पर्यावरण पर भारी पड़ता पर्यटन, दुनिया के नौ फीसदी उत्सर्जन के लिए है जिम्मेवार

यदि जल्द से जल्द कार्रवाई न की गई तो पर्यटन से होने वाला यह उत्सर्जन अगले दो दशकों में दोगुना हो सकता है
पर्यटन की वजह से बढ़ते उत्सर्जन को कम करने के लिए लंबी दूरी की उड़ानों में कटौती करना अहम है; फोटो: आईस्टॉक
पर्यटन की वजह से बढ़ते उत्सर्जन को कम करने के लिए लंबी दूरी की उड़ानों में कटौती करना अहम है; फोटो: आईस्टॉक
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इंसान सदैव से घुमक्कड़ रहा है। नए स्थानों पर जाना समय व्यतीत करना उसे हमेशा से अच्छा लगा है। यह जरूरी भी लेकिन इसके साथ ही पर्यावरण को ध्यान में रखना भी जरूरी है।

पर्यटन के पर्यावरण पर बढ़ते प्रभावों को समझने के लिए किए एक नए वैश्विक अध्ययन से पता चला है कि पर्यटन से जुड़ी गतिविधियां दुनिया के नौ फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है। इतना ही नहीं जिस रफ्तार से इस उत्सर्जन में इजाफा हो रहा है उसके चलते यह अगले दो दशकों में बढ़कर दोगुना हो सकता है।

यह अध्ययन क्वींसलैंड विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर या-येन सुन के नेतृत्व में किया गया है। इस अध्ययन में सामने आया है कि पर्यटन से होने वाला ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन शेष वैश्विक अर्थव्यवस्था की तुलना में दोगुनी रफ्तार से बढ़ रहा है।

इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुए हैं।

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इस अध्ययन में यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड के साथ-साथ ग्रिफिथ, सिडनी और स्वीडन के लिनियस विश्वविद्यालय के शोधकर्ता शामिल थे। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने 175 देशों के बीच और उनके भीतर की गई यात्राओं का विश्लेषण किया है। इसके साथ ही इन देशों के कार्बन फुटप्रिंट का भी अध्ययन किया गया है।

इसमें व्यवसायों, उड़ानों और गाड़ियों के उपयोग से होने वाले उत्सर्जन को भी शामिल किया गया है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने सरकारी रिपोर्टों जैसे स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग किया है।

इस बारे में प्रेस में जारी बयान में शोधकर्ता या-येन सुन ने कहा, "पर्यटन के लिए यात्रा की बढ़ती मांग ने इसे दुनिया के नौ फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार बना दिया है।"

उनके मुताबिक यदि हम इस पर जल्द से जल्द कार्रवाई नहीं करते तो पर्यटन से होने वाला यह उत्सर्जन सालाना तीन से चार फीसदी तक बढ़ सकता है। इस रफ्तार से यह अगले 20 वर्षों में दोगुना हो सकता है।

यह पेरिस समझौते के भी अनुरूप नहीं है, जिसके अनुसार पर्यटन उद्योग को सालाना अपने उत्सर्जन में 10 फीसदी से अधिक की कटौती करने की आवश्यकता है।

गौरतलब है कि यात्राएं आधुनिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कोरोना महामारी से पहले पर्यटन ने हर साल वैश्विक अर्थव्यवस्था में 600,000 करोड़ डॉलर का सहयोग दिया था।

यह लगातार दस वर्षों तक सबसे तेजी से बढ़ने वाले उद्योगों में से एक था। महामारी के दौरान इसमें ठहराव जरूर आया लेकिन महामारी से उबरने के बाद पर्यटन ने फिर तेजी से वापसी की है। अनुमान है कि 2024 में 2,000 करोड़ से अधिक यात्राएं कर सकते हैं। पर्यटन में इस उछाल के साथ प्रदूषण में भी वृद्धि हो रही है।

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रिसर्च में यह भी सामने आया है कि पर्यटन का वैश्विक कार्बन पदचिह्न जो 2009 में  3.7 गीगाटन था, वो 2019 में करीब 41 फीसदी बढ़कर 5.2 गीगाटन पर पहुंच गया। इनमें से अधिकांश उत्सर्जन हवाई यात्राओं, उपयोगिताओं और यात्राओं के लिए उपयोग होने वाली निजी कारों से हुआ।

शोधकर्ताओं के मुताबिक पर्यटन में बढ़ते उत्सर्जन से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौती हवाई यात्राएं हैं।  इसी तरह अध्ययन के मुताबिक उत्सर्जन में वृद्धि का प्रमुख कारण प्रौद्योगिकी में हो रही धीमी प्रगति और मांग में तेजी से होती वृद्धि है।

आंकड़ों के मुताबिक जहां वैश्विक उत्सर्जन में सालाना 1.5 फीसदी की दर से वृद्धि हुई है, वहीं दूसरी और अध्ययन के दौरान पर्यटन की वजह से होने वाले उत्सर्जन में हर साल साढ़े तीन फीसदी की दर से वृद्धि हो रही है।

देखा जाए तो 2009 से 2019 के बीच किए इस अध्ययन के दौरान पर्यटन से होते उत्सर्जन में जो वृद्धि हुई है उसके 60 फीसदी के लिए भारत, अमेरिका और चीन जिम्मेवार थे।

पर्यटन से होते छह फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है भारत

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि पर्यटन से होने वाला उत्सर्जन हर जगह एक समान नहीं है, यह कहीं ज्यादा तो कहीं कम है। उदाहरण के लिए 2019 में पर्यटन की वजह से जो उत्सर्जन हुआ था, उसके 19 फीसदी के लिए अमेरिका जिम्मेवार था।

वहीं चीन ने इसमें 15 फीसदी और भारत ने छह फीसदी का योगदान दिया था। यह तीनों देश 2019 में वैश्विक पर्यटन से हुए करीब 40 फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार थे।

ऐसे में इस क्षेत्र की वजह से बढ़ते उत्सर्जन पर भी ध्यान देने के साथ पेरिस समझौते का पालन करने की जरूरत है।

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शोधकर्ताओं के मुताबिक पर्यटन की वजह से बढ़ते उत्सर्जन को कम करने के लिए लंबी दूरी की उड़ानों में कटौती करना अहम है। इसके साथ ही कार्बन टैक्स, कार्बन बजट और वैकल्पिक ईंधन का उपयोग जैसे उपायों पर ध्यान दिया जा सकता है।

इसके लिए लम्बी दूरी की यात्राओं के लिए मार्केटिंग में कमी करने के साथ, इनके विकास की सीमाएं निर्धारित करके उत्सर्जन में होती वृद्धि को धीमा किया जा सकता है।

इसी तरह पर्यटन व्यवसाय भी अपनी विविध गतिविधियों के लिए अक्षय ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं। साथ ही परिवहन के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर रुख किया जा सकता है।

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