भोपाल की ग्रीन बेल्ट में फिर लौटेगी हरियाली, एनजीटी ने 'सघन वृक्षारोपण' का दिया आदेश

पर्यावरणविद सुभाष सी पांडे के मुताबिक 1990 में भोपाल में मौजूद करीब 66 फीसदी हरियाली 2022 तक घटकर महज 6 फीसदी रह गई है
फोटो: आईस्टॉक
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की सेंट्रल बेंच ने मध्य प्रदेश सरकार, भोपाल नगर निगम (बीएमसी), वन विभाग और लोक निर्माण विभाग को निर्देश दिया है कि जहां-जहां से अतिक्रमण हटाया गया है, वहां 'सघन वृक्षारोपण' की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाए।

3 जुलाई, 2025 को दिया यह आदेश पर्यावरणविद् सुभाष सी पांडे द्वारा दायर एक याचिका पर दिया गया, जिसमें उन्होंने भोपाल शहर के हरित क्षेत्रों, पेड़ों की सुरक्षा और ग्रीन बेल्ट से अतिक्रमण हटाने की मांग उठाई थी।

सुभाष सी पांडे की कहना है कि भोपाल के लोग बेहद भाग्यशाली हैं कि उन्हें कैपिटल प्रोजेक्ट फॉरेस्ट जैसे अद्वितीय वन क्षेत्र का सौभाग्य प्राप्त है, जिसे 1986 में यूनियन कार्बाइड गैस त्रासदी के बाद वायु प्रदूषण से निपटने और सरकारी जमीन पर अतिक्रमण रोकने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।

उनके मुताबिक कैपिटल प्रोजेक्ट फॉरेस्ट ने अपने आरंभिक वर्षों में शानदार कार्य किया और भोपाल को देश के सबसे हरे-भरे शहरों में गिना जाने लगा।

हालांकि पांडे का कहना है कि 1990 में भोपाल में मौजूद करीब 66 फीसदी हरियाली 2022 तक घटकर महज 6 फीसदी रह गई है, जोकि चिंता की बात है। आशंका है कि यदि यही रुझान जारी रहता है तो 2025 में यह हरियाली 3 फीसदी तक सिमट सकती है।

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राजधानी परियोजना वनमंडल भोपाल के वन मंडल अधिकारी (डीएफओ) ने 10 दिसंबर 2021 को भोपाल नगर निगम को पत्र लिखकर 692 से अधिक स्थानों पर अतिक्रमण की जानकारी दी थी और पेड़ों की कटाई रोकने व सार्वजनिक भूमि से अतिक्रमण हटाने की मांग की थी, लेकिन तब अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई।

हालांकि अब भोपाल नगर निगम ने ट्रिब्यूनल को सूचित किया है कि अतिक्रमण हटाने की दिशा में कदम उठाए गए हैं।

एनएचएआई की लापरवाही पर एनजीटी सख्त, पर्यावरणीय अनदेखी पर मांगा जवाब

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण के दौरान पर्यावरण की अनदेखी को लेकर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) से जवाब तलब किया है।

ट्रिब्यूनल ने राजस्थान के लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी), वन विभाग, एनएचएआई के क्षेत्रीय अधिकारी और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इस मामले में अगली सुनवाई 14 अगस्त 2025 को होगी।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि एनएचएआई द्वारा राजमार्गों के निर्माण में पर्यावरणीय नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। विशेष रूप से वृक्षारोपण कार्य तय मानकों के अनुरूप नहीं है — न स्थानीय प्रजातियों का ध्यान रखा जाता है और न ही कटे हुए पेड़ों की तुलना में पर्याप्त संख्या में पेड़ लगाए जाते हैं।

याचिका में आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी का हवाला देते हुए बताया गया कि कुछ स्थानों पर जितने पेड़ काटे गए, उससे कम लगाए गए। वहीं कुछ रिपोर्टों में यह भी दर्ज है कि लगाए गए पेड़ों से ज्यादा 'जीवित' पेड़ पाए गए, जो आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है।

याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की गाइडलाइनों के अनुसार, राजमार्ग के विकास से पेड़-पौधों की क्षति होना तय है, लेकिन इसकी भरपाई के लिए ‘कॉरिडोर डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट’ नीति के तहत पौधारोपण, स्थानांतरण, सौंदर्यीकरण और रख-रखाव की जिम्मेदारी एजेंसियों की होती है।

ऐसे में याचिका में मांग की गई है कि एनएचएआई को जवाबदेह ठहराया जाए और वृक्षों की कटाई व पुनः रोपण में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।

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