हिमाचल प्रदेश में 31 जुलाई को बारिश से हुई भारी तबाही वैश्विक तापमान का परिणाम थी। हिमालय नीति अभियान द्वारा कुल्लू घाटी में हुई तबाही को लेकर जारी फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रांस और उच्च हिमालय क्षेत्र में वैश्विक तापमान से जलवायु की प्रवृत्ति में बदलाव के कारण ही भारी बारिश और बादल फटने की घटनाएं हो रही हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, बहुत सी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में कहा गया है कि हिमालय क्षेत्र के गर्म होने की दर दुनिया के अन्य हिस्सों के मुकाबले करीब दोगुनी है। दक्षिण पश्चिम मॉनसून और लंबे पश्चिमी विक्षोभ के इस क्षेत्र में टकराने से इस तरह की विनाशकारी घटनाएं बढ़ रही हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, ट्रांस और उच्च हिमालय क्षेत्र में बदलती जलवायु ने आपदाओं के जोखिम को बढ़ा दिया है। इस क्षेत्र में पिघलते ग्लेशियर ने अपने पीछे बड़ी मात्रा में ढीली सतह और सब सरफेस सेडिमेंट (गाद) छोड़ गए हैं जो अचानक आई तेज बारिश से कभी भी बह सकता है। इस गाद से जल विद्युत परियोजनाओं को बहुत खतरा है।
उल्लेखनीय है कि 31 जुलाई को उच्च हिमालय के पीर पंजाल रेंज में बादल फटने की घटना से निचले इलाकों में तबाही आ गई थी। 31 जुलाई की ही रात इसी रेंज के मलाना के ऊपरी हिस्से में बादल फटा था जिससे पार्वती नदी में मिलने वाले मलाना खड्ड में अचानक बाढ़ आ गई थी।
इससे मलाना बांध टूट गया था। इसी तरह भारी बारिश से सेंज नदी घाटी में भारी तबाही मची थी। बड़ी मात्रा में पानी आ जाने के कारण एचपीपीसीएल निहारनी बांध के फाटक खोलने पड़े और साथ ही 10 किलोमीटर नीचे पार्वती फेस 3 बांध के फाटक भी खोल दिए गए थे। इससे अचानक आए पानी ने सेंज मार्केट के रोड को बहा दिया। साथ ही जानमाल को बेहद नुकसान पहुंचाया।
रिपोर्ट में इस तरह की त्रासदी से बचने के लिए कई सुझाव दिए गए हैं। जैसे पैराग्लेशियर क्षेत्रों में निर्माण और विकास कार्यों में सख्ती बरतने के साथ अलग योजना और दिशानिर्देश बनाने का सुझाव है। यह भी कहा गया है कि ऐसे नाजुक और उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट पूरी तरह बंद कर दिए जाएं। इतना ही नहीं 8,000 फीट से ऊंचे इलाकों में सभी बड़ी विकास योजनाएं बंद होनी चाहिए। खतरों को कम करने के लिए नई इंजीनियरिंग पद्धतियों को खोजा जाना चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के खतरों को देखते हुए उच्च हिमालय के सभी चालू बांधों के सुरक्षा ऑडिट का जरूरत है। अचानक और तेजी बारिश को देखते हुए डॉपलर और रडार जैसे अर्ली वार्निंग सिस्टम लगने चाहिए। यह भी सुझाव है कि सड़क बनाने और उन्हें चौड़ा करने के लिए ब्लास्ट और ड्रिल के तरीकों को सीमित इस्तेमाल हो। इनके स्थान पर कट और फिल पद्धति को अपनाया जाए, भले ही यह ज्यादा महंगी हो।