क्या जंगल में जायज है मकान बनाना? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से पूछा सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर जंगल में घर मकान कानूनी रूप से संभव है, तो इससे जुड़े सभी नियम, कायदे-कानून और आदेशों को हलफनामे के साथ पेश किया जाए
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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क्या जंगल में मकान बनाना जायज है? अगर हां, तो इसके लिए कौन-कौन से नियम-कानून हैं? सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल, 2025 को यह अहम सवाल मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार से पूछा है।

न्यायमूर्ति पमिदिघनतम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की बेंच ने इस मामले में केंद्र सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) को भी जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।

कोर्ट ने कहा है कि अगर जंगल में घर बनाना कानूनी रूप से संभव है, तो इससे जुड़े सभी नियम, कानून और आदेशों को हलफनामे के साथ पेश किया जाए। दोनों सरकारों को यह विस्तृत हलफनामा तीन सप्ताह के भीतर अदालत में दाखिल करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से यह साफ है कि अब जंगलों में निर्माण से जुड़ी गतिविधियों पर सख्ती से नजर रखी जाएगी, ताकि पर्यावरण और वनवासियों के अधिकारों की रक्षा की जा सके।

सुप्रीम कोर्ट ने नौ थर्मल पावर प्लांट्स को नोटिस भेजने का दिया निर्देश, पंजाब के भी थर्मल पावर प्लांट हैं शामिल

सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल, 2025 को देश के नौ थर्मल पावर प्लांट्स को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है। इनमें से दो पावर प्लांट पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (पीएसपीसीएल) के हैं। कोर्ट ने 2 अप्रैल, 2025 के अपने पुराने आदेश में जिन पावर प्लांट्स का जिक्र किया था, उन्हें भी नए सिरे से नोटिस जारी करने को कहा है।

कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह इन सभी पावर प्लांट्स के पते तुरंत उपलब्ध कराए, ताकि नोटिस भेजे जा सकें।

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पंजाब सरकार की ओर से पेश वकील ने कोर्ट में कहा कि वह गुरु हरगोबिंद थर्मल प्लांट और गुरु गोबिंद सिंह सुपर थर्मल पावर प्लांट और पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड द्वारा चलाए जा रहे प्लांट्स के लिए नोटिस स्वीकार करेंगे।

कोर्ट ने पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड को यह भी निर्देश दिया है कि वह अपने हलफनामे में नवांशहर जिले के राजपुरा में स्थित "नाभा पावर लिमिटेड" की ओर से हलफनामे में लगाए गए आरोपों का भी जवाब दे।

नाभा पावर लिमिटेड ने हलफनामे में कहा है उसने अपने राजपुरा थर्मल पावर प्लांट में सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) को रोकने के लिए जरूरी फ्लू गैस डीसल्फराइजेशन (एफजीडी) यूनिट्स तो लगा दिए हैं, लेकिन पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड का सहयोग न मिलने के कारण उन्हें शुरू नहीं किया जा सका है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफडीजी यूनिट्स प्रदूषण को रोकने में बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। ये यूनिट्स चिमनी से निकलने वाली जहरीली सल्फर गैस को एक रसायन से साफ करते हैं, जिससे वायु प्रदूषण कम होता है।

गौरतलब है कि सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) द्वारा जारी विश्लेषण से पता चला है कि देश में 537 में से 380 बिजली संयंत्र यूनिट्स उत्सर्जन संबंधी नियमों का पालन नहीं कर रही। मतलब की देश के करीब 71 फीसदी बिजली संयंत्र उत्सर्जन मानकों पर पूरी तरह खरे नहीं हैं। इतना ही नहीं ये प्लांट सल्फर डाइऑक्साइड के लिए तय सीमा से डेढ़ से दस फीसदी अधिक उत्सर्जन कर रहे हैं।

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