
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने 8 मई, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में एक रिपोर्ट दायर की है। यह रिपोर्ट पूर्वोत्तर भारत में घटते वन क्षेत्र को लेकर है।
यह मामला 22 दिसंबर, 2024 को असम ट्रिब्यून की वेबसाइट पर छपी खबर के आधार पर एनजीटी में स्वत: संज्ञान लेते हुए दर्ज किया गया है।
खबर में कहा गया है कि इंडिया स्टेट ऑफ फारेस्ट रिपोर्ट 2023 के मुताबिक, 2021 से 2023 के बीच असम के वन क्षेत्र में 83.92 वर्ग किलोमीटर की गिरावट आई है।
खबर में आगे बताया गया है कि यह गिरावट भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में देखी गई व्यापक प्रवृत्ति का हिस्सा है। इस अवधि के दौरान पूर्वोत्तर क्षेत्र में 372.3 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र में कमी आई है। इनमें मिजोरम सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य रहा, जहां 178.42 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र घटा है।
राज्य तय करते हैं जंगल की हदें
मामले की सही स्थिति का पता लगाने के लिए पर्यावरण मंत्रालय ने 17 मार्च, 2025 को फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई), देहरादून से एक तथ्यात्मक रिपोर्ट तैयार करने को कहा था।
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने 4 अप्रैल, 2025 को पूर्वोत्तर के संबंधित राज्यों से वन क्षेत्र में कमी के कारणों की जानकारी मांगी थी और उसे मंत्रालय के साथ साझा करने को कहा था। हालांकि, इस संबंध में अब तक राज्य सरकारों की ओर से कोई जानकारी नहीं मिली है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमि राज्य सरकार का विषय है। वन क्षेत्र और उनकी कानूनी सीमाएं संबंधित राज्य सरकार द्वारा ही तय की जाती हैं। साथ ही उनका रखरखाव भी वही करती हैं। इसलिए जंगलों से जुड़ी किसी भी कार्रवाई की जिम्मेवारी संबंधित राज्यों—असम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और मिजोरम—की होती है।
इन राज्यों के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) ही इस मामले में कार्रवाई के लिए जिम्मेदार अधिकारी है।