
सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त 2025 को दिए अपने एक अहम फैसले में संभावित पर्यावरणीय नुकसान को रोकने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के मुआवजा और क्षतिपूर्ति वसूलने के अधिकार को बरकरार रखा है।
इसका मतलब है कि अगर किसी गतिविधि से भविष्य में पर्यावरण को नुकसान होने की आशंका हो, तो बोर्ड बिना उस नुकसान के घटित होने का इंतजार किए, पहले ही जुर्माना लगा सकता है या आर्थिक गारंटी की मांग कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति पमिदिघंतम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने फैसला सुनाया कि जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 की धारा 33ए और वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 की धारा 31ए के तहत प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को यह संवैधानिक और कानूनी अधिकार है कि वे पर्यावरण को होने वाले वास्तविक या संभावित नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति वसूल सकें।
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा है कि जल अधिनियम और वायु अधिनियम के तहत प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड संभावित पर्यावरणीय नुकसान को रोकने के लिए पहले से कदम उठाते हुए तय राशि के रूप में जुर्माना वसूल सकते हैं या फिर बैंक गारंटी की मांग कर सकते हैं।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के 23 जनवरी 2012 को दिए उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति को जल और वायु अधिनियमों के तहत मुआवजा वसूलने का अधिकार नहीं है।
गौरतलब है कि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने हाईकोर्ट के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि उसे जल अधिनियम, 1974 की धारा 33 ए और वायु अधिनियम, 1981 की धारा 31 ए के तहत मुआवजा वसूलने का अधिकार नहीं है।
बिल्वेश्वर नाथ मंदिर: एनजीटी ने प्राचीन कुएं के संरक्षण का दिया निर्देश
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि बिल्वेश्वर नाथ महादेव मंदिर परिसर में स्थित प्राचीन कुएं से अतिक्रमण हटाया जाए और उसकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। यह मामला उत्तर प्रदेश के मेरठ का है। इस पर एनजीटी में 1 अगस्त 2025 को सुनवाई हुई थी।
यह कुआं वर्षों पुराना है जिसे मिट्टी से भरकर समतल कर दिया गया है। इसके साथ ही इस पर अवैध रूप से कब्जा भी किया गया है। शिकायत में यह भी कहा गया कि वहां कचरा जलाया जा रहा है जिससे प्रदूषण फैल रहा है।
इस मामले में मेरठ के जिलाधिकारी द्वारा एक संयुक्त समिति बनाई गई, जिसने 25 जुलाई 2025 को इस जगह का निरीक्षण किया था। समिति का कहना है कुएं को पूरी तरह भरकर समतल कर दिया गया है। समिति ने सिफारिश की है कि चूंकि मंदिर परिसर प्राचीन और पुरातात्विक महत्व का है, इसलिए इसकी देखभाल, प्रबंधन और साफ-सफाई के लिए राज्य पुरातत्व विभाग, लखनऊ को जरूरी कदम उठाने चाहिए।
इस मामले में अब अगली सुनवाई 4 नवंबर 2025 को होगी।