एनजीटी का बड़ा आदेश: स्कूलों और घरों में एस्बेस्टस के उपयोग पर कसेगी लगाम

एनजीटी ने सरकार से स्कूलों, घरों और इमारतों में एस्बेस्टस शीट्स के इस्तेमाल की समीक्षा करने के साथ श्रमिकों और आम लोगों की सुरक्षा के लिए ठोस नीतियां और नियम बनाने का निर्देश दिया है
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सारांश
  • नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने एस्बेस्टस के खतरों को देखते हुए स्कूलों और घरों में इसके उपयोग पर सख्त निर्देश जारी किए हैं।

  • मजदूरों की सुरक्षा के लिए पीपीई का उपयोग अनिवार्य किया गया है और एस्बेस्टस कचरे के निपटान के लिए सख्त नियम बनाए गए हैं।

  • मंत्रालय को छह महीनों में नीतियां तैयार करने का निर्देश दिया गया है।

एस्बेस्टस से बनी सीमेंट की छतों और अन्य एस्बेस्टस युक्त सामग्री से होने वाले खतरों को ध्यान में रखते हुए, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 30 अक्टूबर 2025 को महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं।

इनका उद्देश्य मजदूरों, उनके परिवारों, संपर्क में आने वाले लोगों, स्थानीय निवासियों और ऐसे भवनों में रहने या काम करने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, जहां एस्बेस्टस युक्त सामग्री का उपयोग हुआ है।

एनजीटी ने निर्देश दिया है कि नियोक्ताओं को मजदूरों की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाने होंगे जैसे एस्बेस्टस के स्तर का आकलन करना, खतरनाक क्षेत्रों को स्पष्ट रूप से चिह्नित करना, चेतावनी संकेत लगाना, उचित वेंटिलेशन सिस्टम और ग्रीन बेल्ट जैसी तकनीकी व्यवस्थाएं करना ताकि हवा में एस्बेस्टस की मात्रा कम हो सके। साथ ही, मजदूरों के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) का उपयोग अनिवार्य किया जाए।

स्कूलों में एस्बेस्टस के संपर्क से बचाव के लिए एनजीटी ने निर्देश दिया है कि एस्बेस्टस की छतों को संभालने, लगाने या हटाने के दौरान निर्माता के निर्देशों का पालन किया जाए। इसके साथ ही भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा अनुशंसित उपकरणों का उपयोग किया जाए और सुरक्षा उपायों का पालन करते हुए छतों की सही सीलिंग की जाए तथा सुरक्षा उपायों का पालन कर कम से कम कचरा उत्पन्न किया जाए।

अदालत ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों, समितियों और स्कूलों को निर्देश दिया है कि वे ऐसे स्कूल भवनों की नियमित जांच करें, जिनमें एस्बेस्टस शीट या सामग्री लगी हो। इसका उद्देश्य उनकी स्थिति का आकलन करना और जरूरत पड़ने पर मरम्मत या बदलाव सुनिश्चित करना है।

एस्बेस्टस कचरे के परिवहन और निपटान के लिए एनजीटी ने सख्त नियम तय किए हैं। कचरा लीक-प्रूफ कंटेनरों (विशेष बैग या ड्रम) में ले जाया जाए, और यदि कंटेनर क्षतिग्रस्त हो तो तुरंत उसे दोबारा पैक किया जाए। इसके लिए अधिकृत निपटान साइट्स बनाई जाएं और कचरा ढंके हुए वाहनों से ही वहां पहुंचाया जाए ताकि धूल का उत्सर्जन न हो।

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इन वाहनों पर स्पष्ट रूप से लिखा होना चाहिए कि उनमें एस्बेस्टस युक्त कचरा है। इसका निपटान केवल लाइसेंस प्राप्त अपशिष्ट निस्तारण स्थलों पर किया जाए, जो खतरनाक कचरे के लिए विशेष रूप से बनाए गए हों। इन स्थलों पर जलरोधी परतें, निकासी प्रणाली और पर्यावरण निगरानी व्यवस्था होनी चाहिए ताकि प्रदूषण और रिसाव से बचा जा सके।

एनजीटी ने क्या कुछ दिए हैं निर्देश

एनजीटी के न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी की अध्यक्षता वाली पीठ ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वह छह महीनों के भीतर एस्बेस्टस से जुड़े सभी वैज्ञानिक साक्ष्यों और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं की समीक्षा करे।

इसके बाद मंत्रालय को स्कूलों, घरों और अन्य भवनों में एस्बेस्टस युक्त सीमेंट की छतों व अन्य एस्बेस्टस सामग्री के उपयोग को सीमित या प्रतिबंधित करने के लिए नीतियां तैयार करनी होंगी।

इसके साथ ही मंत्रालय को निर्देश दिया गया है कि वह एस्बेस्टस युक्त कचरे के सुरक्षित प्रबंधन और निपटान के लिए कार्ययोजना और समयसीमा सहित स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करे। इसमें एस्बेस्टस छत और दीवार शीट, पाइपलाइन आदि के निर्माण, रखरखाव, हटाने और निपटान के सभी चरणों के लिए दिशानिर्देश शामिल होने चाहिए, ताकि उनके हानिकारक प्रभावों को कम किया जा सके।

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ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को निर्देश दिया गया है कि वे तैयार की गई नीतियों, कार्ययोजनाओं, दिशा-निर्देशों और मानक प्रक्रियाओं को केंद्र सरकार के सभी संबंधित मंत्रालयों, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों/ समितियों के सचिवों को भेजें, ताकि देशभर में इनका कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जा सके।

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