‘यूपी प्रदूषण बोर्ड को सीधे मुआवजा लगाने का अधिकार नहीं’, जुर्माने पर अटका कानूनी पेंच

इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देकर यूपीपीसीबी ने पर्यावरण क्षतिपूर्ति के लिए मुआवजा लगाने से किया इनकार; जांच रिपोर्ट में मानकों से अधिक पाया गया फीकल कोलीफॉर्म
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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  • उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्पष्ट किया है कि वह सीधे पर्यावरणीय मुआवजा नहीं लगा सकता।

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार, बोर्ड केवल एनजीटी के माध्यम से मुआवजा दिला सकता है।

  • देवरिया की लार नगर पंचायत पर सीवेज प्रबंधन में सुधार के लिए कदम उठाए गए हैं, लेकिन कुछ मानकों का उल्लंघन अब भी जारी है।

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने असमर्थता जताते हुए कहा है कि वह देवरिया की लार नगर पंचायत पर दूषित सीवेज छोड़ने के मामले में पर्यावरणीय मुआवजा नहीं लगा सकता। यह मामला पंचायत द्वारा खुले मैदाने में सीवेज को छोड़े जाने से जुड़ा है।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के एक आदेश (रिट पिटीशन संख्या 4816/2024) का हवाला दिया है। इस आदेश में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को किसी व्यक्ति या उद्योग पर सीधे पर्यावरणीय मुआवजा लगाने का अधिकार नहीं है।

वह केवल एनजीटी अधिनियम की धारा 15 और 18 के तहत आवेदन दायर कर सकता है, ताकि एनजीटी संबंधित पक्ष को नुकसान के लिए मुआवजा भरने का निर्देश दे। इसी कारण यूपीपीसीबी ने कहा है इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार उसे सीधे पर्यावरणीय मुआवजा लगाने का अधिकार नहीं है। इसलिए नगर पंचायत लार पर कोई मुआवजा नहीं लगाया गया।

5 सितंबर 2025 को एनजीटी में सबमिट रिपोर्ट में यूपीपीसीबी ने बताया कि लार नगर पंचायत ने समस्या के समाधान के लिए कुछ कदम उठाए हैं। शंभू सिंह के खेत से वेस्ट स्टेबिलाइजेशन तालाब तक ह्यूम पाइप बिछाई गई है। तालाब में उपचारित पानी के भूजल में रिसाव को रोकने के लिए एचडीपीई लाइनर लगाया गया है और सुरक्षा के लिए तालाब के चारों ओर तार की बाड़ लगाई गई है।

प्रारंभिक उपचार के लिए पंचायत ने बायो-रिमेडिएशन और फाइटो-रिमेडिएशन पद्धति अपनाते हुए दो ऑक्सीडेशन तालाब/सेटलिंग चेंबर बनाए हैं। निरीक्षण के समय उपचार की प्रक्रिया चल रही थी। लैब जांच के लिए गए नमूने मानकों के अनुरूप पाए गए, सिवाय कुल कोलीफॉर्म और फीकल कोलीफॉर्म के, जिनकी मात्रा तय सीमा से अधिक थी।

नगर पंचायत के कार्यकारी अधिकारी ने बताया कि स्टेबिलाइजेशन तालाब के पास क्लोरीनेशन किया जाएगा और यह पानी सिंचाई में इस्तेमाल होगा।

इसके साथ ही फीकल स्लज के निपटान के लिए नगर पंचायत ने देवरिया नगर पालिका परिषद से समझौता किया है। शहर के सेप्टिक टैंकों से निकलने वाला मल-कीचड़ जटमलपुर, देवरिया स्थित एफएसटीपी प्लांट में निपटाया जाएगा। हालांकि, 30 जून 2025 को लिए गए नमूनों में कुल कोलीफॉर्म और फीकल कोलीफॉर्म मानकों से अधिक पाए गए।

इसके बाद 23 अगस्त 2025 को फिर से जांच की गई, जिसमें फीकल कोलीफॉर्म अब भी तय मानकों से अधिक मिला है।

क्यों एनजीटी ने फैयजपुर नगर परिषद पर लगाया 15.87 करोड़ का जुर्माना?

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पश्चिमी बेंच ने जलगांव की फैयजपुर नगर परिषद को पर्यावरण क्षतिपूर्ति के रूप में मुआवजा भरने का आदेश दिया है। परिषद को सीवेज प्रबंधन में लापरवाही पर 14.65 करोड़ रुपए, जबकि ठोस व पुराने कचरे (लीगेसी वेस्ट) के प्रबंधन में हुई चूक के लिए 1.22 करोड़ रुपए का भुगतान करना होगा। यह राशि मई 2025 तक की गड़बड़ियों के लिए तय की गई है।

अदालत ने इस मुआवजे को एक महीने के भीतर महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) के पास जमा कराने का आदेश दिया है। यह राशि महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने आकलन कर तय की है।

गौरतलब है कि एनजीटी ने 17 जुलाई 2023 को फैजपुर नगरपालिका को निर्देश दिए थे कि वह सीवेज और सालों से जमा पुराने कचरे के प्रबंधन के लिए युद्धस्तर पर कदम उठाए। साथ ही महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को परिषद से वसूले जाने वाले पर्यावरणीय मुआवजे का आकलन करने के निर्देश दिए थे।

हालांकि, 28 मार्च 2025 को दायर एक याचिका में आरोप लगाया गया है कि न तो नगरपालिका ने इस दिशा में कोई गंभीर प्रयास किए और न ही महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने समय पर क्षतिपूर्ति राशि का आकलन प्रस्तुत किया है।

महाानंद डेयरी पर प्रदूषण का आरोप, एनजीटी ने मांगी रिपोर्ट

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पश्चिमी बेंच ने महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) को निर्देश दिया है कि वो पर्यावरण मानकों के उल्लंघन पर अपना जवाब पेश करे। यह मामला पुणे की दौंड तालुका के वरवंद गांव स्थित महानंद राज्य सहकारी दूध महासंघ मर्यादित (डेयरी इकाई) द्वारा पर्यावरण नियमों के उल्लंघन से जुड़ा है।

आवेदकों का कहना है कि डेयरी इकाई कोयले का ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर रही है और संचालन की अनुमति के नियमों का उल्लंघन करते हुए अवैध रूप से भूजल का दोहन भी कर रही है। इतना ही नहीं डेयरी ने न तो पर्याप्त वायु प्रदूषण नियंत्रण प्रणाली लगाई है और न ही कोयले का सुरक्षित भंडारण किया है।

इसके कारण डेयरी के 10 टन प्रति घंटा क्षमता वाले कोयला बॉयलर और कोयला भंडारण क्षेत्र से जहरीली गैसें, कोयले की धूल और काला धुआं लगातार फैल रहा है। यह प्रदूषण स्कूल और घरों तक पहुंच रहा है, जो डेयरी से महज 100 मीटर दूरी पर हैं। दावा है कि इससे आसपास रहने वाले लोगों और स्कूली बच्चों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।

इसके अलावा, डेयरी अपना एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) भी ठीक से चलाने में असफल रही है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा तय मानकों को भी हासिल नहीं किया गया। गंदा पानी कुओं और खुले मैदानों में छोड़ा जा रहा है, जिससे जल प्रदूषण हो रहा है। साथ ही खेती प्रभावित हो रही है और लगातार बदबू फैल रही है।

7 मई 2025 को मेडिकल अधिकारी ने मौके का निरीक्षण किया और पाया कि महाानंद डेयरी के पीछे की चिमनी से धुआं निकल रहा है और कालिख हर तरफ फैल रही है, जिससे सांस लेने में कठिनाई हो रही है। आसपास रहने वाले लोग त्वचा में खुजली, आंखों में जलन और बॉयलर की तेज आवाज के कारण कान में परेशानी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं।

आवेदन में कहा गया है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी 23 दिसम्बर 2024 को किए निरीक्षण में भूरे रंग का धुआं और प्रदूषण देखा था। निरीक्षण में पाया गया कि चिमनी से भूरा धुआं निकल रहा था और अनियंत्रित उत्सर्जन भी हो रहे थे। इसके बाद 17 फरवरी 2025 को डेयरी को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था।

लेकिन नोटिस के बावजूद डेयरी ने प्रदूषण नियंत्रण उपाय नहीं किए और न ही कोयले के स्थान पर बायोमास ब्रिकेट्स का इस्तेमाल शुरू किया।

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