भारत, ब्राजील के मौसम ने बिगाड़ी चीनी की मिठास, जून में कीमतों में आया दो फीसदी का उछाल

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के मुताबिक जून में मौसम की मार ने चीनी की कीमतों में इजाफा किया। एक तरफ जहां ब्राजील में सूखे मौसम ने किसानों की चिंताएं बढ़ा दी वहीं भारत में भी अप्रत्याशित मानसून बढ़ती कीमतों की वजह बना।
अपनी गन्ने की फसल को बैलगाड़ी पर लादता किसान, फोटो: आईस्टॉक
अपनी गन्ने की फसल को बैलगाड़ी पर लादता किसान, फोटो: आईस्टॉक
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जून 2024 में तेल, चीनी और डेयरी की कीमतों में उछाल दर्ज किया गया, वहीं दूसरी तरफ अनाज की कीमतों में गिरावट देखी गई। इसका असर यह हुआ कि कुल मिलकर जून में खाद्य पदार्थों की कीमतों में स्थिरता बनी रही। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा जून 2024 के लिए जारी वर्ल्ड फूड प्राइस इंडेक्स (एफएफपीआई) में सामने आई है।

आंकड़ों के मुताबिक जून 2024 में फूड प्राइस इंडेक्स का औसत मूल्य 120.6 प्वाइंट रहा, जो मई के लिए जारी संशोधित आंकड़ों जितना ही है। हालांकि सूचकांक में साल भर पहले की तुलना में 2.1 फीसदी की गिरावट देखी गई। वहीं मार्च 2022 में जब यह सूचकांक अपने शिखर (160.3) पर पहुंच गया था, उसकी तुलना में जून 2024 में यह 24.8 फीसदी नीचे रहा।

इंडेक्स के मुताबिक जून के दौरान महंगाई में जो राहत देखी गई उसके पीछे की एक बड़ी वजह अनाज की कीमतों में आई कमी थी। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह वैश्विक खाद्य मूल्य इंडेक्स हर महीने अंतराष्ट्रीय स्तर पर खाद्य कीमतों में आने वाले उतार चढ़ाव को ट्रैक करता है।

खाद्य एवं कृषि संगठन  के मुताबिक जून में अनाज की कीमतों में तीन फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। आंकड़ों के मुताबिक जून 2024 में अनाज मूल्य सूचकांक 115.2 प्वॉइंट दर्ज किया गया, जो मई की तुलना में साढ़े तीन प्वॉइंट कम है। वहीं जून 2023 की तुलना में देखें तो यह इंडेक्स करीब नौ फीसदी नीचे रहा।

रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान दुनिया भर के प्रमुख अनाजों की कीमतों में गिरावट देखी गई। जहां उत्तरी गोलार्ध में फसलों की कटाई के चलते गेहूं की कीमतों में गिरावट आई। वहीं कजाकिस्तान, यूक्रेन जैसे देशों में बेहतर उत्पादन के पूर्वानुमान और तुर्की द्वारा आयात पर लगाए अस्थाई प्रतिबंध ने भी कीमतों को कम करने में योगदान दिया।

इसी तरह अर्जेंटीना और ब्राजील में फसलों की कटाई के साथ मक्का की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई, साथ ही अमेरिका में भी उम्मीद से अधिक पैदावार ने कीमतों में नरमी लाने में मदद की। इस दौरान जौ और ज्वार की कीमतों में भी गिरावट आई है।

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इंडेक्स के मुताबिक जहां जून 2024 में अंतराष्ट्रीय बाजार में वनस्पति तेल की कीमतों में तीन फीसदी से ज्यादा का उछाल आया। जो मार्च 2024 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। यह बढ़ोतरी पाम, सोया और सूरजमुखी के तेल की बढ़ती कीमतों के कारण हुई, हालांकि इस दौरान रेपसीड तेल की कीमतें करीब-करीब स्थिर बनी रही। वनस्पति तेल मूल्य सूचकांक को देखें तो यह जून में 131.8 प्वाइंट रहा, जो मई 2024 की तुलना में चार प्वाइंट अधिक है।

एफएओ ने इस बारे में जानकारी साझा करते हुए लिखा है कि दो महीनों तक गिरावट देखने के बाद, जून में पाम ऑयल की कीमतें बढ़ गई क्योंकि पहले से ज्यादा लोगों ने बेहतर कीमतों के कारण इसे खरीदना शुरू कर दिया। वहीं अमेरिका में जैव ईंधन की मजबूत मांग और काला सागर क्षेत्र से सूरजमुखी तेल की कम आपूर्ति के कारण सोया और सूरजमुखी तेल की कीमतों में भी उछाल देखा गया। रेपसीड तेल की कीमतें जून में लगभग स्थिर रही, लेकिन पिछले साल की तुलना में देखें तो यह कहीं ज्यादा हैं।

तेल, चीनी के उलट अनाज की कीमतों में आई गिरावट

वनस्पति तेल की तरह ही जून में चीनी की कीमतों में भी उछाल देखा गया। जो तीन महीनों की गिरावट के बाद मई से करीब दो फीसदी अधिक है। चीनी मूल्य सूचकांक के मुताबिक जून 2024 में यह 119.4 अंक रहा, जो मई से 2.3 प्वॉइंट अधिक है। हालांकि चीनी की कीमतों में हुई यह बढ़ोतरी अभी भी पिछले जून की तुलना में 21.6 फीसदी कम है।

एफएओ के मुताबिक जून में चीनी की कीमतों में आए उछाल के लिए कहीं हद तक ब्राजील में फसलों को हुआ नुकसान जिम्मेवार है, जिसने भविष्य में सूखे मौसम को लेकर चिंताए बढ़ा दी है। भारत में अप्रत्याशित मानसून और यूरोपियन यूनियन में फसलों के घटते पूर्वानुमानों ने भी कीमतों को बढ़ाने में मदद की। हालांकि ब्राजील डॉलर के मुकाबले ब्राजीलियाई रियल के कमजोर होने से यह कीमतें उतनी नहीं बढ़ी।

जून में डेयरी उत्पादों की कीमतों में भी अंतराष्ट्रीय बाजार में उछाल देखा गया, जिनकी कीमतों में मई की तुलना में 1.2 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। बता दें कि जून में डेयरी मूल्य सूचकांक 127.8 प्वॉइंट रहा, जो मई से 1.5 अंक अधिक है।

यह एक साल पहले की तुलना में करीब 6.6 फीसदी अधिक है। गौरतलब है कि वैश्विक मांग में हुई बढ़ोतरी और पश्चिमी यूरोप में दूध की आपूर्ति में आई कमी के कारण मक्खन की कीमतें 24 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। ओशिनिया में मक्खन के कम स्टॉक ने भी कीमतों को बढ़ाने में योगदान दिया।

इसी तरह पूर्वी एशिया से लगातार आयात और पश्चिमी यूरोप में मजबूत बिक्री के कारण मिल्क पाउडर की कीमतों में इजाफा देखा गया। हालांकि, वैश्विक मांग में मंदी के चलते पनीर की कीमतों में थोड़ी कमी जरूर आई। वहीं मांस की कीमतों को देखें तो वो करीब-करीब पहले जितनी ही हैं।

खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने यह भी अनुमान जताया है कि 2024 में वैश्विक अनाज उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकता है।

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