
भारत में हर घंटे मलेरिया के औसतन 233 मामले सामने आ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी नई रिपोर्ट में जानकारी दी है कि भारत में 2023 के दौरान मलेरिया के 20,37,519 मामले सामने आए थे।
गौरतलब है कि मलेरिया एक जानलेवा बीमारी है जो मादा एनोफिलीज मच्छरों के काटने से मनुष्यों में फैलती है। हालांकि इस बीमारी का इलाज संभव है और इसे रोका जा सकता है। डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी विश्व मलेरिया रिपोर्ट के नवीनतम संस्करण के मुताबिक भारत ने मलेरिया के मामलों और उसकी वजह से होने वाली मौतों को कम करने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है।
आंकड़े भी इस बात की पुष्टि करते हैं, गौरतलब है कि 2005 के दौरान देश में मलेरिया के 2.43 करोड़ मामले सामने आए थे, जो 2023 में 92 फीसदी की गिरावट के साथ घटकर 20.4 लाख रह गए हैं।
इसी तरह देश में मलेरिया की वजह से जाने वाली मौतों में भी करीब 90 फीसदी की उल्लेखनीय गिरावट आई है। बता दें कि जहां 2005 में मलेरिया की वजह से 32,582 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। वहीं 2023 में मौतों का यह आंकड़ा घटकर 3,461 रह गया है।
वैश्विक आंकड़ों पर नजर डालें तो 2023 में मलेरिया के 26.3 करोड़ मरीज सामने आए थे, जो 2022 की तुलना में कहीं अधिक है। इनमें से अधिकांश (94 फीसदी) मामले अफ्रीका में रिकॉर्ड किए गए थे। 2022 से तुलना करें तो 2023 में एक करोड़ से अधिक मामले सामने आए। इससे पहले 2022 में वैश्विक स्तर पर मलेरिया के 25.2 करोड़ मामले दर्ज किए गए थे।
वहीं दूसरी तरफ 2022 की तुलना में मलेरिया से होने वाली मौतों में गिरावट दर्ज की गई है। 2022 में जहां करीब छह लाख लोगों की जान इस बीमारी ने ली थी, वहीं 2023 में मरने वालों की संख्या घटकर करीब 597,000 रह गई।
अफ्रीका में अभी भी गंभीर समस्या बनी हुई है यह बीमारी
गौरतलब है कि इनमें से 95 फीसदी मौतें अफ्रीकी क्षेत्र में हुई, इसके जोखिम का सामने करने वाली एक बड़ी आबादी के पास अभी भी इस बीमारी का पता लगाने, उसे रोकने और उसका इलाज करने के लिए आवश्यक सेवाओं तक पहुंच नहीं है, जोकि बेहद चिंता का विषय है।
प्रेस को जारी एक बयान में विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयेसस ने कहा, "मलेरिया से किसी की भी मृत्यु नहीं होनी चाहिए, फिर भी यह बीमारी अफ्रीकी क्षेत्र में रहने वाले लोगों, विशेषकर छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं को असमान रूप से नुकसान पहुंचा रहा है।"
उन्होंने कहना है कि "जीवन रक्षक दवाओं और उपकरणों का एक विस्तारित पैकेज" उपलब्ध है, जो इस बीमारी से बेहतर सुरक्षा प्रदान करता है, लेकिन अफ्रीकी देश जो इस बीमारी का सबसे ज्यादा बोझ ढो रहे हैं वहां इससे निपटने के लिए कहीं अधिक निवेश और कार्रवाई की आवश्यकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया है कि वैश्विक प्रयासों की मदद से साल 2000 से अब तक मलेरिया के 220 करोड़ मामलों को टाला जा सका है। इसी तरह पिछले 23 वर्षों में स्वास्थ्य क्षेत्र में हुए सुधार और प्रयासों के चलते मलेरिया से होने वाली 1.27 करोड़ मौतों को रोका जा सका है।
2015 से, देखें तो अफ्रीका में मलेरिया से होने वाली मौतों में 16 फीसदी की गिरावट आई है। हालांकि इसके बावजूद 2023 में प्रति लाख में से 52 लोगों पर मलेरिया की वजह से मृत्यु का जोखिम मंडरा रहा है। जो 2030 तक इसमें गिरावट के लिए निर्धारित लक्ष्य के दोगुने से भी अधिक है। ऐसे में ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान बचाने के लिए तेजी से प्रयास करने की जरूरत है।
देखा जाए तो यह वैश्विक प्रयासों का ही नतीजा है कि नवंबर 2024 तक, विश्व स्वास्थ्य संगठन 44 देशों और एक क्षेत्र को मलेरिया मुक्त घोषित कर चुका है। वहीं कई अन्य देश भी इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।
हालांकि इसके बावजूद 83 देशों में यह बीमारी अभी भी मौजूद है। राहत की बात यह है कि इनमें से 25 देश ऐसे हैं जहा मलेरिया के सालाना दस से भी कम मामले सामने आते हैं, जबकि 2000 में इन देशों की संख्या महज चार थी।
हालांकि इसके बावजूद मलेरिया आज भी स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है। अफ्रीकी देशों में आज भी मलेरिया एक बड़ी समस्या है जो हर साल लाखों लोगों की जान ले रहा है।
दुनिया में जिस तरह से वैश्विक तापमान में इजाफा हो रहा है और जलवायु में बदलाव हो रहे हैं, वो इस बीमारी को पैर पसारने में मदद कर रहे हैं। इसकी वजह से यह बीमारी नए क्षेत्रों को भी अपना निशाना बना रही है।
वैज्ञानिकों ने भी पुष्टि की है कि, जलवायु में आता बदलाव मच्छरों से होने वाली बीमारियों के खतरे को और बढ़ा रहा है। अनुमान है कि सदी के अंत तक करीब 840 करोड़ लोगों पर डेंगू और मलेरिया का खतरा मंडराने लगेगा।
द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक आज जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहे हैं, उसकी वजह से यह मच्छर उन स्थानों पर भी पनपने लगे हैं, जहां पहले नहीं पाए जाते थे। ऐसे में मलेरिया जैसी बीमारियों का खतरा नए क्षेत्रों में भी बढ़ रहा है।