वैक्सीन के बेहतर इस्तेमाल से एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग में आ सकती है 250 करोड़ खुराकों की कमी: डब्ल्यूएचओ

कहीं न कहीं दुनिया भर में इन एंटीबायोटिक दवाओं का होता बेतहाशा उपयोग रोगाणुरोधी प्रतिरोध की वजह बन रहा है
वैक्सीन के बेहतर इस्तेमाल से एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग में आ सकती है 250 करोड़ खुराकों की कमी: डब्ल्यूएचओ
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी नई रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि वैक्सीन में अधिक निवेश से रोगाणुरोधी प्रतिरोध यानी एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेन्स (एएमआर) के कारण होने वाली मौतों को टाला जा सकता है।

रिपोर्ट के मुताबिक इससे ने केवल एंटीबायोटिक दवाओं के बढ़ते उपयोग को सीमित करने में मदद मिलेगी, साथ ही एंटीबायोटिक प्रतिरोधी संक्रमणों के उपचार पर होते बढ़ते खर्च को भी सीमित किया जा सकेगा। ऐसे में इन टीकों की मदद से लोगों की जानें बचाने के साथ-साथ आर्थिक संसाधनों की भी बचत होगी।

रिपोर्ट मे जो आंकड़े साझा किए गए हैं उनके मुताबिक टीकों में निवेश और उनके उपयोग को बढ़ावा देने से, सालाना एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग में 250 करोड़ खुराकों की कमी की जा सकेगी।

संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों के मुताबिक न्यूमोकॉकस, न्यूमोनिया, हेमोफिलुस इन्फ्लुएंजा टाइप बी से बचाव के लिए पहले ही टीकों का इस्तेमाल जारी है। यह रोगजनक न्यूमोनिया, टाइफाइड, मेनिनजाइटिस जैसी कई बीमारियों के लिए जिम्मेवार हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के कुछ वैक्सीन जो पहले ही उपलब्ध हैं, उनके उपयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। साथ ही नए टीकों के विकास को बढ़ावा देने भी जरूरी है।

यह वैक्सीन 106,000 मौतों को टालने में मददगार साबित हो सकती हैं, जबकि टीबी और क्लेबसिएला न्यूमोनिया के टीकों से 543,000 जिंदगियों को बचाया जा सकता है।

देखा जाए तो कहीं न कहीं दुनिया भर में एंटीबायोटिक दवाओं का होता बेतहाशा उपयोग रोगाणुरोधी प्रतिरोध की वजह बन रहा है। यह रोगाणुरोधी प्रतिरोध आज दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है।

बता दें कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध एक ऐसी समस्या है जिसमें समय के साथ रोग फैलाने वाले जीवाणुओं, विषाणुओं, फंगस और परजीवियों में ऐसे बदलाव आने लगते हैं कि एंटीबायोटिक दवाएं उनपर बेअसर होने लगती हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि एंटीबायोटिक्स से लेकर एंटीवायरल जैसी एंटीमाइक्रोबियल दवाओं ने लोगों की जाने बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक सदी पहले इनकी खोज के बाद से ही लोगों की औसत जीवन प्रत्याशा में इजाफा हुआ है।

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हर रोज ये जीवन रक्षक दवाएं लाखों लोगों का जीवन बचाने में मदद करती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यदि ये जीवन रक्षक दवाएं काम करना बंद कर दें और बेअसर होने लगें तो क्या होगा। यह बात अजीब लग सकती है आपको लग सकता है कि क्या दवाएं भी बेअसर साबित हो सकती हैं। यह सच है दुनिया में जिस तरह एंटीबायोटिक्स का चलन बढ़ रहा है, वो दुनिया में बढ़ते रोगाणुरोधी प्रतिरोध की एक नई समस्या को जन्म दे रहा है।

यह रोगाणुरोधी प्रतिरोध एक बड़ा खतरा है, इसकी विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह सालाना 50 लाख मौतों के लिए जिम्मेवार है। विडम्बना देखिए की इसके लिए एंटीबायोटिक दवाओं का गलत और बेहद ज्यादा होता इस्तेमाल भी जिम्मेवार है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक रोगाणुरोधी प्रतिरोध की इस समस्या से निपटने में टीकों की भूमिका भी बेहद अहम साबित हो सकती है। इनकी मदद से संक्रमण की रोकथाम मुमकिन है। ऐसे में इन एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग में कमी लाइ जा सकती है। साथ ही इन दवाओं को बेअसर करने वाले रोगाणुओं के उभरने व फैलने की गति को धीमा किया जा सकता है।

रिपोर्ट में जो जानकारी साझा की गई है उसके मुताबिक 24 रोगाणुओं से निपटने में वैक्सीन मददगार साबित हो सकती है। साथ ही इनके उपयोग से एंटीबायोटिक दवाओं के बढ़ते इस्तेमाल में 22 फीसदी तक कमी की जा सकती है।

दुनिया में तेजी से बढ़ रहा रोगाणुरोधी प्रतिरोध

इनमें से बहुत से टीके पहले ही उपलब्ध हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल उतना नहीं हो रहा, जिसे बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही अन्य टीकों को जल्द से जल्द विकसित करके बाजार में उपलब्ध कराए जाने की जरूरत है। गौरतलब है कि कोविड-19 महामारी के समय में भी टीके जीवन रक्षक साबित हुए। यहां तक की लोगों की प्रतिरक्षा को बढ़ाने में अभी भी उनकी बड़ी भूमिका है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने भी प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है, रोगाणुरोधी प्रतिरोध से निपटने की शुरूआत संक्रमण की रोकथाम से शुरू होती है और इसके लिए टीके सबसे शक्तिशाली उपायों में से एक हैं।

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि टीकाकरण की मदद से लोगों में संक्रमण के फैलने का खतरा कम होगा। साथ ही उन्हें अन्य तरह के संक्रमण से भी बचाया जा सकेगा। ऐसे में लोगों को अस्पताल में भर्ती करने और एंटीबायोटिक दवाएं लेने की जरूरत नहीं होगी।

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देखा जाए तो दुनिया में बढ़ता रोगाणुरोधी प्रतिरोध अर्थव्यवस्था पर भी गहरी चोट कर रहा है। हालांकि टीकों की मदद से इससे जुड़े आर्थिक बोझ को कम किया जा सकता है।

वैश्विक स्तर पर देखें तो रोगाणुरोधी प्रतिरोध के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों पर सालाना 73,000 करोड़ डॉलर का खर्च होता है। ऐसे में यदि इन वैक्सीन के दायरे को बढ़ाया जाए तो रोगाणुरोधी प्रतिरोध की वजह से होने वाले अस्पताल के खर्चों में एक तिहाई की कटौती की जा सकती है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) द्वारा जारी नई रिपोर्ट "ब्रेसिंग फॉर सुपरबग" से पता चला है कि यदि इसपर अभी ध्यान न दिया गया तो रोगाणुरोधी प्रतिरोध के चलते अगले कुछ वर्षों में सालाना वैश्विक अर्थव्यवस्था को 281.1 लाख करोड़ रूपए (3.4 लाख करोड़ डॉलर) से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ सकता है। इतना ही नहीं इसके कारण 2.4 करोड़ अतिरिक्त लोग अत्यधिक गरीबी की मार झेलने को मजबूर हो जाएंगे।

रिपोर्ट से पता चला है कि आने वाले 27 वर्षों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध से मरने वालों का आंकड़ा बढ़कर दोगुणा हो जाएगा। गौरतलब है कि 2019 में रोगाणुरोधी प्रतिरोध से मरने वालों का आंकड़ा करीब 50 लाख था जिसके 2050 तक बढ़कर प्रतिवर्ष एक करोड़ हो जाने की आशंका जताई जा रही है। यह आंकड़ा 2020 में कैंसर से होने वाली मौतों के लगभग बराबर है।

जर्नल लैंसेट में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक रोगाणुरोधी प्रतिरोध हर साल मलेरिया और एड्स से भी ज्यादा लोगों की जान ले रहा है।

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आंकड़े दर्शाते हैं कि 2000 से लेकर 2018 के बीच मवेशियों में पाए जाने वाले जीवाणु तीन गुना अधिक एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स हो गए हैं, जोकि एक बड़ा खतरा है, क्योंकि यह जीवाणु बड़े आसानी से मनुष्यों के शरीर में भी प्रवेश कर सकते हैं।

एंटीबायोटिक दवाओं को बेअसर करने वाला रोगाणुरोधी प्रतिरोध एक ऐसा अदृश्य खतरा है, जिसका प्रभाव सीमाओं से परे है। यही वजह है कि कोई भी देश अकेला दुनिया में तेजी से बढ़ते इस खतरे का मुकाबला नहीं कर सकता।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध के इसी खतरे को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 79 वें सत्र के दौरान वैश्विक नेताओं ने इसपर निर्णायक कार्रवाई का संकल्प लिया। साथ ही एक राजनैतिक घोषणा-पत्र भी पारित किया गया।

इस घोषणा-पत्र में रोगाणुरोधी प्रतिरोध की वजह से होने वाली मौतों में 2030 तक दस फीसदी की कमी करने की बात कही गई है। घोषणा पत्र में इस लक्ष्य को स्थापित करने के साथ-साथ, चुनौती से निपटने के लिए अहम समाधानों को भी चिन्हित किया गया है।

इस घोषणापत्र में कई अहम उपायों पर बल दिया गया है, जिनमें टीकों, दवाओं, उपचार व निदान की सुलभता को बढ़ाने के साथ-साथ शोध व नए समाधानों को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय समर्थन सुनिश्चित करना शामिल है।

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