नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अधिकारियों को इस बात की जांच के आदेश दिए हैं कि क्या भोपाल नगर निगम (बीएमसी) ने अधिकारियों से मंजूरी लिए बिना बोरवन के वन क्षेत्र में पेड़ों को अवैध रूप से काटा है। बता दें कि बोरवन एक ‘डीम्ड फारेस्ट’ है।
कोर्ट के अनुसार यदि नगर निगम ने उस क्षेत्र में कोई निर्माण कर रहा है, तो उसे रोकना होगा और पहले किए निर्माणों को ध्वस्त करना होगा। साथ ही कोर्ट ने बीएमसी पर उचित पर्यावरणीय मुआवजा लगाना का भी निर्देश दिया है।
गौरतलब है कि भोपाल निवासी नितिन सक्सेना ने अपने एक आवेदन में शिकायत की थी कि भोपाल नगर निगम ने बोरवन वन क्षेत्र/पार्क में कई पेड़ों को अवैध रूप से काटा है। इस क्षेत्र में 1,25,977 से अधिक पेड़ हैं। यह इलाका 'भोज वेटलैंड' के जलग्रहण क्षेत्र में आता है, जोकि एक रामसर साइट भी है।
कोर्ट को दी गई जानकारी के मुताबिक बीएमसी ने योग/ध्यान शेड बनाने के इरादे से भोपाल नगर पालिका में बागवानी शाखा और वृक्ष विभाग के अतिरिक्त आयुक्त से 100 पेड़ों को काटने की अनुमति मांगी थी। भोपाल, नगर निगम के सहायक आयुक्त (उद्यान) ने पत्र के माध्यम से दो मई 2023 को इसकी अनुमति दे दी थी।
तीन मई, 2023 को एक और पत्र प्रस्तुत किया गया जिसमें कहा गया कि बोरवन में एक हेक्टेयर भूमि पर निर्माण किया जाना है, जिसके लिए 38 सेमी से कम परिधि वाले 28 पेड़ और 30 सेमी से अधिक परिधि वाले 57 पेड़ काटे जाने हैं।
इसके बदले में बीएमसी ने 284 पेड़ लगाने के साथ ही भोपाल नगर निगम के राज्य आयुक्त (बागवानी) के पास 4,11,800 रुपये जमा करने का भी प्रस्ताव रखा। उपयुक्त राशि जमा करने के बाद चार मई 2023 को सहायक आयुक्त (उद्यान), ने पत्र के जरिए पेड़ों को काटने की अनुमति दे दी थी।
आवेदक की दलील है कि सहायक आयुक्त (बागवानी) के पास उस जंगल में पेड़ों को काटने की इजाजत देने का कोई अधिकार नहीं है। यह क्षेत्र टी एन गोदावर्मन मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए फैसले के आधार पर 'डीम्ड फारेस्ट' है। ऐसे में वन संरक्षण अधिनियम, 1980 की धारा 2 के तहत केवल केंद्र सरकार इसकी इजाजत दे सकती है।
यह भी कहा गया है कि वन भूमि में 'गैर-वन गतिविधियां' तब तक नहीं चलाई जा सकती जब तक कि धारा 2 के तहत सक्षम प्राधिकारी उसके लिए अनुमति न दे।
ऐसे में एनजीटी की सेंट्रल बेंच का कहना है कि, जाहिर तौर पर, यह स्पष्ट है कि बीएमसी नगर निगम, भोपाल में कार्यरत अपने स्वयं के अधिकारी से अनुमति लेकर आगे बढ़ रही है, जो वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत ऐसी अनुमति देने में सक्षम ही नहीं है। कोर्ट के मुताबिक बीएमसी, बोरवन में 'गैर-वन गतिविधियों' को आगे नहीं बढ़ा सकती है।
उदयपुर में चरागाह और तालाब पर अवैध अतिक्रमण का मामला, ट्रिब्यूनल ने समिति से एक महीने में मांगी रिपोर्ट
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की सेंट्रल बेंच ने उदयपुर में चरागाह और बगेला तालाब पर होते अवैध अतिक्रमण के मामले में ट्रिब्यूनल की सहायता के लिए एक एमिकस क्यूरी की नियुक्ति का निर्देश दिया है। मामला राजस्थान में उदयपुर के मुनवास गांव का है।
इस मामले में अदालत ने सात अगस्त, 2023 को राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालय, पर्यावरण और वन मंत्रालय जयपुर के साथ एक पर्यावरण विशेषज्ञ की एक संयुक्त समिति बनाने का भी निर्देश दिया है। यह समिति एक महीने में अपनी रिपोर्ट कोर्ट में सबमिट करेगी।
गौरतलब है कि मुनवास निवासी महादेव सिंह ने 10 जुलाई, 2022 को एनजीटी में याचिका दायर की थी। अपनी याचिका में उन्होंने कहा है कि चरागाह भूमि और बागेला तालाब पर मलबा भरकर अवैध अतिक्रमण और निर्माण किया जा रहा है।
क्षेत्र में पहाड़ों और पेड़ों को काटा गया है और ट्रकों से मलबा भरकर मुनवास स्कूल के सामने तालाब में डाला गया है। कुछ होटल मालिक भी तालाब में गंदा पानी डाल रहे हैं साथ ही तालाब के एक हिस्से को भरकर उसपर निर्माण भी किया गया है। तालाब में आने वाले पानी के प्राकृतिक स्रोत को वालेंसिया रिजॉर्ट ने निर्माण के उद्देश्य से बंद कर दिया है। सरपंच ने भी चरागाह भूमि पर अवैध अतिक्रमण करके मकान बनाए हैं, जिसका एक उदाहरण मुनवास डेयरी है।
इस मामले में संयुक्त समिति ने 21 मार्च 2023 को सौंपी अपनी जांच रिपोर्ट में कहा है कि कैलाशपुरी गांव के राजस्व रिकार्ड में चरागाह के रूप में दर्ज जमीन पर सामुदायिक भवन का निर्माण किया गया है। वहीं मुनवास स्कूल के सामने के तालाब को 25 वर्ग मीटर तक समतल कर दिया गया है। इसके अलावा, अर्जी संख्या 293, 294 के निचले हिस्से में करीब 750 वर्ग मीटर भूमि है, जिस पर बारिश का पानी बहता था लेकिन वह भी भर दिया गया है, जिससे वर्षा जल का प्रवाह बाधित हो गया है।
भूमि के राजस्व रिकॉर्ड से पता चला है कि मुनवास में तालाब के रूप में दर्ज करीब 10,300 वर्ग फीट भूमि में भराव कर उसे बराबर कर दिया गया है। वहां पर एक दीवार का भी निर्माण किया गया है।
आदेश के बावजूद उत्तराखंड के तीर्थस्थलों में पर्यावरण नियमों किया जा रहा उल्लंघन: एनजीटी
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) का कहना है कि आठ फरवरी, 2023 को दिए आदेश के बावजूद, उत्तराखंड में केदारनाथ, हेमकुंड साहिब, यमुनोत्री और गोमुख तीर्थस्थलों पर पर्यावरण मानदंडों का उल्लंघन अभी भी जारी है।
आवेदक शशिकांत पुरोहित के कार्यकारी आवेदन को संज्ञान में लेते हुए एनजीटी ने उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला मजिस्ट्रेट, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी को तीन सप्ताह के भीतर इस मामले में की गई कार्रवाई पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।