीं विकराल रूप ले रही हैं।