मेरठ की सुशांत सिटी का मामला: एनजीटी ने अंसल पर लगाया 10.9 करोड़ का जुर्माना

यह जुर्माना मेरठ में अंसल सुशांत सिटी द्वारा ठोस कचरे के प्रबंधन से जुड़े नियमों का पालन न करने के लिए लगाया गया है
Photo: Wikimedia commons
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अंसल लैंडमार्क टाउनशिप को 10.9 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय मुआवजा भरने का निर्देश दिया है। यह जुर्माना मेरठ में अंसल सुशांत सिटी द्वारा ठोस कचरे के प्रबंधन से जुड़े नियमों का पालन न करने के लिए लगाया गया है। मामला उत्तर प्रदेश के मेरठ का है।

19 मार्च 2025 को दिए इस आदेश के अनुसार अंसल को यह राशि अगले दो महीनों के भीतर उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के पास जमा करनी होगी।

इसके साथ ही परियोजना डेवलपर को दो महीने के भीतर अधिकारियों से सभी आवश्यक मंजूरी लेनी होगी। यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो वे परियोजना पर निर्माण या काम जारी नहीं रख सकते।

अंसल को परियोजना पूरी होने और एमसीएम को सौंपे जाने तक सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 का पालन सुनिश्चित करना होगा। इसके साथ ही उन्हें आवश्यक क्षमता का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) बनाकर पर्यावरण मंजूरी से जुड़े नियमों का भी पालन करना होगा। तीन महीने के भीतर, परियोजना में सभी नालियों और सीवर लाइनों को उचित सीवेज उपचार के लिए एसटीपी से जोड़ा जाना चाहिए, जैसा की पर्यवरण मंजूरी की शर्तों में कहा गया है।

इन आदेशों का पालन हो रहा है यह सुनिश्चित करने की जिम्मेवारी उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) और मेरठ के जिला मजिस्ट्रेट को दी गई है। उन्हें इस मामले में 15 जुलाई, 2025 तक एक रिपोर्ट अदालत के सामने प्रस्तुत करनी होगी।

क्या है पूरा मामला

गौरतलब है कि इस मामले में ट्रिब्यूनल को अंसल सुशांत सिटी सेक्टर-7ए आवासीय कल्याण सोसायटी के अध्यक्ष अमरदीप से एक शिकायत मिली थी। इसमें उन्होंने डेवलपर द्वारा ठोस कचरे का उचित तरीके से निपटान न करने और उसकी वजह से पर्यावरण को हो रहे नुकसान की बात कही थी।

परियोजना को 16 जनवरी, 2008 को पर्यावरण मंजूरी (ईसी) दी गई थी, लेकिन 15 मार्च, 2024 को निरीक्षण के समय भी परियोजना को अधूरा पाया गया। मतलब की 15 वर्षों से अधिक समय बीत जाने के बाद भी यह पूरी नहीं हुई है।

14 सितंबर, 2006 को जारी पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना के अनुसार, पर्यावरण मंजूरी केवल पांच वर्षों के लिए वैध होती है। ऐसे में डेवलपर ने न तो नई मंजूरी हासिल की और न ही पहले मिली पर्यावरण मंजूरी को आगे बढ़ाने के लिए स्वीकृति ली है।

न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल के बेंच का कहना है, "पर्यावरण मंजूरी की अवधि समाप्त होने के बाद भी परियोजना का निर्माण जारी रहा, जो ईआईए 2006 और पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिनियम, 1986 का उल्लंघन है।" बेंच के मुताबिक डेवलपर द्वारा नियमों का किया गया यह गंभीर उल्लंघन है।

अपने आदेश में ट्रिब्यूनल ने कहा कि, अंसल लैंडमार्क टाउनशिप ने पर्यावरण संबंधी कानूनों का उल्लंघन किया है और ऐसे में उसे कानूनी कार्रवाई और दंड का सामना करना पड़ेगा। इसमें "प्रदूषक भुगतान सिद्धांत" के तहत पर्यावरण क्षतिपूर्ति का भुगतान भी शामिल है।

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