प्लास्टिक में पहचाने गए 16,000 से अधिक केमिकल्स, संयुक्त राष्ट्र के अनुमान से 3,000 हैं अधिक

वैज्ञानिको ने प्लास्टिक में 16,325 केमिकल्स के होने की पुष्टि की है। इनमें से 26 फीसदी केमिकल इंसानी स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए चिंता का विषय हैं
कभी वरदान समझा जाने वाला प्लास्टिक आज पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए अभिशाप बन गया है, जो पर्यावरण के साथ-साथ हमारे शरीर में भी पैठ बना चुका है; फोटो: आईस्टॉक
कभी वरदान समझा जाने वाला प्लास्टिक आज पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए अभिशाप बन गया है, जो पर्यावरण के साथ-साथ हमारे शरीर में भी पैठ बना चुका है; फोटो: आईस्टॉक
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गुरुवार को प्रकाशित एक नई रिपोर्ट में सामने आया है कि प्लास्टिक में 16,000 से अधिक केमिकल मौजूद होते हैं। जो पिछले अनुमान से 3,000 से भी अधिक हैं। मौजूदा समय में प्लास्टिक का बड़े पैमाने पर उपयोग खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग से लेकर खिलौनों तक में किया जाता है, यहां तक की चिकित्सा उपकरणों में भी प्लास्टिक का उपयोग होता है। कुल मिलकर कहें तो आज हम इस प्लास्टिक से पूरी तरह घिरे हैं।

गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और अन्य अंतराष्ट्रीय संस्थानों ने इससे पहले प्लास्टिक में करीब 13,000 केमिकल्स की पहचान की थी। वहीं अब यूरोपियन वैज्ञानिकों की टीम ने अपनी नई रिपोर्ट में प्लास्टिक में 16,325 केमिकल्स के होने की पुष्टि की है। यह वो केमिकल्स है जो जानबूझकर या अनजाने में प्लास्टिक्स में मौजूद होते हैं।

हालांकि इनमें से केवल छह फीसदी केमिकल्स है ऐसे हैं, जिन्हें वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विनियमित किया जाता है, इसके बावजूद कई रसायनों का उत्पादन बड़ी मात्रा में किया जाता है और उनसे बेहद ज्यादा खतरे की आशंका होती है।

इस नई रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि इनमें से करीब 26 फीसदी यानी 4,200 केमिकल इंसानी स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए चिंता का विषय हैं। यह ज्ञात है कि प्लास्टिक में उपयोग के लिए 1,300 से अधिक केमिकल्स का व्यापार किया जाता है और अच्छी तरह से अध्ययन किए गए प्लास्टिक प्रकारों में पाए जाने वाले 29 से 66 फीसदी रसायन चिंता का विषय हैं। इसका मतलब है कि पैकेजिंग से लेकर प्लास्टिक के सभी प्रमुख प्रकारों में 400 से अधिक ऐसे केमिकल्स मौजूद हो सकते हैं, जो चिंता का विषय हैं।

केमिकल्स के बारे में बुनियादी जानकारी का है आभाव

आंकड़ों में मौजूद हैरान कर देने वाले अंतराल का भी रिपोर्ट में पता चला है, जिसके मुताबिक प्लास्टिक में पाए जाने वाले एक चौथाई से अधिक ज्ञात केमिकल्स की पहचान के बारे में बुनियादी जानकारी का अभाव है। वहीं आधे से अधिक के बारे में उनके कार्यों और अनुप्रयोगों के बारे में पब्लिक डोमेन में अस्पष्ट जानकारी है। 

यही वजह है कि वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक में उपयोग किए जाने वाले एडिटिव्स, प्रोसेसिंग ऐड और अशुद्धियों सहित अन्य रसायनों के संबंध में अधिक पारदर्शिता के महत्व पर जोर दिया है। इसके अतिरिक्त, कौन सा देश कितने प्लास्टिक का उत्पादन कर रहा है, कितना प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा है, इस बारे में आंकड़ों का आभाव है और कुछ विशिष्ट देशों के पास ही इस बारे में पर्याप्त आंकड़े मौजूद हैं।

रिपोर्ट के अनुसार यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि 10,000 से अधिक केमिकल्स से जुड़े खतरों को लेकर जानकारी का आभाव है। हालांकि यह जानकारी उनके उचित मूल्यांकन और प्रबंधन के लिए आवश्यक है।

देखा जाए तो यह प्लास्टिक में मौजूद केमिकल्स की पहचान, उनसे जुड़े खतरों, कार्यक्षमताओं, उत्पादन की मात्रा और प्लास्टिक में उनकी उपस्थिति के संबंध में अधिक पारदर्शी जानकारी की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।

“स्टेट ऑफ द साइंस ऑन प्लास्टिक केमिकल्स” नामक यह रिपोर्ट नॉर्वेजियन रिसर्च काउंसिल के सहयोग से तैयार की गई है। बता दें कि यह रिपोर्ट ऐसे समय में सामने आई है जब बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए दुनिया पहली अंतराष्ट्रीय संधि की तैयारी में जुटी है। इसको लेकर 23 से 29 अप्रैल 2024 के बीच प्लास्टिक पर बनाई अंतरसरकारी वार्ता समिति की चौथे सत्र (आईएनसी-4) की वार्ता कनाडा में होनी है।

आपको जानकर हैरानी होगी की इस रिपोर्ट में जितने भी तरह के प्लास्टिक का अध्ययन किया गया है वो सभी हानिकारक केमिकल्स छोड़ते हैं। देखा जाए तो कभी वरदान समझा जाने वाला प्लास्टिक आज दुनिया के लिए बड़ी समस्या बन चुका है। जो न केवल बढ़ते प्रदूषण की वजह बन रहा है, साथ ही पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए भी बड़ा खतरा पैदा कर रहा है।

केवल नौ फीसदी प्लास्टिक ही हो रहा है रीसायकल

आज प्लास्टिक की समस्या कितना विकराल रूप ले चुकी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर हर साल करीब 40 करोड़ टन प्लास्टिक उत्पादित किया जाता है। हालांकि इसमें से केवल नौ फीसदी प्लास्टिक ही रीसायकल किया जाता है। मतलब की बाकी दोबारा पर्यावरण या लैंडफिल में जा रहा है। अनुमान है कि यदि इस समस्या पर गंभीरता से गौर न किया गया तो जलीय पारिस्थितिक तंत्र में जगह बनाने वाले प्लास्टिक कचरे की मात्रा 2040 तक करीब 2.9 करोड़ टन पर पहुंच जाने की आशंका है।

प्लास्टिक के बेहद महीन कण, माइक्रोप्लास्टिक्स के रुप में आज पूरी दुनिया पर हावी हो चुके हैं। आज दुनिया में शायद ही ऐसी कोई जगह बची होगी जहां प्लास्टिक की मौजूदगी के सबूत न मिले हों। जो न केवल पर्यावरण बल्कि इंसानी स्वास्थ्य और जैवविविधता के लिए भी बड़ा संकट हैं।

मौजूदा समय में वैज्ञानिकों को इंसानी शरीर में रक्त, फेफड़ों और अन्य अंगों से लेकर प्लेसेंटा तक में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी के सबूत मिले हैं। ऐसे में प्लास्टिक में बड़े पैमाने पर केमिकल्स के पाए जाने की पुष्टि एक बड़े खतरे की ओर इशारा करती है।

यही वजह है कि इस रिपोर्ट प्लास्टिक में मौजूद रसायनों पर आवश्यक वैज्ञानिक जानकारी साझा की गई है। जो ऐसे प्लास्टिक के उत्पादन में मददगार हो सकती है जो इंसानों और पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं।

प्लास्टिक कचरे के साथ-साथ उसमें मौजूद केमिकल्स में भी देना होगा ध्यान

यह सही है कि प्लास्टिक को लेकर देशों के बीच एक मजबूत संधि इस दुनिया भर पर मंडराते इस संकट से निपटने में मददगार साबित हो सकती है। साथ ही यह सुरक्षित और सस्टेनेबल सर्कुलर इकोनॉमी की ओर बदलाव को बढ़ावा दे सकती है।

लेकिन साथ ही रिपोर्ट के मुताबिक इस संधि में प्लास्टिक में मौजूद रसायनों पर भी ध्यान देना जरूरी है, क्योंकि आज खाद्य पदार्थों की पैकिंग से बच्चों के खिलौनों और चिकित्सा उपकरणों में भी प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है।

इन सभी तरह के प्लास्टिक में केमिकल्स मौजूद होते हैं। यह केमिकल्स हमारे घरों, पर्यावरण और खाने तक का रास्ता बना सकते हैं जो स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण दोनों के लिए बड़ा खतरा बन सकते हैं।

ऐसे में प्लास्टिक से जुड़े खतरों से निपटने के लिए केवल बढ़ते प्लास्टिक कचरे से निपटना ही काफी नहीं है। इसमें मौजूद हानिकारक केमिकल्स के बारे में भी प्लास्टिक इंडस्ट्री, सरकार और आम लोगों को जागरूक होना होगा।

यही वजह है कि रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि सुरक्षित प्लास्टिक के निर्माण के लिए इसमें मौजूद केमिकल्स को विनियमित करने के नए तरीकों की आवश्यकता है। इसमें संभावित जोखिमों के आधार पर प्लास्टिक में मौजूद खतरनाक केमिकल्स के समूहों की पहचान करना शामिल है।

इस बारे में प्लास्टकेम प्रोजेक्ट के समन्वयक और इस रिपोर्ट के मुख्य लेखक प्रोफेसर मार्टिन वैगनर ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए कहा है कि, "दुनिया की सरकारें प्लास्टिक की समस्या से निपटना चाहती हैं। हालांकि यह तभी हासिल किया जा सकता है जब समस्या बन चुके इस प्लास्टिक में मौजूद रसायनों से उचित तरीके से निपटा जाए।"

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