अतिक्रमणकारियों को नहीं मिलेगी सुरक्षा, हिमाचल हाईकोर्ट ने धारा 163-ए को करार दिया असंवैधानिक

यह धारा राज्य सरकार को सरकारी जमीन पर हुए अवैध कब्जों को नियमित करने के लिए नियम बनाने का अधिकार देती थी
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने बड़ा फैसला सुनाते हुए हिमाचल प्रदेश भू-राजस्व अधिनियम, 1954 की धारा 163-ए को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। यह धारा राज्य सरकार को सरकारी जमीन पर हुए अवैध कब्जों को नियमित करने के लिए नियम बनाने का अधिकार देती थी।

5 अगस्त 2025 को न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति बिपिन चंदर नेगी की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा, "धारा 163-ए पूरी तरह मनमानी और असंवैधानिक है। इसलिए, यह धारा और इसके तहत बनाए गए सभी नियम रद्द किए जाते हैं।"

सरकारी जमीन से अतिक्रमण हटाने के निर्देश

अदालत ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में सरकारी जमीन पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण को देखते हुए, राज्य सरकार को "आपराधिक अतिक्रमण" (क्रिमिनल ट्रेसपास) से जुड़े कानून में संशोधन करने पर विचार करना चाहिए, जैसा कि उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और ओडिशा में किया गया है।

अदालत ने संबंधित अधिकारियों को कानून के दायरे में रहते हुए सभी सभी अतिक्रमणों को हटाने के लिए प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया है। साथ ही सभी अतिक्रमणों को 28 फरवरी 2026 तक हटाने को कहा है।

पुराने स्टे आर्डर अब अमान्य

उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सरकारी जमीन से अतिक्रमण हटाने के खिलाफ दिया गया कोई भी स्थगन (स्टे) या रोक लगाने वाला आदेश अब मान्य नहीं होगा, चाहे वह आदेश किसी भी नियम, ड्राफ्ट नियम (जैसे 2017 के ड्राफ्ट नियम), या अतिक्रमण के नियमितीकरण के आधार पर दिए गए हों, ऐसे सभी आदेश अप्रभावी और अमान्य माने जाएंगे और अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही में रोड़ा नहीं बनेंगे।

अदालत ने 8 जनवरी 2015 के अपने निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि सभी प्रकार की सरकारी जमीन, भवनों, सड़कों आदि पर किए गए अतिक्रमण को हटाने के लिए उसी आदेश का पालन किया जाएगा। इसमें वे कार्यवाही भी शामिल हैं जो एच पी पब्लिक प्रिमाइसेस एक्ट और धारा 163 के तहत शुरू की गई हैं या आगे शुरू की जाएंगी।

नगर निकायों की जिम्मेदारी तय करने के आदेश

अदालत ने हिमाचल सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह संबंधित कानूनों और नियमों में आवश्यक संशोधन करे, ताकि नगर पंचायत, नगर परिषद और नगर निगम के पदाधिकारियों एवं कार्यकारी अधिकारियों/कमिश्नरों की जिम्मेदारियां स्पष्ट रूप से तय की जा सकें। इन अधिकारियों की जिम्मेदारी दी जाए कि वो अतिक्रमण की जानकारी दें, उसे हटाने की कार्रवाई करें। यदि वे इन दायित्वों का पालन नहीं करते, तो उनके खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई की जा सकेगी।

अदालत ने कहा कि हिमाचल सरकार को भू-राजस्व अधिनियम की धारा 163 से वह प्रावधान हटाने पर विचार करना चाहिए, जिसमें अतिक्रमण करने वाला व्यक्ति लंबे समय तक कब्जे (एडवर्स पजेशन) के आधार पर जमीन का मालिकाना हक मांग सकता है।

नहीं चलेगा "एडवर्स पजेशन" का दावा

अदालत ने यह भी कहा कि जिन मामलों में सड़क या अन्य सार्वजनिक उपयोग के लिए जमीन अधिग्रहित की गई है और उसका कब्जा अदालत या सरकारी संस्था को दिया जा चुका है, लेकिन पूर्व मालिक ने जमीन खाली नहीं की या फिर से कब्जा कर लिया जैसे निर्माण करके, तो ऐसे मामलों में एडवर्स पजेशन (लंबे समय के कब्जे के आधार पर मालिकाना हक) का दावा नहीं किया जा सकता।

बल्कि, ऐसे व्यक्ति को अतिक्रमण हटाने की लागत, जमीन के उपयोग और कब्जे का किराया, और उस जमीन/संपत्ति से मिले लाभों की भरपाई भी करनी होगी।

अदालत ने एडवोकेट जनरल को निर्देश दिया है कि इस फैसले की कॉपी हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव के साथ-साथ सभी संबंधित अधिकारियों को तुरंत भेजी जाए, ताकि इसका पालन सुनिश्चित हो सके। साथ ही, जिन राजस्व अधिकारियों के क्षेत्र में अतिक्रमण हुआ है, उनके खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जाए।

मुल्लापेरियार बेबी डैम के लिए पेड़ों के काटे जाने पर केंद्र लेगा फैसला: सुप्रीम कोर्ट

31 जुलाई 2025 को तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मुल्लापेरियार बांध के पास स्थित बेबी डैम की संरचना को मजबूत करने के लिए 23 पेड़ों को काटने की जरूरत है। यह हिस्सा पेरियार टाइगर रिजर्व में है। केरल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने इसके लिए पहले ही आवश्यक अनुमति दे दी हैं।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह केरल द्वारा दी गई अनुमति की पुष्टि करे और उसके बाद पर्यावरणीय मंजूरी की प्रक्रिया शुरू करे।

सुप्रीम कोर्ट को यह भी जानकारी दी गई कि डैम की ग्राउटिंग (सीलिंग) के कार्य से पहले एक "रिमोटली ऑपरेटेड व्हीकल" स्टडी आवश्यक है, जिसे मुल्लापेरियार डैम की पर्यवेक्षण समिति ने सुझाया है। समिति की रिपोर्ट के अनुसार, तमिलनाडु को पहले यह अध्ययन पूरा करना होगा और फिर उसी आधार पर ग्राउटिंग कार्य शुरू किया जा सकेगा।

जैसे ही यह स्टडी पूरी हो जाए और रिपोर्ट केरल को भेज दी जाए, केरल को आवश्यक अनुमति देनी होगी ताकि मरम्मत का कार्य शुरू किया जा सके।

इसके अलावा, वल्लकाडाव घाट रोड की मरम्मत और निर्माण कार्य के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि यह कार्य सितंबर और अक्टूबर 2025 के दौरान (जब मानसून नहीं होता) पूरा किया जाए।

इस मामले में अगली सुनवाई 12 नवंबर, 2025 को होगी।

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