भारत में रोगाणुरोधी प्रतिरोध को नियंत्रित करने का सीएसई ने सुझाया रास्ता, बताया मूक महामारी

सीएसई रिपोर्ट के मुताबिक एएमआर एक 'मूक महामारी' है जो इंसानों और मवेशियों के स्वास्थ्य के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा और विकास को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है
रोगाणुरोधी प्रतिरोध वैश्विक स्तर पर हर साल 50 लाख जिंदगियों को लील रहा है; फोटो: आईस्टॉक
रोगाणुरोधी प्रतिरोध वैश्विक स्तर पर हर साल 50 लाख जिंदगियों को लील रहा है; फोटो: आईस्टॉक
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इसमें कोई शक नहीं कि दुनिया भर में तेजी से उभरता रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) एक बड़ा खतरा है, जिससे भारत भी सुरक्षित नहीं है। समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध वैश्विक स्तर पर हर साल 50 लाख जिंदगियों को लील रहा है।

वहीं अनुमान है कि अगले 27 वर्षों में एएमआर से होने वाली इन मौतों का आंकड़ा बढ़कर सालाना एक करोड़ पर पहुंच जाएगा। ऐसे में भारत को भी इस बढ़ते खतरे से निपटने के लिए तैयार रहने की जरूरत है।

इसी के मद्देनजर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने विश्व एएमआर जागरूकता सप्ताह 2023 के मौके पर एक नई रिपोर्ट "वन हेल्थ एक्शन टू प्रिवेंट एंड कंटेन एएमआर इन इंडियन स्टेट्स एंड यूनियन टेरीटोरिस" जारी की है।     

रिपोर्ट के अनुसार एएमआर एक 'मूक महामारी' है जो इंसानों और मवेशियों के स्वास्थ्य के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा और विकास को भी महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर रही है। ऐसे में इस रिपोर्ट में भारत में बढ़ते रोगाणुरोधी प्रतिरोध को नियंत्रित और रोकने के लिए क्या कुछ उठाए जाने चाहिए उनको उजागर किया गया है।

जैसा की इस रिपोर्ट के नाम से ही स्पष्ट है यह रिपोर्ट भारत में रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) को रोकने और नियंत्रित करने के लिए राज्यों और केन्द्र-शासित प्रदेशों के बीच स्वास्थ्य, पशुधन, मत्स्य पालन, कृषि और पर्यावरण के क्षेत्र में एकजुट कार्रवाई की वकालत करती है। गौरतलब है कि इस रिपोर्ट को राज्य सरकार के स्वास्थ्य, पशुपालन, कृषि, प्रदूषण नियंत्रण, खाद्य और औषधि विभागों के विशेषज्ञों और हितधारकों से प्राप्त सुझावों के आधार पर तैयार किया गया है।

गौरतलब है कि इस रिपोर्ट को रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर चर्चा के लिए सीएसई और डब्ल्यूएचओ द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित राष्ट्रीय परामर्श कार्यक्रम के मौके पर जारी किया गया है। बता दें कि 18-24 नवंबर के बीच सप्ताह को विश्व एएमआर जागरूकता सप्ताह के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान 15 राज्यों के स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े 50 से अधिक हितधारक स्वास्थ्य, जीविका और विकास पर पड़ते एएमआर के गंभीर प्रभावों के मुद्दे पर चर्चा करने और आवश्यक कार्रवाई की रूपरेखा तैयार करने के लिए एकजुट हुए थे।

सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने इस कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए कहा कि, “रोगाणुरोधी प्रतिरोध या एएमआर के संकट पर हमारी प्रतिक्रिया अब केवल मानव स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है। इसके लिए खाद्य, पशुपालन, कृषि, और अपशिष्ट क्षेत्रों में हितधारकों की ओर से आवश्यक कार्रवाई अब स्पष्ट है।“

इस परामर्श के दौरान, भारत में डब्ल्यूएचओ के प्रतिनिधि डॉक्टर रोडेरिको एच ऑफ्रिन ने कहा कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वो रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एसएपीसीएआर) की रोकथाम के लिए अपनी राज्य कार्य योजना विकसित करने करें।" उन्होंने सभी क्षेत्रों से जुड़े प्रमुख हितधारकों को शामिल करते हुए एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण के उपयोग पर जोर दिया है।

लम्बे समय से एएमआर के बढ़ते खतरे पर जागरूक करता रहा है सीएसई

सीएसई में सस्टेनेबल फूड सिस्टम्स प्रोग्राम के निदेशक अमित खुराना ने डॉक्टर ऑफ्रिन के विचारों का समर्थन करते हुए इस बात पर जोर दिया है कि, “चूंकि स्वास्थ्य, पशुपालन, मत्स्य पालन, कृषि, प्रदूषण नियंत्रण, पानी और स्वच्छता से संबंधित मुद्दों को राज्य स्तर पर सबसे प्रभावी ढंग से संबोधित किया जाता है, ऐसे में राज्यों को भारत में बहु-क्षेत्रीय कार्रवाई को लागू करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।“

बता दें कि लम्बे समय से सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ भारत में लोगों को एंटीबायोटिक्स के होते दुरूपयोग और इसके बढ़ते खतरों से चेताता रहा है। हालांकि इसके बावजूद आज भी देश में इसको लेकर जागरूकता का आभाव है।

आज दुनिया भर में जिस तरह से एंटीबायोटिक दवाओं का दुरूपयोग हो रहा है, भारत भी उसमें पीछे नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक, भविष्य में इससे होने वाली कुल मौतों में से 90 फीसदी एशिया और अफ्रीका में होंगी। इससे पता चलते है कि विकासशील देशों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा, जिसमें भारत भी शामिल है।

विश्व बैंक द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक रोगाणुरोधी प्रतिरोध के इलाज की भागदौड़ में 2030 तक और 2.4 करोड़ लोग गरीबी के गर्त में जा सकते हैं। इतना ही नहीं बढ़ते प्रतिरोध की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) द्वारा जारी रिपोर्ट "ब्रेसिंग फॉर सुपरबग" में सामने आया है कि हर गुजरते दिन के साथ रोगाणुरोधी प्रतिरोध कहीं ज्यादा बड़ा खतरा बनता जा रहा है। अनुमान है कि यदि अभी ध्यान न दिया गया तो वैश्विक अर्थव्यवस्था को इससे अगले कुछ वर्षों में हर साल 281.1 लाख करोड़ रूपए (3.4 लाख करोड़ डॉलर) से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ सकता है।

एएमआर से निपटने के लिए किन मुद्दों पर देना होगा ध्यान

ऐसे में सीएसई द्वारा जारी यह नई रिपोर्ट मानव स्वास्थ्य, पशुधन, मत्स्य पालन, कृषि और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों के लिए व्यावहारिक, लागत प्रभावी नीतियों और जमीनी हस्तक्षेप की रूपरेखा तैयार करती है। ये प्रस्तावित कार्रवाइयां रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) को रोकने और नियंत्रित करने के साथ इस विषय में जागरूकता बढ़ाने और  शिक्षा के प्रसार पर जोर देती है। साथ ही इसमें धड़ल्ले से होते एंटीबायोटिक के उपयोग को नियंत्रित करने और उसके समझदारी से उपयोग की वकालत करती है।

इस विषय में राज्यों द्वारा जो सुझाव दिए गए हैं, उनमें देश में एएमआर को लेकर जागरूकता पैदा करने पर बल दिया गया है। इसके लिए स्पष्ट संदेश के साथ-साथ लक्षित वर्ग की पहचान करना। जानकारी के प्रसार के लिए सोशल मीडिया, विभागीय वेबसाइट और विज्ञापनों की मदद लेना। विशेष तौर पर स्थानीय भाषाओं में भी इसका प्रसार जरूरी है।

साथ ही इस विषय में शिक्षण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर जोर देना और एएमआर के विषय में शिक्षा को मुख्यधारा में शामिल करना जैसे उपाय शामिल हैं। वहीं यदि पशुधन, मत्स्य पालन और कृषि क्षेत्र की बात करें तो जैवसुरक्षा, टीकाकरण और संक्रमण की रोकथाम पर ध्यान देना जरूरी है। वहीं पर्यावरण क्षेत्र में एएमआर और प्रदूषण स्रोतों के साथ अपशिष्ट के उचित प्रबंधन के साथ-साथ जागरूकता बढ़ाना अहम है।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध की रोकथाम के लिए विभिन्न क्षेत्रों में एएमआर की निरंतर निगरानी और प्रयोगशालाओं के तंत्र को सशक्त करना भी अहम है। इसके लिए कर्मियों को प्रशिक्षित करने की भी जरूरत है। इसी तरह कृषि क्षेत्रों में मवेशियों की प्रजातियों के आधार पर निगरानी के लिए रणनीति विकसित करना जरूरी है। 

संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण के लिए पशुधन क्षेत्र में राज्य-स्तरीय आईपीसी कार्य योजनाएं विकसित करनी की जरूरत है। साथ ही नियमित टीकाकरण भी जरूरी है। वहीं मत्स्य पालन क्षेत्र में जैव सुरक्षा और मृत जानवरों के उचित निपटान की व्यवस्था भी अहम है। कृषि क्षेत्र में खरपतवार नियंत्रण और पोषक तत्वों का प्रबंधन भी महत्वपूर्ण है। इसी के साथ आंकड़ों को आम लोगों के साथ साझा करने की भी आवश्यकता है।

इसी तरह पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए घरेलू और कृषि क्षेत्र में पुरानी और न उपयोग होने वाली एंटीबायोटिक दवाओं का उचित निपटान जरूरी है। इसके लिए दवा वापस लेने की नीति पेश करना और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अपशिष्ट के बेहतर प्रबंधन के लिए प्रथाओं को प्रोत्साहित करना जरूरी है।

रिपोर्ट में एंटीबायोटिक दवाओं के बेतहाशा  होते उपयोग को भी नियंत्रित करने पर जोर दिया गया है। इसके लिए कृषि और पशुधन क्षेत्र में उपचार के लिए दिशानिर्देश और विभिन्न क्षेत्रों में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग पर निगरानी और नियमन जरूरी है। इसी तरह इन जीवों को चारे में जिस तरह से एंटीबायोटिक्स दिए जा रहे हैं उन्हें भी नियंत्रित करना होगा।

मत्स्य पालन क्षेत्र में मछलियों के स्वास्थ्य के लिए कार्य योजना विकसित करना। एक्वा ड्रग डीलरों को पंजीकृत करना और इलाज के लिए प्रयोग होने वाली दवाओं पर नियंत्रण रखना। वहीं कृषि क्षेत्र में एंटीबायोटिक के उपयोग के लिए दिशानिर्देश विकसित करना अहम है। साथ ही अनुमोदित एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को बढ़ावा देना भी जरूरी है।

इसी तरह फसलों में लगने वाले रोगों और बीमारियों को सीमित करने के लिए मृदा उपचार और वेक्टर नियंत्रण उपायों पर जोर देना होगा। साथ ही उपज में एंटीबायोटिक्स का पता लगाने के लिए सस्ते और किफायती उपकरण विकसित करना भी रोकथाम में मददगार साबित हो सकता है।

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