दिल्ली में नहीं है राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण, एनजीटी पहुंचा मामला

रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में एसईआईएए और एसईएसी का कार्यकाल पांच सितंबर, 2024 को खत्म हो गया था। इसके बाद से पर्यावरण मंजूरी से जुड़े सभी मामले विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति देख रही है
नजफगढ़ नाला दिल्ली का एक प्रमुख नाला है जो साहिबी नदी के उत्तरी छोर के रूप में जाना जाता है। यह आगे जाकर यमुना में मिल जाता है; फोटो: आईस्टॉक
नजफगढ़ नाला दिल्ली का एक प्रमुख नाला है जो साहिबी नदी के उत्तरी छोर के रूप में जाना जाता है। यह आगे जाकर यमुना में मिल जाता है; फोटो: आईस्टॉक
Published on

दिल्ली में इस समय न तो कोई राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) मौजूद है और न ही राज्य स्तरीय विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (एसईएसी)। यह जानकारी 29 अप्रैल, 2025 को दिल्ली सरकार के पर्यावरण विभाग ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दायर अपनी रिपोर्ट में दी है।

रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में एसईआईएए और एसईएसी का कार्यकाल पांच सितंबर, 2024 को खत्म हो गया था। इसके बाद से राज्य में पर्यावरण मंजूरी से जुड़े सभी मामलों को केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी) देख रही है।

5 सितंबर, 2024 तक दिल्ली में किसी भी खनन पट्टा या खनन परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी नहीं दी गई थी। साथ ही, एसईआईएए/एसईएसी के पास खनन पट्टा परियोजनाओं की पर्यावरण मंजूरी के सम्बन्ध में ऐसी कोई लंबित आवेदन फाइल नहीं थी।

यह रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा 16 जनवरी, 2025 को दिए आदेश पर कोर्ट में सौंपी गई है। गौरतलब है कि टाइम्स ऑफ इंडिया में 30 नवंबर, 2024 को छपी एक खबर के आधार पर एनजीटी ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया है। मामला यमुना नदी के पर्यावरणीय दोहन और अवैध खनन से जुड़ा है।

पुडुचेरी में जंगलों को नहीं हुआ है कोई नुकसान: सरकार ने एनजीटी को सौंपी रिपोर्ट

पुडुचेरी में वन क्षेत्र या हरित आवरण में कोई कमी नहीं आई है। यह जानकारी 25 अप्रैल 2025 को केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में सबमिट अपनी रिपोर्ट में दी है।

'इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2023', के मुताबिक पुडुचेरी का कुल वन क्षेत्र 44.31 वर्ग किलोमीटर है। इसमें रिकॉर्ड किए गए वन क्षेत्र के अंदर और बाहर दोनों क्षेत्र शामिल हैं। 'इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2023' को फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा तैयार किया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, 2001 से 2015 के बीच पुडुचेरी के वनावरण में लगातार वृद्धि हुई थी। हालांकि, 2017 से 2019 के बीच इसमें थोड़ी गिरावट जरूर देखी गई। लेकिन 2021 तक वन आवरण में फिर से वृद्धि देखी गई, और यह रुझान सकारात्मक बना हुआ है।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि वन और वृक्ष आवरण में आए बदलाव के पीछे समय-समय पर आने वाले चक्रवात, शहरीकरण और प्रदूषण सहित जलवायु परिवर्तन जैसे कारक जिम्मेवार हैं। ये कारक जैविक और अजैविक बदलावों को जन्म देते हैं जो वन या वृक्ष आवरण को प्रभावित करते हैं।

उदाहरण के लिए विदेशी प्रजातियों का आक्रमण स्थानीय पेड़-पौधों की संख्या और विविधता को प्रभावित करते हैं। इनकी वजह से देशी प्रजातियां नष्ट हो जाती हैं या एक अवधि में उनकी संख्या और वितरण में कमी आती है।

पुडुचेरी प्रशासन ने रिपोर्ट में जानकारी दी कि कि पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और वनों और वृक्षों के आवरण के प्रबंधन के लिए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों स्थानीय प्रजातियों के पेड़ लगाए जा रहे हैं। इसके साथ-साथ जन जागरूकता कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं ताकि लोग खुद आगे बढ़कर इन गतिविधियों में हिस्सा लें और अपने परिवेश की हरियाली को अपनाएं और उसे बचाने में अपना योगदान दें।

गौरतलब है कि 13 अप्रैल 2024 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के आधार पर एनजीटी ने इस मामले को स्वतः संज्ञान में लिया है।

इस खबर में ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच मॉनिटरिंग प्रोजेक्ट के आंकड़ों का हवाला देते हुए जानकारी दी है कि 2000 से अब तक भारत ने 23.3 लाख हेक्टेयर में फैले पेड़ों के आवरण को खो दिया है, जोकि कुल वृक्ष आवरण के करीब छह फीसदी के नुकसान के बराबर है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in