भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर पहली बार मिली प्लास्टिक की चट्टानें, समुद्री जीवन के लिए हो सकती हैं हानिकारक

यह पहला मौका है जब भारत में पायरोप्लास्टिक्स और प्लास्टिकरस्ट की मौजूदगी के सबूत मिले हैं, जबकि देश में दूसरी बार प्लास्टिग्लोमेरेट्स के पाए जाने की पुष्टि हुई है
समुद्र तट के आसपास जमा होता प्लास्टिक कचरा; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
समुद्र तट के आसपास जमा होता प्लास्टिक कचरा; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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दुनिया में बढ़ता प्लास्टिक कचरा अनगिनत समस्याओं की वजह बन रहा है। भारत में भी यह समस्या मौजूदा समय में विकराल रूप ले चुकी है। आज न केवल जमीन बल्कि समुद्र और उसमें रहने वाले जीव भी बढ़ते प्लास्टिक कचरे से सुरक्षित नहीं हैं। हैरानी की बात है कि वैज्ञानिकों को इस बढ़ते प्लास्टिक कचरे के सबूत चट्टानों के रूप में तमिलनाडु के समुद्र तटों के आसपास मिले हैं।

अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं को तमिलनाडु के आसपास प्लास्टिक से बनी 16 प्रकार की हाइब्रिड चट्टानें मिली हैं। इनमें प्लास्टिग्लोमेरेट्स, पायरोप्लास्टिक्स और प्लास्टिकरस्ट शामिल हैं। यह चट्टानें मृत समुद्री प्रजातियों से ढंकी हुई थी।

गौरतलब है कि प्लास्टिग्लोमेरेट्स तलछट, प्राकृतिक सामग्री और अन्य मलबे से बनी चट्टानें होती हैं, जिन्हें प्लास्टिक एक साथ जोड़े रखता है। यह उन जगहों पर पाई जाती हैं जहां लोगों ने प्लास्टिक कचरा जलाया हो। प्लास्टिक की बनी यह हाइब्रिड चट्टानें समुद्र तटों या अन्य प्राकृतिक वातावरणों में पाई जा सकती हैं।

वहीं पायरोप्लास्टिक्स, प्लास्टिक के वे टुकड़े होते हैं जो गर्मी के कारण पिघल जाते हैं या अपना रूप बदल लेते हैं, अक्सर यह जलने के कारण इस तरह का रूप ले लेते हैं। प्लास्टिक्रस्ट एक नया शब्द है, जिसका उपयोग प्लास्टिक के बने मलबे के लिए किया जाता है। यह मलबा शैवाल और अन्य समुद्री जीवों से ढक जाता है, और समुद्री वातावरण में चट्टानों या अन्य सतहों पर एक परत के रूप में दिखता है।

समुद्री जीवन के लिए आफत बनता प्लास्टिक

वैज्ञानिकों के मुताबिक यह पहला मौका है, जब भारत में पायरोप्लास्टिक्स और प्लास्टिकरस्ट की मौजूदगी के सबूत मिले हैं, जबकि देश में दूसरी बार प्लास्टिग्लोमेरेट्स के पाए जाने की पुष्टि हुई हैं। देखा जाए तो इन प्लास्टिक युक्त चट्टानों का पाया जाना इस बात का सबूत है कि इंसानों द्वारा फैलाया यह प्लास्टिक कचरा भूवैज्ञानिक चक्र को भी प्रभवित कर रहा है। चुलालोंगकोर्न विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ता कन्नन गुनासेकरन के नेतृत्व में किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल मरीन पॉल्यूशन बुलेटिन में प्रकाशित हुए हैं।

शोधकर्ता कन्नन गुनासेकरन ने इस बारे में जर्नल नेचर में जानकारी साझा करते हुए कहा है कि यह दूसरी बार है जब भारत में प्लास्टिग्लोमेरेट्स मिले हैं। वहीं पहला मौका है जब प्लास्टिकरस्ट और पायरोप्लास्टिक्स की मौजूदगी के होने की पुष्टि हुई है।

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अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अप्रैल से जुलाई 2022 के बीच चार समुद्र तटों का सर्वेक्षण किया था। इस दौरान उन्होंने आठ से 10 मीटर की दूरी पर खंडों में इन समुद्र तटों की जांच की थी और वहां से प्लास्टिक युक्त हाइब्रिड चट्टानों के नमूने एकत्र किए थे।

इस अध्ययन में छह प्लास्टिग्लोमेरेट्स, नौ पायरोप्लास्टिक्स और एक प्लास्टिकरस्ट मिली है। स्पेक्ट्रोस्कोपी ने पुष्टि की है कि यह चट्टानें पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी), पॉलीप्रोपाइलीन, पॉलीविनाइल क्लोराइड, पॉलीएमाइड और विभिन्न घनत्व वाले पॉलीइथिलीन जैसी प्लास्टिक सामग्री से बनी थी।

शोध में प्लास्टिग्लोमेरेट्स चट्टानों पर रेत या प्लास्टिक से भरे बुलबुले और पॉकेट देखे गए, ये विशेषताएं प्लास्टिक को अवैध रूप से जलाने या समुद्र तट पर कैम्प फायर के कारण हो सकती हैं।

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रिसर्च के मुताबिक समुद्र तट पर छोड़े गए प्लेट, कटलरी, पानी की बोतलें, बैग और मछली पकड़ने के जाल जैसे डिस्पोजेबल प्लास्टिक पर्यावरण संबंधी समस्याओं को और बढ़ा रही हैं। वहीं सीपों के लार्वा, बार्नाकल, ब्रायोजोअन्स और पॉलीचेट जैसे समुद्री जीव इस प्लास्टिक को ढंकते जाते हैं। इस बारे में शोधकर्ता कन्नन गुनासेकरन ने जर्नल नेचर के हवाले से कहा है कि, "प्लास्टिक के यह नए रूप समुद्री जीवों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऐसे में यह पता लगाना महत्वपूर्ण है कि वो कहां मौजूद हैं।

कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गनाईजेशन (सीएसआईआरओ) और टोरंटो विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए एक अन्य अध्ययन में खुलासा किया है कि अब तक 110,00,000 टन प्लास्टिक महासागरों की अथाह गहराइयों में जमा हो चुका है। रिसर्च के मुताबिक हर मिनट कचरे से भरे एक ट्रक के बराबर प्लास्टिक समुद्र में समा रहा है। जो पर्यावरण और जैवविविधता के लिए बेहद गंभीर संकट बन चुका है।

वहीं एक अनुमान के मुताबिक 192 देशों से निकला करीब 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा हर साल समुद्रों में समा रहा है। अंतराष्ट्रीय शोधों ने भी पुष्टि की है कि समुद्रों में पहुंचने वाला करीब 80 फीसदी कचरा जमीन पर ठोस कचरे के कुप्रबंधन से जुड़ा है, जो भूमि से जुड़े समुद्री मार्गों के जरिए समुद्र तल तक पहुंच रहा है। वहीं बाकी 20 फीसदी कचरा तटीय बस्तियों से समुद्रों में जा रहा है।

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट “ग्लोबल प्लास्टिक आउटलुक: पालिसी सिनेरियोज टू 2060” से पता चला है कि 2060 तक हर साल पैदा होने वाला यह प्लास्टिक कचरा अब से करीब तीन गुना बढ़ जाएगा, जो अगले 36 वर्षों में बढ़कर 101.4 करोड़ टन से ज्यादा होगा।

रिसर्च में इस बात की भी पुष्टि हुई है कि प्लास्टिक में 16,000 से अधिक केमिकल्स मौजूद होते हैं। इनमें से 26 फीसदी केमिकल इंसानी स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। ऐसे में न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में तेजी से बढ़ते इस प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए गंभीरता से प्रयास करने की जरूरत है।

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