क्यों कम होती है 2,000 से 3,500 मीटर की ऊंचाई पर रहने वालों में स्ट्रोक की आशंका

2,000 से 3,500 मीटर की ऊंचाई पर रहने वाले पहाड़ी लोगों में स्ट्रोक यानी आघात और उससे होने वाली मृत्यु की आशंका सबसे कम होती है
क्यों कम होती है 2,000 से 3,500 मीटर की ऊंचाई पर रहने वालों में स्ट्रोक की आशंका
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क्या अधिक ऊंचाई पर रहने से स्ट्रोक की संभावना पर असर पड़ सकता है? इस पेचीदा सवाल को लेकर किए गए एक अध्ययन में सामने आया है कि 2,000 से 3,500 मीटर की ऊंचाई पर रहने वाले पहाड़ी लोगों में स्ट्रोक यानी आघात और उससे होने वाली मृत्यु की सम्भावना सबसे कम होती है। यह जानकारी हाल ही में ओपन-एक्सेस जर्नल फ्रंटियर्स इन फिजियोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में सामने आई है। 

इस विषय पर पहली बार इक्वाडोर में यह शोध किया गया है। इस शोध में चार अलग-अलग ऊंचाइयों पर रहने वाले लोगों के आघात के चलते अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु सम्बन्धी आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। इसमें 17 वर्षों के दौरान एकत्र किए गए एक लाख से अधिक आघात रोगियों के आंकड़ों को शामिल किया गया है।

इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता एस्टेबन ऑर्टिज-प्राडो के अनुसार करीब 16 करोड़ लोग 2,500 मीटर से ज्यादा ऊंचाई पर रहते हैं। इस ऊंचाई पर स्ट्रोक और स्वास्थ्य में पाए जाने वाले अंतर से जुड़ी बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। इस शोध में जो निष्कर्ष सामने आए हैं वो चौंका देने वाले हैं, अध्ययन से पता चला है कि अधिक ऊंचाई पर रहने वाले लोगों में स्ट्रोक और स्ट्रोक से संबंधित मृत्यु का जोखिम कम होता है। यही नहीं 2,000 से 3,500 मीटर की ऊंचाई पर रहने वालों में यह जोखिम अन्य लोगों की तुलना में सबसे कम होता है। 

यही नहीं निष्कर्ष बताते हैं कि जो लोग अधिक ऊंचाई (2,500 मीटर से ऊपर) पर रहते हैं उनमें कम ऊंचाई पर रहने वालों की तुलना में स्ट्रोक का खतरा अधिक उम्र होने पर होता है। यही नहीं उनके अस्पताल में भर्ती होने या स्ट्रोक के कारण मृत्यु की सम्भावना भी कम होती है। 

हर साल दुनिया में आघात के डेढ़ करोड़ मामले आते हैं सामने

दुनिया भर में आघात मौत और विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है, जो आमतौर पर मस्तिष्क को या उसके भीतर रक्त पहुंचाने वाली धमनियों में रक्त के जमने या फिर उसमें रुकावट आने के कारण होता है। इस वजह से मस्तिष्क को जरुरी रक्त और ऑक्सीजन की पूर्ति नहीं हो पाती है, परिणामस्वरूप मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर में हर साल आघात के करीब 1.5 करोड़ मामले सामने आते हैं, जिनमें से 50 लाख मरीजों की मौत हो जाती है, जबकि अन्य 50 लाख पूरी तरह विकलांग हो जाते हैं। हालांकि देखा जाए तो 40 वर्ष से कम उम्र के लोगों में आघात का होना असामान्य बात है, लेकिन यदि उनमें ऐसा होने के लिए मुख्य रूप से उच्च रक्तचाप जिम्मेवार होता है। वहीं सिकल सेल से ग्रस्त 8 फीसदी बच्चों में भी आघात के मामले सामने आए हैं। 

यह बीमारी आमतौर पर खराब जीवनशैली से जुड़ी है। जिसमें धूम्रपान और तम्बाकू का उपयोग प्रमुख है। इसके साथ उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल की अधिकता, शारीरिक गतिविधियों की कमी के कारण भी आघात का खतरा बढ़ जाता है। अनुमान है कि यदि रक्तचाप को नियंत्रित किया जाए तो स्ट्रोक से मरने वाले हर 10 में से चार लोगों को बचाया जा सकता है। वहीं 65 वर्ष से कम आयु के करीब पांच में से दो लोगों की स्ट्रोक से होने वाली मौत के लिए धूम्रपान जिम्मेवार है। 

अधिक ऊंचाई पर रहने वाले लोगों में क्यों होता है स्ट्रोक का कम खतरा

शोध के मुताबिक अधिक ऊंचाई का मतलब होता है ऑक्सीजन की कमी, इसलिए जो लोग इन पहाड़ी और ऊंचाई वाले इलाकों में रहते हैं वो इन इन परिस्थितियों के अनुकूल हो चुके हैं। यही नहीं उनके शरीर में नई रक्त वाहिकाओं का विकास अधिक आसानी से हो जाता है, जोकि उन्हें आघात से होने वाली क्षति से बचाता है।

उनके दिमाग में वाहिकाओं का नेटवर्क कहीं ज्यादा अधिक विकसित होता है, जो उनके द्वारा ग्रहण की गई ऑक्सीजन का अधिकतम लाभ उठाने में मदद करता है। साथ ही यह उनकी आघात के सबसे बुरे प्रभावों को भी कम करने में भी मदद करता है।   

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