मिनी स्ट्रोक को हल्के में न लें, 20 फीसदी मरीजों में सालों बाद भी बना रहता है खतरा: अध्ययन

'मिनी स्ट्रोक', जिसे क्षणिक इस्केमिक अटैक (टीआईए) भी कहा जाता है, यह मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति में आई अस्थाई रुकावट के कारण होता है
एमआरआई स्कैन की मदद से रोगी के दिमाग की जांच करते डॉक्टर; फोटो: आईस्टॉक
एमआरआई स्कैन की मदद से रोगी के दिमाग की जांच करते डॉक्टर; फोटो: आईस्टॉक
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कैलगरी विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं ने चेताया है कि अगर किसी को मिनी स्ट्रोक या क्षणिक इस्केमिक अटैक (टीआईए) हो चुका है, तो उसे सिर्फ शुरूआती कुछ दिनों या महीनों तक ही नहीं, बल्कि कई सालों तक दोबारा स्ट्रोक का खतरा बना रहता है।

शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि इस मामूली स्ट्रोक के बाद आया अगला स्ट्रोक और ज्यादा गंभीर हो सकता है।

बता दें कि 'मिनी स्ट्रोक', जिसे क्षणिक इस्केमिक अटैक (टीआईए) भी कहा जाता है, यह मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति में आई अस्थाई रुकावट के कारण होता है। इसके लक्षण स्ट्रोक जैसे ही होते हैं, लेकिन बस फर्क इतना है इसका प्रभाव ज्यादा देर तक नहीं रहता।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक हर साल दुनिया भर में करीब 1.5 करोड़ लोग स्ट्रोक का शिकार बनते हैं। चिंता की बात है कि इनमें से एक तिहाई यानी करीब 50 लाख लोगों की मौत हो जाती है। वहीं 50 लाख लोग हमेशा के लिए विकलांग हो जाते हैं। ऐसे में परिवार और समाज पर उनकी देखभाल की जिम्मेदारी आ जाती है।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार आमतौर पर 40 साल से उससे कम उम्र के लोगों में स्ट्रोक के मामले कम होते हैं। अगर होते भी हैं, तो इसकी सबसे बड़ी वजह हाई ब्लड प्रेशर होती है। हालांकि, सिकल सेल बीमारी से जूझ रहे करीब आठ फीसदी बच्चों में भी स्ट्रोक का खतरा देखा गया है। ऐसे में इनकी उचित देखभाल जरूरी है।

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अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर फैजान खान ने इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए कहा, “अक्सर माना जाता है कि मामूली स्ट्रोक या टीआईए के बाद पहले 90 दिन सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं, लेकिन अध्ययन से पता चला है कि यह खतरा अगले दस वर्षों तक बना रहता है।“

यह अध्ययन  हॉचकिस ब्रेन इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया एक वैश्विक प्रयास है। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 20 देशों के 1,71,068 मरीजों के स्वास्थ्य संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण किया है। यह वो मरीज थे, जिन्होंने मामूली स्ट्रोक या टीआईए के दर्द को झेला था। 

अंतराष्ट्रीय जर्नल जामा में प्रकाशित इस अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि पहले साल में 5.9 फीसदी मरीजों यानी 100 में से छह लोगों को फिर से स्ट्रोक हो सकता है। वहीं पांच वर्षों यह खतरा बढ़कर 12.8 फीसदी तक पहुंच गया। वहीं दस वर्षों में 100 में से करीब 20 (19.8) फीसदी लोगों को दोबारा स्ट्रोक आया था।

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दवाएं और जीवनशैली में बदलाव जरूरी

मतलब साफ है — अगर किसी को एक बार मामूली स्ट्रोक या टीआईए आ चुका है, तो उसे जीवनभर सावधानी बरतने की जरूरत है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि लोग अक्सर इलाज के बाद लापरवाह हो जाते हैं। दवाएं बंद कर देते हैं या जीवनशैली से जुड़ी अच्छी आदतें छोड़ देते हैं।

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डॉक्टर खान के मुताबिक स्ट्रोक के खतरे को कम करने के लिए हाई ब्लड प्रेशर जैसी समस्याओं का इलाज सिर्फ अस्पताल से छुट्टी मिलने तक ही जरूरी नहीं, बल्कि पूरी जिंदगी इसपर ध्यान देने की जरूरत है। उनका यह भी कहना है कि यह ये निष्कर्ष हर जगह के लोगों के लिए महत्वपूर्ण हैं, चाहे वे दुनिया के किसी भी कोने में रहते हों।

शोधकर्ता ने उम्मीद जताई है कि यह अध्ययन लोगों के लिए एक चेतावनी की तरह काम करेगा। उनके मुताबिक अगर आपको पता हो कि अगले दस वर्षों में हर पांच में से एक व्यक्ति को दोबारा स्ट्रोक आ सकता है और उनमें से दस फीसदी की मौत हो सकती है, तो शायद लोग दवाएं और परहेज जारी रखने को ज्यादा गंभीरता से लेंगे।

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खान कहते हैं, अक्सर ऐसा होता है कि मामूली स्ट्रोक या टीआईए के बाद मरीज अस्पताल में न्यूरोलॉजिस्ट को दिखाते हैं। शुरूआत में कुछ महीनों तक तो इलाज चलता है, लेकिन इसके बाद उनकी देखभाल की जिम्मेवारी फैमिली या स्थानीय डॉक्टर पर आ जाती है।

देखा जाए तो यह अध्ययन मरीजों के साथ-साथ डॉक्टरों के लिए भी एक सन्देश है। डॉक्टरों को समझना चाहिए कि मामूली स्ट्रोक के बाद आगे भी गंभीर स्ट्रोक का खतरा बना रहता है। ऐसे में इलाज सिर्फ शुरूआती महीनों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि मरीज की सेहत पर लंबे समय तक नजर रखने के साथ खतरा कम करने के प्रयास जारी रखने चाहिए।

शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं वो लंबे समय तक स्ट्रोक से बचाव के लिए बेहतर इलाज और नई रणनीतियों पर काम करने की दिशा में मदद करेंगे।

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