
विश्व खाद्य दिवस हर साल 16 अक्टूबर को खाद्य सुरक्षा, पोषण और टिकाऊ कृषि के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है।
2025 की थीम - "बेहतर भोजन और बेहतर भविष्य के लिए साथ मिलकर" - वैश्विक सहयोग और साझा प्रयासों पर बल देती है।
दुनिया में असंतुलन - एक ओर 67.3 करोड़ लोग भूख से जूझ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भोजन की बर्बादी और मोटापा बढ़ रहा है।
भारत की उपलब्धियां - भारत दूध, मिलेट्स और फल-सब्जियों के उत्पादन में अग्रणी है, साथ ही कृषि निर्यात और उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है।
सरकारी योजनाएं - एनएफएसए, पीडीएस, मिड-डे मील, आईसीडीएस और पीएम-किसान जैसी योजनाएं भूख और कुपोषण मिटाने में अहम भूमिका निभा रही हैं।
हर साल 16 अक्टूबर को पूरी दुनिया में विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है। यह दिन भोजन, पोषण, खाद्य सुरक्षा और टिकाऊ खेती की जरूरतों को समझाने और इन पर जागरूकता फैलाने का अवसर है। यह दिन संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की स्थापना (1945) की याद में मनाया जाता है। पहली बार इसे 1981 में “भोजन पहले आता है” की थीम के साथ मनाया गया था।
विश्व खाद्य दिवस सिर्फ एक औपचारिक दिन नहीं है, यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि आज भी करोड़ों लोग भूखे क्यों हैं जबकि दुनिया में भोजन की कोई कमी नहीं है।
वर्तमान स्थिति: भूख और असंतुलन की दुनिया
एफएओ की रिपोर्ट के अनुसार, आज भी दुनिया में लगभग 67.3 करोड़ लोग भूख से जूझ रहे हैं। दूसरी ओर, कई देशों में मोटापा, असंतुलित आहार और भोजन की बर्बादी एक बड़ी समस्या बन चुकी है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भोजन की व्यवस्था संतुलित नहीं है, कहीं अत्यधिक मात्रा में भोजन है, तो कहीं उसकी भारी कमी है।
खाद्य प्रणालियां सिर्फ लोगों को भोजन देने के लिए नहीं, बल्कि पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हुई भी हैं। खेती और भोजन से जुड़ी गतिविधियां ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का एक बड़ा स्रोत हैं, लेकिन अगर हम इन्हें सही दिशा में मोड़ें तो यही प्रणाली पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान दे सकती है।
इस साल की थीम “बेहतर भोजन और बेहतर भविष्य के लिए साथ मिलकर” है। यह हमें याद दिलाती है कि भोजन की चुनौतियों को हल करने के लिए सभी देशों, संगठनों, समुदायों और पीढ़ियों को मिलकर काम करना होगा।
भारत: पोषण और खाद्य सुरक्षा की दिशा में अग्रसर
भारत, जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, ने भूख और कुपोषण को दूर करने की दिशा में कई प्रभावशाली कदम उठाए हैं। पिछले कुछ सालों में भारत ने कृषि उत्पादन, भोजन वितरण, और पोषण से संबंधित योजनाओं में उल्लेखनीय प्रगति की है।
भारत की कृषि में प्रगति
पिछले एक दशक में अनाज उत्पादन में नौ करोड़ मिलियन मीट्रिक टन की बढ़ोतरी हुई है। फल और सब्जियों का उत्पादन 6.4 करोड़ मीट्रिक टन बढ़ा है।
भारत अब दूध और मोटे अनाज (मिलेट्स) में दुनिया में पहले स्थान पर है। मछली, फल और सब्जी उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है। अंडा और शहद उत्पादन 2014 की तुलना में दोगुना हो गया है। कृषि निर्यात भी पिछले 11 सालों में लगभग दोगुना हुआ है। यह आंकड़े न केवल किसानों की मेहनत को दर्शाते हैं, बल्कि सरकार की प्रभावी नीतियों और कार्यक्रमों का परिणाम भी हैं।
भूख और कुपोषण को खत्म करने की दिशा में सरकार ने पिछले सालों में कई योजनाएं शुरू की हैं, जिनका उद्देश्य हर व्यक्ति तक पोषण युक्त और सुरक्षित भोजन पहुंचाना है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) – इस कानून के तहत देश के करोड़ों लोगों को सस्ती दर पर अनाज प्रदान किया जाता है।
मिड-डे मील योजना – स्कूलों में बच्चों को पोषक आहार देने की योजना।
एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) – गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और छोटे बच्चों को पोषण और स्वास्थ्य सेवाएं।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) – किसानों को प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) – गरीबों को खाद्यान्न की सुलभ उपलब्धता सुनिश्चित करती है।
ये योजनाएं भारत में भोजन की उपलब्धता, पहुंच और गुणवत्ता को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
भविष्य की ओर: साझेदारी और सहयोग का समय
भविष्य की खाद्य सुरक्षा केवल एक देश की जिम्मेदारी नहीं हो सकती। इसके लिए वैश्विक सहयोग, सांझी रणनीति, और स्थानीय नवाचारों की जरूरत है। इस साल की थीम हमें यही संदेश देती है – हाथ में हाथ डालकर, हम एक ऐसा भविष्य बना सकते हैं जहां कोई भूखा न सोए, कोई बच्चा कुपोषित न हो और किसान को उसकी मेहनत का पूरा मूल्य मिले।
भोजन – जीवन का आधार
भोजन केवल एक आवश्यकता नहीं, बल्कि मानव जीवन का आधार है। यह स्वास्थ्य, विकास और गरिमा से जुड़ा विषय है। विश्व खाद्य दिवस 2025 के इस अवसर पर हमें यह प्रण लेना चाहिए कि हम न केवल अपने आसपास के भूखे लोगों की मदद करेंगे, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था बनाने में सहयोग देंगे जो समान, टिकाऊ और सभी के लिए सुलभ हो। भविष्य तभी सुरक्षित होगा, जब हम सभी मिलकर बेहतर भोजन की दिशा में कार्य करें - हाथ में हाथ डालकर।