सिर्फ जंगलों के लिए होगी जंगल की जमीन, सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने एक साल के भीतर सभी राज्यों में जंगलों के लिए आरक्षित जमीन को वन विभाग को वापस करने का भी निर्देश दिया है
कहीं न कहीं मनुष्य इन जंगलों को गंवा कर स्वयं ही अपने विनाश की पटकथा लिख रहा है। फोटो: पिक्साबे
कहीं न कहीं मनुष्य इन जंगलों को गंवा कर स्वयं ही अपने विनाश की पटकथा लिख रहा है। फोटो: पिक्साबे
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सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई, 2025 को एक ऐतिहासिक फैसले में सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को निर्देश दिया है कि वे विशेष जांच टीमों का गठन करें। इन टीमों का काम आरक्षित वन भूमि पर हुए अवैध आवंटनों की जांच करना होगा।

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि यह जांच की जाए कि कहीं राजस्व विभाग के कब्जे में मौजूद आरक्षित वन भूमि किसी व्यक्ति या संस्था को ऐसे काम के लिए तो नहीं दे दी गई है, जो जंगलों से जुड़ा न हो।

अदालत ने सख्ती दिखाते हुए कहा कि यदि ऐसी कोई भी जमीन किसी के कब्जे में है, तो राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेश उन्हें वापस लेकर वन विभाग को सौंपने के लिए कदम उठाने चाहिए। आदेश में यह भी कहा गया है कि अगर किसी वजह से भूमि वापस लेना जनहित में न हो, तो संबंधित व्यक्ति या संस्था से उसकी पूरी लागत वसूल की जाए और उस धनराशि का इस्तेमाल वनों के विकास में किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच जिसमें मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति कृष्णन विनोद चंद्रन शामिल थे, ने यह भी कहा कि यह पूरी प्रक्रिया एक साल के भीतर पूरी हो जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि अब से आरक्षित वन भूमि का उपयोग केवल वनो के विकास के लिए ही किया जाना चाहिए।”

गौरतलब है कि यह आदेश पुणे जिले के कोंढवा बु्द्रुक इलाके में आरक्षित वन भूमि को अवैध रूप से रिची रिच को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी (आरआरसीएचएस) को देने से जुड़े एक मामले में दिया गया।

जंगल में मकान जायज? सुप्रीम कोर्ट ने उठाया था सवाल

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि “28 अगस्त, 1998 को पुणे जिले के कोंढवा बुद्रुक में कृषि उद्देश्यों के लिए 11.89 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि का आवंटन और उसके बाद 30 अक्टूबर, 1999 को रिची रिच को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी के पक्ष में इसकी बिक्री की अनुमति देना पूरी तरह से अवैध था।“

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 3 जुलाई, 2007 को पर्यावरण मंत्रालय द्वारा आरआरसीएचएस को दी गई पर्यावरण मंजूरी अवैध है। ऐसे में अदालत ने उस मंजूरी को रद्द कर दिया। कोर्ट ने आदेश दिया कि राजस्व विभाग के कब्जे में मौजूद जमीन जो वन भूमि के रूप में आरक्षित है उसे तीन महीनों के भीतर वन विभाग को सौंप दिया जाना चाहिए।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल, 2025 को मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या जंगल में मकान बनाना जायज है? अगर हां, तो इसके लिए कौन-कौन से नियम-कानून हैं?

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कोर्ट ने कहा है कि अगर जंगल में घर बनाना कानूनी रूप से संभव है, तो इससे जुड़े सभी नियम, कानून और आदेशों को हलफनामे के साथ पेश किया जाए। दोनों सरकारों को यह विस्तृत हलफनामा तीन सप्ताह के भीतर अदालत में दाखिल करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से यह साफ है कि अब जंगलों में निर्माण से जुड़ी गतिविधियों पर सख्ती से नजर रखी जाएगी, ताकि पर्यावरण और वनवासियों के अधिकारों की रक्षा की जा सके।

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