पहाड़ों पर सतत पर्यटन की दरकार, वहनीय क्षमता का आकलन जरूरी

पारिस्थितिकीय संतुलन और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अनियोजित पर्यटन गतिविधियों को विनियमित करना समय की मांग है
Photo: Samrat Mukharjee
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प्राकृतिक पर्यावरण, स्थानीय संस्कृति और भौगोलिक रूप से विविधता भरे आवास पहाड़ी क्षेत्रों के मुख्य आकर्षण हैं। वैश्वीकरण, परिवहन और संचार प्रौद्योगिकियों में प्रगति ने पर्यटन उद्योग को फलने-फूलने में मदद की है। संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन ( यूएनडब्ल्यूटीओ) के 2020 के आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों की संख्या 1.46 अरब थी और 2030 में यह 1.8 अरब से भी ज्यादा हो जाएगी।

लेकिन पर्यटन विकास एक दोधारी तलवार है। इसके सकारात्मक असर में रोजगार, बुनियादी ढांचे का विकास, राजस्व सृजन को गिना जा सकता है। लेकिन अगर इसे अच्छी तरह से नियोजित या मैनेज नहीं किया जाता तो इसके स्थानीय समुदाय के साथ-साथ जैविक और अजैविक पर्यावरण पर नकारात्मक असर भी दिखते हैं। इनमें जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, पारिस्थितिकी तंत्र के क्षरण, पारंपरिक संस्कृति को नुकसान जैसे दुष्प्रभाव शामिल हैं।

1970 के दशक की शुरुआत में टूरिज्म को एक 'स्मोक-लेस इंडस्ट्री' माना जाता था, जो सिर्फ प्राकृतिक और सांस्कृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करती है, वह भी इन पर बिना कोई प्रतिकूल असर डाले। 'स्मोक-लेस इंडस्ट्री' से मतलब उन उद्योगों से है, जिनसे प्रदूषण नहीं होता। हालांकि, बाद में बढ़ती आबादी, लगातार अनियंत्रित पर्यटन और बुनियादी ढांचे के विकास ने पर्यटन स्थलों पर काफी दबाव डाला है। हर पर्यटन स्थल में तमाम तरह की पर्यटक गतिविधियों के साथ-साथ जनसंख्या को सहने की अपनी कैरिंग कपैसिटी यानी वहनीय क्षमता होती है।

यूएनडब्ल्यूटीओ (1999) के मुताबिक, पर्यटन वहनीय क्षमता 'लोगों की वह अधिकतम संख्या है जो किसी पर्यटन स्थल के भौतिक, आर्थिक, सामाजिक सांस्कृतिक पर्यावरण को बिना नष्ट किए वहां एक ही समय में जा सकते हैं। साथ ही साथ, इस दौरान पर्यटकों की संतुष्टि में भी कोई कमी न आए। ये तो हुई पर्यटन वहनीय क्षमता की परिभाषा। अब देखते हैं कि इसमें क्या-क्या शामिल हैं।

तमाम अध्ययन से पता चला है कि वहनीय क्षमता के 5 मुख्य घटक हैं। इसके तहत ये 5 मुख्य क्षमताएं आती हैं: पहली, शारीरिक वहनीय क्षमता (फीजिकल कैरिंग कपैसिटी यानी पीसीसी)। पीसीसी किसी भी गंतव्य पर अधिकतम लोगों की संख्या से जुड़ी है। दूसरी, सामाजिक वहनीय क्षमता (सोशल कैरिंग कपैसिटी यानी एससीसी)। एससीसी किसी स्थान की अवधारणात्मक; मनोवैज्ञानिक या व्यवहारिक क्षमता है। तीसरी, बुनियादी ढांचा वहनीय क्षमता (इन्फ्रास्ट्रक्चर कैरिंग कपैसिटी यानी आईसीसी)। आईसीसी सुविधा क्षमता को बताती है जैसे कि मानव निर्मित सुधार जो पर्यटकों या लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए होते हैं, जिसमें पार्किंग स्थल, बोट रैंप, विकसित कैंपग्राउंड, रेस्ट रूम और प्रशासनिक कर्मचारी शामिल हैं। चौथी, पर्यावरणीय वहनीय क्षमता (एनवायरनमेंटल कैरिंग कपैसिटी यानी ईसीसी)। ईसीसी पर्यटकों या लोगों की वह संख्या है जो प्राकृतिक पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना पर्यटन स्थल पर अपनी गतिविधियां कर सकते हैं। पांचवीं और आखिरी, आर्थिक वहनीय क्षमता (इकनॉमिक कैरिंग कपैसिटी यानी ईसीसी)। यह किसी पर्यटन स्थल की स्थानीय अर्थव्यवस्था के भीतर स्वीकार्य परिवर्तनों के स्तर से जुड़ी है। यह उन स्थितियों से भी जुड़ी है जहां किसी संसाधन का इस्तेमाल एक साथ आउटडोर मनोरंजन और आर्थिक गतिविधि के लिए किया जाता है।

भारत की बात करें तो धार्मिक और आध्यात्मिक मूल्यों की वजह से यहां पर्यटन एक बड़ा उद्योग है। 2021 में एशिया और प्रशांत क्षेत्र में जितने कुल पर्यटकों का आगमन हुआ, उनमें 28.3 प्रतिशत सिर्फ भारत में आए यानी एक चौथाई से ज्यादा लोग आए। पहाड़ी क्षेत्रों में पर्यटन विकास की सबसे ज्यादा संभावना है। तीनों प्रमुख हिमालयी राज्य जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड पर्यटन के विकास में बहुत अहम भूमिका निभाते हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि पर्यटन हिमालय के ऊंचाई वाले इलाकों में सतत गरीबी उन्मूलन का एक साधन है। हालांकि, संसाधनों के अनियोजित दोहन से पारिस्थितिकी तंत्र की बुनियादी कार्यक्षमता नष्ट हो रही है। इससे पर्यटनस्थलों की इन नुकसान से उबरने की क्षमताओं के खत्म होने का भी जोखिम पैदा हो रहा है।

ये सभी मुद्दे किसी पर्यटन स्थल पर जाने वाले पर्यटकों की 'जादुई संख्या' से जुड़े हैं। इसी बिंदु पर वहनीय क्षमता की अवधारणा सामने आई और यह उस पर्यटकों की सीमा का अंदाजा देती है जिसे किसी डेस्टिनेशन पर स्वीकार किया जा सकता है। पर्यटन गतिविधियों को विनियमित और मैनेज करने के लिए यह दृष्टिकोण अनिवार्य है।

हाल के वर्षों में दुनियाभर में कई मशहूर धार्मिक स्थलों पर त्रासदियां हुईं हैं जैसे भारत में नैना देवी मंदिर (2008) और केदारनाथ मंदिर (2013) और सऊदी अरब में मक्का (2015)। इस वजह से वहनीय क्षमता की अवधारणा ने दुनियाभर में लोगों का काफी ध्यान खींचा है।

जून 2018 में हिमालय के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों शिमला और मनाली में पानी का संकट पैदा हुआ था। कुछ वर्ष पहले, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने ताजमहल देखने जाने वाले पर्यटकों की संख्या प्रतिदिन 40,000 तक सीमित करना शुरू किया।

बुनियादी ढांचे का अनियोजित विकास पर्यटन स्थल के प्राकृतिक सौंदर्य और आकर्षण को प्रभावित करता है। ये ऐसी स्थिति पैदा करता है कि पारिस्थितिकी तंत्र की रिकवरी कपैसिटी यानी उबरने की क्षमता खत्म हो जाती है।

बड़े पैमाने पर पर्यटन से गंतव्यों के प्राकृतिक चक्र भी प्रभावित होते हैं और समय के साथ, यह जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को और खराब कर सकता है जैसे कि ग्लेशियरों का पिघलना। आज, सभी पहाड़ी क्षेत्र एक नाजुक दौर का सामना कर रहे हैं; मिसाल के तौर पर, बरसात के मौसम में भूस्खलन की कई घटनाएं हुई हैं।

इस संदर्भ में, वहनीय क्षमता किसी भी पर्यटन स्थल के लिए प्लानिंग का एक मूल घटक होना चाहिए और इसे टूरिज्म रेगुलेशन के साथ-साथ मैनेजमेंट के लिए एक बेंचमार्क माना गया है। हालांकि, पर्यटन स्थलों में सुधार के साथ-साथ पर्यटन के प्रभावों को मैनेज करने के लिए सरकार और निजी संगठनों की तरह से काफी प्रयास हो रहे हैं लेकिन ये नाकाफी हैं।

अवांछित गतिविधियों पर रोकथाम के लिए, वहनीय क्षमता के आकलन का इस्तेमाल अंतरिक्ष और पर्यावरण पर पर्यटन के प्रभाव का सही अंदाजा लगाने के लिए किया जाता है। यह पर्यटन में स्थानिक विकास की योजना का एक महत्वपूर्ण अवयव है और सतत पर्यटन के लिए मानक स्थापित करने के तंत्र में से एक है। पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने और पर्यटन को सुविधाजनक बनाने के लिए अनियोजित पर्यटन गतिविधियों को विनियमित करना वक्त की मांग है। यह पहाड़ों के पारिस्थितिकीय रूप से नाजुक क्षेत्रों के लिए खास तौर पर जरूरी है।

इसके अतिरिक्त, दीर्घकालिक लाभ प्राप्त करने के लिए, पर्यटन प्रभावों का आकलन पर्यटन लाभों के साथ-साथ उसके लिए चुकाई जा रही कीमत के समुचित प्रबंधन के उद्देश्य से एक बेहतर समझ पैदा करता है। इस मुद्दे के समाधान के लिए, समूचे पहाड़ी क्षेत्रों के उन सभी पर्यटन स्थलों की पर्यटन वहनीय क्षमता का आकलन जरूरी है, जो जल्द ही पर्यटन गतिविधियों के केंद्र के रूप में उभरने की क्षमता रखते हैं। इससे इकोफ्रेंडली पर्यटन से जुड़ी योजना के प्रस्ताव के तैयार करने में मदद मिलेगी जो पहाड़ी इलाकों के कल्याण के लिए अहम होगा।

(लेखक कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)

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