
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 22 अप्रैल, 2025 को आदेश दिया है कि भूगर्भीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में तब तक कोई खनन गतिविधि न की जाए जब तक विशेषज्ञ समिति द्वारा भूकंपीय अध्ययन नहीं कर लिया जाता। इस समिति में प्रतिष्ठित मान्यता प्राप्त संस्थानों के भूकंप वैज्ञानिकों को शामिल करना अनिवार्य होगा।
यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य अफरोज अहमद की बेंच ने दिया है। यह बेंच उत्तराखंड में बागेश्वर जिले के पापौन गांव में सोपस्टोन के अवैध खनन के मामले की शिकायत पर सुनवाई कर रही थी।
अदालत ने बागेश्वर के जिलाधिकारी को निर्देश दिया है कि जब तक आवश्यक शर्तें पूरी नहीं होतीं, तब तक खनन की अनुमति न दी जाए। कोर्ट ने कहा कि संबंधित क्षेत्र भूगर्भीय दृष्टि से नाजुक है, यहां पत्थर की संरचना कमजोर है और भूस्खलन की घटनाएं अक्सर होती रहती हैं। इसलिए जब तक विशेषज्ञों द्वारा अध्ययन नहीं किया जाता और यह रिपोर्ट नहीं दी जाती कि वहां खनन करना भू-टेक्टोनिक स्थिति और पर्यावरण के लिए सुरक्षित है, तब तक किसी भी तरह की खनन गतिविधि की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
अदालत ने निर्देश दिया है कि यह अध्ययन एक संयुक्त समिति द्वारा किया जाना चाहिए, जिसमें राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए), उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूकेपीसीबी) के प्रतिनिधि, जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, अल्मोड़ा के प्रतिनिधि और अन्य विशेषज्ञ शामिल होंगे।
समिति को तीन महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपनी होगी। इसके बाद बागेश्वर के जिलाधिकारी को उचित कार्रवाई करनी होगी। आदेश में यह भी कहा गया है कि यूकेपीसीबी और बागेश्वर के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा इस बारे में 30 सितंबर, 2025 तक ट्रिब्यूनल के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
अवैध खनन के संबंध में ट्रिब्यूनल ने पाया है कि अधिकारियों ने परियोजना प्रस्तावक पर जुर्माना लगाया है, लेकिन यह स्पष्ट है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कोई पर्यावरणीय मुआवजा नहीं लगाया है और न ही पर्यावरण संबंधी नियमों के तहत कोई अन्य कानूनी कार्रवाई की है। ऐसे में अदालत ने उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया कि पर्यावरणीय मुआवजे का आंकलन करके परियोजना प्रबंधक से उचित जुर्माना वसूला जाना चाहिए। साथ ही प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए खननकर्ता को सुनवाई का उचित अवसर दिया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की बेंच ने 8 नवंबर, 2024 को दिए अपने पुराने आदेश (ओए संख्या 78/2023, दुर्गा सिंह पवार बनाम उत्तराखंड राज्य और अन्य) का भी हवाला दिया है। यह मामला पिथौरागढ़ से संबंधित था। इस आदेश में कहा गया था कि भूकंपीय रूप से संवेदनशील और पारिस्थितिकीय रूप से नाजुक इलाकों में बिना उचित अध्ययन के खनन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, अन्यथा इसके परिणाम बेहद गंभीर होंगे।
पर्यावरण के लिए घातक है इस क्षेत्र में सोप स्टोन का अवैध खनन
आदेश में कहा गया है कि पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील इलाकों में बिना उचित अध्ययन के और यह जांचे बिना कि खनन व्यावहारिक और पर्यावरण के अनुकूल है या नहीं, खनन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
शिकायतकर्ता ने कोर्ट को बताया है कि गांव में महीनों से सोप स्टोन का अवैध खनन हो रहा है, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचा है और प्राकृतिक संसाधन खत्म हो रहे हैं। हालांकि इसके बावजूद संबंधित अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
खनन से उपजा मलबा पास की पुंगेर नदी को प्रदूषित कर रहा है और इससे जलीय जीवन के लिए खतरा पैदा हो गया है। इसका पारिस्थितिकी तंत्र और पर्यावरण संतुलन पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। उनके मुताबिक यदि एक बार उपजाऊ भूमि बंजर हो गई, तो पानी की कमी इंसानों और जानवरों दोनों के लिए संकट पैदा कर देगी।
अदालत को जानकारी दी गई है कि मार्च 2024 से खनन कार्य रुका है। संयुक्त समिति की एक नवंबर, 2023 को सौंपी रिपोर्ट के अनुसार, खनन कार्यों में मशीनों का इस्तेमाल हुआ था और खनन क्षेत्र के उत्तर-पूर्वी हिस्से में भूस्खलन की घटना भी घटी थी।
रिपोर्ट में पाया गया कि खनन क्षेत्र से करीब 15 मीटर दूर उत्तर में एक बरसाती नाला है। खनन क्षेत्र के बाहर इस नाले के पास भी 225 घन मीटर तक अवैध रूप से खनन किया गया है। परियोजना प्रस्तावक ने नाले में मलबा गिरने से रोकने के लिए कोई सुरक्षा दीवार भी नहीं बनाई थी। इससे बरसाती नाले में मलबा गिरने की आशंका बनी रहती है, जो स्वीकृति की शर्तों का उल्लंघन है।
संयुक्त समिति को खनन क्षेत्र की पूर्वी दिशा में हुए भूस्खलन का भी पता चला है। ग्रामीणों ने संयुक्त समिति को जानकारी दी है कि 2020-21 में भी इसी स्थान पर भूस्खलन हुआ था। इसकी वजह खनन गतिविधियां थी।
खनन क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और भू-आकृति को लेकर संयुक्त समिति ने कहा कि “खनन स्थल 'जौनसार समूह' की बेरीनाग संरचना के तहत लघु हिमालय पर्वतमाला की विकसित सीढ़ीदार ढलानों के बीच स्थित है।“
"खनन क्षेत्र के उत्तर-पूर्व दिशा में भूस्खलन के कारण ढलान से गिरे मलबे के बीच क्वार्ट्जाइट चट्टानें दिखाई दे रही हैं, जो टूट-फूट और दरारों वाली हैं। यहां डोलोमाइट और सोपस्टोन की चट्टानें भी पाई गई हैं। इनकी संरचना कमजोर है।"
संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि खनन क्षेत्र भूस्खलन से प्रभावित है। वहां की चट्टानें टूटी-फूटी और फ्रैक्चर्ड हैं, जिससे इलाका अत्यधिक कमजोर हो गया है। भारी बारिश के कारण ढलान वाली जमीन पर पानी का अवशोषण बढ़ जाता है, चूंकि यह क्षेत्र अत्यधिक ढलान वाले क्षेत्र पर स्थित है जिससे भूस्खलन की घटनाएं होती हैं।