

अमेरिकी अध्ययन से पता चला है कि प्रदूषित हवा महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा बढ़ा रही है।
हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की मात्रा में 10 भाग प्रति बिलियन (पीपीबी) की बढ़ोतरी से स्तन कैंसर का खतरा करीब तीन फीसदी बढ़ जाता है।
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि हवा में मौजूद प्रदूषण के महीन कणों (पीएम2.5) में हर पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की बढ़ोतरी के साथ हार्मोन रिसेप्टर-निगेटिव स्तन कैंसर के मामले बढ़ जाते हैं।
गौरतलब है कि इस प्रकार के कैंसर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन के रिसेप्टर नहीं होते, जिससे इसका इलाज और कठिन हो जाता है, साथ ही यह कहीं ज्यादा घातक साबित होता है।
भारत की बात करें तो यहां स्तन कैंसर महिलाओं में होने वाला सबसे आम कैंसर है। 2018 में देश में महिलाओं में पाए गए कैंसर के नए मामलों में से करीब 28 फीसदी स्तन कैंसर के थे।
अमेरिकी महिलाओं पर किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि जिन इलाकों की वायु गुणवत्ता खराब है, खासकर जहां वाहनों से निकलने वाला धुआं अधिक है, वहां महिलाओं में स्तन कैंसर होने का खतरा अधिक है।
यह अध्ययन चार लाख से ज्यादा महिलाओं और स्तन कैंसर 28 हजार मामलों पर आधारित है। अध्ययन के नतीजे अमेरिकन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित हुए हैं।
इस अध्ययन का नेतृत्व नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) की एलेक्जेंड्रा व्हाइट ने किया है। इसमें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, वाशिंगटन यूनिवर्सिटी, इंडियाना और ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी सहित कई संस्थानों से जुड़े वैज्ञानिक शामिल थे।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पिछले कई दशकों में स्तन कैंसर पर किए गए पांच बड़े अध्ययनों के आंकड़ों की भी मदद ली है। इनमें महिलाओं को उनके घरों में बदलाव के बाद भी ट्रैक किया गया है और कैंसर की पहचान से 10 साल पहले तक उनका रिकॉर्ड रखा गया। इसके साथ ही अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 2,600 से अधिक वायु गुणवत्ता मॉनिटरों से मिले आंकड़ों को मिलाकर यह समझने का प्रयास किया है कि हवा में मौजूद प्रदूषण और स्तन कैंसर के बीच क्या नाता है।
प्रदूषण बढ़ने के साथ बढ़ जाता है खतरा
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की मात्रा में 10 भाग प्रति बिलियन (पीपीबी) की बढ़ोतरी से स्तन कैंसर का खतरा करीब तीन फीसदी बढ़ जाता है। बता दें कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड मुख्य रूप से वाहनों से धुंए के साथ उत्सर्जित होने वाला प्रदूषक है।
ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी और अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता वेरोनिका इरविन के मुताबिक अमेरिका में इस साल महिलाओं में स्तन कैंसर के करीब 316,950 मामले सामने आ सकते हैं। ऐसे में अगर प्रदूषण में तीन फीसदी की कमी लाई जाए, तो करीब 9,500 महिलाओं को स्तन कैंसर से बचाया जा सकता है।
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि हवा में मौजूद प्रदूषण के महीन कणों (पीएम2.5) में हर पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की बढ़ोतरी के साथ हार्मोन रिसेप्टर-निगेटिव स्तन कैंसर के मामले बढ़ जाते हैं। गौरतलब है कि इस प्रकार के कैंसर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन के रिसेप्टर नहीं होते, जिससे इसका इलाज और कठिन हो जाता है, साथ ही यह कहीं ज्यादा घातक साबित होता है।
इरविन का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “हर कोई साफ बेहतर हवा की तलाश में अपना घर छोड़कर नहीं जा सकता। इसलिए जरूरत है कि सरकार साफ हवा को लेकर सख्त प्रभावी कानून बनाए। इसके साथ ही बढ़ते वाहनों को कम करने के साथ सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता है।"
शोध में यह भी पाया गया कि अध्ययन में शामिल इलाकों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की औसत मात्रा अभी भी अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) की तय सीमा से नीचे थी, यानी ‘सुरक्षित’ मानी जाने वाली हवा भी स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकती है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, अमेरिका में जहां हवा में प्रदूषण का स्तर कई अन्य देशों की तुलना में कम है। वहां भी पिछले चार दशकों में स्तन कैंसर के मामले लगातार बढ़े हैं। यह फेफड़ों के कैंसर के बाद महिलाओं में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है।
आंकड़ों से पता चला है कि अमेरिका में हर आठ में से एक महिला को अपने जीवनकाल में स्तन कैंसर होने का खतरा रहता है, और वहां 40 लाख से अधिक महिलाएं ऐसी हैं जो इस बीमारी से उबर चुकी हैं।
क्या प्रदूषण से जुड़ा है भारतीय महिलाओं में बढ़ता स्तन कैंसर
देखा जाए तो भले ही यह अध्ययन अमेरिकी महिलाओं पर किया गया है। लेकिन इसके तार भारत से भी जुड़े हैं। आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका की तुलना में भारत के कई शहरों में वायु गुणवत्ता कहीं ज्यादा खराब है। जहां दिल्ली, रोहतक, धारूहेड़ा, पटना, भिवाड़ी जैसे शहरों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और पीएम2.5 का स्तर कई गुना अधिक है।
यानी, अगर अमेरिका में प्रदूषण की इतनी कम मात्रा से स्तन कैंसर का खतरा बढ़ सकता है, तो भारत में यह खतरा कहीं अधिक गंभीर हो सकता है।
भारत की बात करें तो यहां स्तन कैंसर महिलाओं में होने वाला सबसे आम कैंसर है। 2018 में देश में महिलाओं में पाए गए कैंसर के नए मामलों में से करीब 28 फीसदी स्तन कैंसर के थे। जर्नल जेसीओ ग्लोबल ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित अन्य अध्ययन के मुताबिक भारत में हर साल 14 लाख से ज्यादा लोगों में कैंसर के मामले सामने आ रहे हैं और करीब नौ लाख लोगों की जिंदगी यह बीमारी निगल रही है।
स्वास्थ्य मंत्री द्वारा लोकसभा में पूछे एक सवाल के जवाब में ग्लोबल कैंसर ऑब्जर्वेटरी 2022 के हवाले से बताया है कि उस साल में वैश्विक स्तर पर करीब 6,65,255 महिलाओं की मौत इस बीमारी से हुई थी। इस दौरान भारत में सबसे अधिक 98,337 महिलाओं की मौत स्तन कैंसर से हुई, जोकि पूरी दुनिया में सबसे अधिक है।
वहीं नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2019 के दौरान स्तन कैंसर के 200,218 मामले सामने आए थे, जो 2023 में बढ़कर 221,579 पर पहुंच गए। मतलब की भारत में स्तन कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री के मुताबिक कैंसर का शिकार हर चार में से एक महिला को स्तन कैंसर है, और शहरी क्षेत्रों में यह मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
देखा जाए तो भारत में वायु गुणवत्ता पर बनी अधिकतर नीतियां फेफड़ों और हृदय सम्बन्धी रोगों पर केंद्रित हैं, लेकिन प्रदूषण और स्तन कैंसर के बीच संबंधों पर शोध और जागरूकता बेहद सीमित है, जिस पर विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है।
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