सदियों तक जूझने के बाद मलेरिया मुक्त हुआ मिस्र, इतिहास के पन्नों में सिमटी बीमारी

मिस्र में मलेरिया का इतिहास करीब 4000 ईसा पूर्व से जुड़ा है। वैज्ञानिकों को तूतनखामुन और अन्य प्राचीन ममियों में इस रोग के आनुवंशिक साक्ष्य मिले हैं
सदियों तक जूझने के बाद मलेरिया मुक्त हुआ मिस्र, इतिहास के पन्नों में सिमटी बीमारी
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मिस्र को आधिकारिक रूप से मलेरिया मुक्त घोषित कर दिया है। मिस्र की यह सफलता उसके एक सदी के प्रयासों का नतीजा है। गौरतलब है कि मिस्र सदियों से इस बीमारी से जूझ रहा था, लेकिन वहां अब यह बीमारी इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गई है। दस करोड़ से अधिक आबादी वाले इस देश में यह स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए एक बड़ा मील का पत्थर है।

डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस ने इस पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि, "मलेरिया उतनी ही पुरानी बीमारी है जितनी स्वयं मिस्र की सभ्यता।" "...मगर मिस्र के फैरो (राजाओं) को परेशान करने वाले यह बीमारी अब खुद इतिहास के पन्नों में सिमट गई है।"

उनके मुताबिक मिस्र में अब यह भविष्य के लिए खतरा नहीं रह गई है। उनका आगे कहना था कि, "मलेरिया मुक्त होने का यह प्रमाण पत्र एक ऐतिहासिक उपलब्धि है और इस प्राचीन बीमारी को खत्म करने के लिए सरकार और आम लोगों की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।"

यह दुनिया भर में मलेरिया के खिलाफ जारी जंग में हासिल की गई महत्वपूर्ण जीत का प्रतिनिधित्व करती है। उनके मुताबिक यह सफलता इस क्षेत्र में अन्य देशों के लिए प्रेरणा स्रोत की तरह है। यह दर्शाती है कि संसाधनों के सही उपयोग और सही उपायों व उपकरणों की मदद से क्या कुछ हासिल नहीं किया जा सकता।

बता दें कि अपनी इस सफलता के साथ ही मिस्र मलेरिया-मुक्त होने का दर्जा हासिल करने वाले 44 देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है।

गौरतलब है कि इसके साथ ही मिस्र मलेरिया मुक्त होने वाला पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र का तीसरा देश बन गया है। इससे पहले इस क्षेत्र में संयुक्त अरब अमीरात और मोरक्को मलेरिया मुक्त घोषित किए जा चुके हैं। वहीं इस क्षेत्र में यह 2010 के बाद से यह प्रमाणन प्राप्त करने वाला यह पहला देश है। अब तक दुनिया में, 44 देशों और एक क्षेत्र ने यह उपलब्धि हासिल की है।

अफ्रीका में अब तक चार देश मलेरिया मुक्त घोषित हो चुके हैं। मिस्र से पहले जनवरी 2024 में केप वर्डे को मलेरिया मुक्त घोषित किया गया था। वहीं 1973 में मॉरीशस और 2019 में अल्जीरिया को मलेरिया मुक्त देश होने का दर्जा दिया गया था।

बता दें कि किसी देश को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मलेरिया उन्मूलन का यह प्रमाण पत्र तब दिया जाता है जब वो देश यह साबित कर सके कि एनोफिलीज मच्छरों द्वारा मलेरिया का प्रसार कम से कम पिछले तीन वर्षों में सामने नहीं आया है। इसके साथ ही देश को मलेरिया को फिर से उभरने से रोकने की अपनी क्षमता को प्रदर्शित करना होता है।

100 से ज्यादा वर्षों के अथक प्रयासों का नतीजा है यह सफलता

मिस्र में मलेरिया का इतिहास करीब 4000 ईसा पूर्व से जुड़ा है। वैज्ञानिकों को तूतनखामुन और मिस्र की अन्य प्राचीन ममियों में इस रोग के आनुवंशिक साक्ष्य मिले हैं। वहीं मिस्र में इंसानों और मच्छरों के बीच संपर्क को सीमित करने के प्रयास 1920 के दशक में शुरू किए गए, जब देश में धान और अन्य फसलों की खेती को प्रतिबंधित कर दिया गया।

चूंकि उस समय अधिकांश आबादी नील नदी के किनारे रहती थी और मलेरिया की दर 40 फीसदी तक पहुंच गई। ऐसे में मिस्र ने 1930 में मलेरिया को एक ऐसी बीमारी घोषित कर दिया, जिसके बारे में सरकार को सूचना देना जरूरी है। इसके साथ ही इस बीमारी के निदान, उपचार और निगरानी पर ध्यान देने के लिए वहां पहला मलेरिया नियंत्रण केंद्र भी खोला गया।

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1942 तक मिस्र में मलेरिया के मामले बढ़कर 30 लाख से ज्यादा हो गए। इसकी सबसे बड़ी वजह द्वितीय विश्व युद्ध के चलते आबादी का हुआ विस्थापन, चिकित्सा आपूर्ति और सेवाओं में व्यवधान और एनोफेलीज अरेबियंसिस नामक मच्छर का आक्रमण था। गंभीरता को देखते हुए मिस्र ने 16 उपचार प्रभागों की स्थापना की और 4,000 से अधिक स्वास्थ्य कर्मियों की भर्ती के जरिए इस प्रकोप को नियंत्रित करने में सफलता हासिल की।

1969 में असवान बांध के पूरा होने से मिस्र में मलेरिया का नया खतरा पैदा हो गया, क्योंकि इसकी वजह से खड़े पानी ने मच्छरों को प्रजनन के लिए अनुकूल माहौल पैदा कर दिया। इससे निपटने के लिए मिस्र ने सूडान के साथ मिलकर मलेरिया के प्रकोप का तुरंत पता लगाने और उसका जवाब देने के लिए एक मजबूत वेक्टर नियंत्रण और सार्वजनिक स्वास्थ्य निगरानी परियोजना शुरू की।

मिस्र में 2001 तक, मलेरिया काफी हद तक नियंत्रण में आ गया। इसके साथ ही स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्थानीय मलेरिया दोबारा वापस न आए इसे रोकने पर ध्यान केंद्रित किया। 2014 में, असवान प्रांत में मलेरिया के एक छोटे प्रकोप ने सर उठाया, लेकिन शुरूआती मामले की पहचान, त्वरित उपचार, वेक्टर नियंत्रण और सार्वजनिक शिक्षा के माध्यम से इसे जल्द नियंत्रित कर लिया गया।

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मौजूदा समय में मिस्र में मलेरिया का निदान और उपचार सभी के लिए निःशुल्क है। स्वास्थ्य पेशेवरों को देश भर में मलेरिया के मामलों का पता लगाने और उनकी जांच के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। सूडान जैसे पड़ोसी देशों के साथ मिस्र की मजबूत साझेदारी मलेरिया की स्थानीय वापसी को रोकने में महत्वपूर्ण रही है। इसने देश को आधिकारिक रूप से मलेरिया-मुक्त होने में मदद की है।

मौजूदा समय में भी देखें तो अफ्रीकी महाद्वीप के लिए मलेरिया कहीं ज्यादा घातक सिद्ध हो रहा है। यदि 2021 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो उस वर्ष में मलेरिया के सामने आए 95 फीसदी मामले केवल अफ्रीकी देशों में दर्ज किए गए। वहीं मलेरिया से होने वाली 96 फीसदी मौतें भी अफ्रीका में रिकॉर्ड की गई थीं।

मलेरिया एक घातक बीमारी है, जो हर साल लाखों जिंदगियों को निगल रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, 2022 के दौरान दुनिया के 85 देशों में मलेरिया के करीब 24.9 करोड़ मामले सामने आए थे। इतना ही नहीं इस दौरान 608,000 लोगों की जिंदगियां इस बीमारी ने लील ली थी।

“वर्ल्ड मलेरिया रिपोर्ट 2022” के मुताबिक, 2021 में मलेरिया के जितने मामले आए थे उनमें से 95 फीसदी यानी करीब 23.4 करोड़ मामले अकेले अफ्रीका में दर्ज किए गए थे। इसी तरह मलेरिया से हुई करीब 96 फीसदी मौतें भी अफ्रीका में ही दर्ज की गई थी।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, वैश्विक तापमान में होती वृद्धि और जलवायु में आता बदलाव मच्छरों से होने वाली बीमारियों के खतरे को और बढ़ा रहा है। अनुमान है कि सदी के अंत तक करीब 840 करोड़ लोगों पर डेंगू और मलेरिया का खतरा मंडराने लगेगा।

द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक आज जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहे हैं, उसकी वजह से यह मच्छर उन स्थानों पर भी पनपने लगे हैं, जहां पहले नहीं पाए जाते थे।

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