एस्बेस्टस प्रदूषण के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए सीपीसीबी जारी करे दिशानिर्देश: एनजीटी

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार
एस्बेस्टस प्रदूषण के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए सीपीसीबी जारी करे दिशानिर्देश: एनजीटी
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 17 जुलाई, 2023 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को देश में चल रहे एस्बेस्टस-आधारित उद्योगों के लिए उपयुक्त दिशानिर्देश जारी करने का निर्देश दिया है।

सीपीसीबी को यह सुनिश्चित करने का काम भी सौंपा गया है कि ये उद्योग स्वास्थ्य और पर्यावरण पर एस्बेस्टस के हानिकारक प्रभावों और खतरे को कम करने के लिए उपायों का पालन करें। साथ ही एनजीटी ने इस बात पर भी जोर दिया है कि उद्योगों को पर्यावरण मंजूरी (ईसी) और सहमति शर्तों का पालन करना होगा।

इस मामले में गौतमबुद्धनगर की दादरी तहसील के बिसरख ब्लॉक में बिसहड़ा के ग्राम प्रधान नरेंद्र प्रताप सिंह ने 30 अगस्त, 2022 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में शिकायत दर्ज कराई थी। यह शिकायत मेसर्स यूपीएस विस्टेज प्राइवेट लिमिटेड द्वारा उनके गांव में किए जा रहे पर्यावरण प्रदूषण के बारे में थी।

आवेदक की शिकायत है कि हानिकारक कचरे का खुले में अनुचित तरीके से निपटान किया जा रहा है, और अत्यधिक प्रदूषित औद्योगिक जल को नालियों और आस-पास के खेतों में छोड़ा जा रहा है। नतीजन इस दूषित पानी के पीने से पालतू और जंगली जानवर मारे गए हैं। वहीं भूजल के प्रदूषित होने से ग्रामीणों को भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। 

गौरतलब है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 15 सितंबर, 2022 को स्थिति की जांच और मामले में रिपोर्ट सबमिट करने के लिए एक संयुक्त समिति गठित की थी। निरीक्षण के दौरान, समिति ने बिसाहड़ा गांव और उसके आसपास के विभिन्न क्षेत्रों में फेंके गए एस्बेस्टस शीट और कीचड़ की खोज की थी। उन्होंने कंपनी परिसर के पास कीचड़ और एस्बेस्टस शीट ले जा रहे एक ट्रैक्टर को भी देखा था, जो संभवतः पास के स्थान पर उसे डंप करने के लिए जा रहा था।

मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों के अधिकारों की रक्षा करें: बॉम्बे हाई कोर्ट

बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड के संचालन के संबंध में विवरण देने का निर्देश दिया है। इसमें लंबित मामलों की जानकारी, हल किए गए मामलों की संख्या और अन्य प्रासंगिक विवरण शामिल होने चाहिए। कोर्ट ने राज्य से इस जानकारी के सम्बन्ध में जवाबी हलफनामा भी मांगा है।

मामला उन रोगियों के स्वास्थ्य से जुड़ा है जो दशकों से मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों में रह रहे हैं। अपने आदेश में बॉम्बे हाई कोर्ट का कहना है कि पहले उन मरीजों पर ध्यान होना चाहिए, जिन्हें सरकारी और निजी प्रतिष्ठानों ने फिट घोषित कर दिया है और वो छुट्टी देने लायक हैं। हालांकि वो अभी भी उन संस्थानों में हैं, क्योंकि उनके परिवार से कोई उन्हें घर वापस लेने नहीं आया है।

कोर्ट का यह भी कहना है कि अदालत द्वारा 21 अप्रैल, 2023 को दिए आदेश के बावजूद, इस मामले में अभी भी कोई विश्वसनीय आंकड़े नहीं है। 10 जुलाई, 2023 को दिए बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार, राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण को इस बारे में जानकारी प्रदान करना सरकारी अस्पतालों के डीन और निजी अस्पतालों के निदेशकों का कर्तव्य है। उन्हें डिस्चार्ज किए गए उन मरीजों की संख्या के संबंध में आंकड़े प्रस्तुत करना आवश्यक है जिन्हें उनके परिवारों ने स्वीकार नहीं किया है या जिन्हें मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों में वापस लौटा दिया गया है।

बिजनौर में खनन मालिकों पर लगाया जाए जुर्माना, एनजीटी ने दिया निर्देश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) को हाजी मोहम्मदपुर कोटकादर गांव में खनन परमिट धारकों पर उचित पर्यावरणीय मुआवजा लगाने का निर्देश दिया है। यह जुर्माना इसलिए लगाया जा रहा है क्योंकि उन्होंने खनन गतिविधियों को स्थापना और संचालन के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) से आवश्यक परमिट नहीं लिया था।

कोर्ट के अनुसार एकत्र किए गए इस मुआवजे का उपयोग पर्यावरण की बहाली के लिए किया किया जाना चाहिए, विशेष रूप से नियमों और शर्तों के उल्लंघन के कारण होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए इसका उपयोग करने की बात कोर्ट ने कही है।

17 जुलाई 2023 को कोर्ट ने दिए अपने आदेश में कहा है कि बिजनौर में प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) की देखरेख में वृक्षारोपण का यह कार्यक्रम चलाया जाएगा।

गौरतलब है कि एनजीटी ने यह आदेश बिजनौर की नगीना तहसील के हाजी मोहम्मदपुर कोटकादर गांव के निवासी गौतम शर्मा की शिकायत पर आया है। उन्होंने कोर्ट में शिकायत की थी कि खोह नदी क्षेत्र में रेत और मुर्रम का अवैध खनन किया जा रहा है।

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