सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा, नक्शे से गायब हो जाएगा हिमाचल?

सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश में बाढ़, भूस्खलन और पर्यावरणीय विनाश के लिए इंसानी लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया है। साथ ही राज्य और केंद्र सरकार से तुरंत कार्रवाई करने को कहा है
शिमला; फोटो: आईस्टॉक
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सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण के लगातार बिगड़ते हालात पर केंद्र और राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कि सरकारें प्रदेश में हो रहे पारिस्थितिकीय विनाश को नजरअंदाज कर रही हैं और स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।

आदेश में कहा गया, "पिछले कई वर्षों से गंभीर पर्यावरणीय असंतुलन और खराब हालात की वजह से हिमाचल प्रदेश में भारी प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं। इस साल भी बाढ़ और भूस्खलन में सैकड़ों लोगों की मौत हुई और हजारों संपत्तियां तबाह हो गईं। ऐसा लगता है कि प्रकृति हिमाचल प्रदेश में हो रही गतिविधियों से नाराज है।"

जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने अपने आदेश में कहा, हिमाचल में प्राकृतिक आपदाएं मानवीय गतिविधियों का परिणाम हैं। पहाड़ों का दरकना, लगातार भूस्खलन, सड़कों का धंसना, मकानों का गिरना यह सब प्रकृति का नहीं, बल्कि इंसानों का किया धरा है।

अदालत ने निर्माण गतिविधियों पर जताई चिंता

सर्वोच्च अदालत ने हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा बनाई जा रही चार लेन सड़कों पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि इन सड़कों के निर्माण में भारी मशीनें और विस्फोटकों का इस्तेमाल कर पहाड़ों को काटा जा रहा है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है। इसी तरह, बड़े पैमाने पर बांध, जलाशयों और सुरंगों का निर्माण भी पर्यावरण पर भारी असर डाल रहा है।

बेंच ने कहा कि अनियंत्रित पर्यटन और उसके लिए हो रहा विकास भी पर्यावरण पर भारी बोझ डाल रहा है। साथ ही जलवायु परिवर्तन का असर भी अब हिमाचल पर साफ दिखाई दे रहा है।

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अब भी समय है, चेत जाए सरकार

सुप्रीम कोर्ट ने चेताया कि अब समय आ गया है कि हिमाचल प्रदेश सरकार जागे और सही दिशा में जल्द से जल्द जरूरी कदम उठाए। केंद्र सरकार की भी जिम्मेदारी है कि राज्य में पर्यावरणीय संतुलन और न बिगड़े और आपदाएं न हों। अदालत ने साफ कहा कि पर्यावरण की कीमत पर राजस्व कमाना ठीक नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई 2025 को हिमाचल सरकार से पूछा कि क्या उनके पास इन समस्याओं से निपटने के लिए कोई कार्ययोजना है और भविष्य में वह क्या कदम उठाना चाहती है। सरकार को इसका उचित जवाब दाखिल करने को कहा गया है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। मामले में अगली सुनवाई 25 अगस्त 2025 को होगी।

यह मामला उस याचिका से जुड़ा है जिसमें एक निजी होटल कंपनी, प्रिस्टीन होटल्स एंड रिजॉर्ट्स, ने तारा माता हिल को "ग्रीन एरिया" घोषित करने वाली राज्य सरकार की 6 जून 2025 की अधिसूचना को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर उस अधिसूचना को रद्द करने की मांग की थी।

यह अधिसूचना हिमाचल सरकार के टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग द्वारा जारी की गई थी, जिसके तहत शिमला योजना क्षेत्र में तारा माता हिल को ग्रीन बेल्ट घोषित किया गया और नई निजी निर्माण संबंधी गतिविधियों पर रोक लगा दी गई।

अधिसूचना में कहा गया कि इस ग्रीन एरिया में किसी तरह के नए निजी निर्माण की अनुमति नहीं होगी। केवल राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी के बाद ही पुराने भवनों का पुनर्निर्माण, मरम्मत या बदलाव की अनुमति दी जाएगी।

इसके साथ ही श्री तारा माता परिसर से जुड़ी किसी भी निर्माण गतिविधि को भी ट्रस्ट केवल राज्य सरकार की अनुमति से ही कर सकेगा।

गौरतलब है कि होटल कंपनी वहां एक रिजॉर्ट बनाना चाहती है, लेकिन अधिसूचना उसके रास्ते में बाधा बन रही है। हाईकोर्ट ने इस याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कंपनी को 'पीड़ित पक्ष' नहीं माना जा सकता क्योंकि उसने अभी तक हिमाचल प्रदेश में जमीन खरीदने का कोई अधिकार या स्वामित्व हासिल नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया है।

बेंच ने कहा कि जिस अधिसूचना को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी, उसका उद्देश्य उस क्षेत्र में निर्माण गतिविधियों को रोकना था। पीठ ने यह भी कहा, "ऐसे क्षेत्रों को ग्रीन एरिया घोषित करना सराहनीय कदम है, लेकिन अफसोस की बात है कि राज्य सरकार ने यह कदम बहुत देर से उठाया है, जब हालात पहले ही बिगड़ चुके हैं।"

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