
भारतीय वैज्ञानिकों ने एनर्जी स्टोरेज की दिशा में बड़ी सफलता हासिल की है। नागालैंड विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक दल ने ऐसा तकनीक खोजी है जिसकी मदद से सुपरकैपेसिटर के लिए बेहद किफायती और प्रभावी मटेरियल तैयार किया जा सकता है। इसकी मदद से न केवल पारंपरिक बैटरियों की तुलना में कहीं ज्यादा ऊर्जा स्टोर की जा सकती है। साथ ही उसे बेहद तेजी से चार्ज भी किया जा सकता है।
खास बात ये है कि यह तकनीक बेहद कम लागत में तैयार की जा सकती है, जो इसे आम लोगों और उद्योगों दोनों के लिए उपयोगी बनाती है।
गौरतलब है कि 'सुपरकैपेसिटर' अगली पीढ़ी के ऊर्जा स्टोरेज उपकरण हैं। ये पारंपरिक बैटरियों के मुकाबले न केवल ज्यादा ऊर्जा जमा कर सकते हैं, बल्कि साथ ही यह बेहद तेजी से चार्ज भी होते हैं। इस वजह से इनकी मांग भी तेजी से बढ़ रही है।
भले ही सुपरकैपेसिटर को भविष्य की ऊर्जा जरूरतों का बेहतर और असरदार समाधान माना जा रहा है। लेकिन इनकी कार्यक्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि इनके ‘इलेक्ट्रोड’ किस सामग्री से बने हैं। मौजूदा समय में इलेक्ट्रोड में उपयोग होने वाली महंगी सामग्री इनके रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है। लागत अधिक होने से इनका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है।
भारतीय शोधकर्ताओं ने इस चुनौती का समाधान निकालते हुए एक ऐसा तरीका खोजा है जिससे एमिनेटेड ग्रेफीन नामक विशेष सामग्री को सस्ते और आसान तरीके से तैयार किया जा सकता है। यह सामग्री रिड्यूस्ड ग्रेफीन ऑक्साइड पर आधारित है और इसमें बेहतरीन इलेक्ट्रोकेमिकल गुण मौजूद हैं, जिससे यह ऊर्जा भंडारण क्षमता को बेहतर बनाती है।
ऐसे में इससे बने सुपरकैपेसिटर डिवाइस ऊर्जा को तेजी से स्टोर और रिलीज कर सकते हैं, जिससे इलेक्ट्रिक वाहन, ग्रिड बैकअप और पोर्टेबल डिवाइस जैसे क्षेत्रों में क्रांति आ सकती है। देखा जाए तो दुनिया भर में स्वच्छ ऊर्जा की मांग लगातार बढ़ रही है। पारंपरिक बैटरियों में जहां चार्जिंग धीरे होती है। साथ ही इनकी क्षमता कम और लागत अधिक होती है।
प्रेस विज्ञप्ति में इस बारे में जानकारी देते हुए प्रोफेसर दीपक सिन्हा ने कहा, "यह नई सामग्री निर्माण की प्रक्रिया को आसान बनाती है और बेहतर काम करती है। इससे बना सुपरकैपेसिटर 2.2 वी का बड़ा इलेक्ट्रोकेमिकल विंडो, 50 Wh/kg से ज्यादा ऊर्जा स्टोर कर सकता है, और 10,000 बार चार्ज होने के बाद भी अपनी 98 फीसदी ऊर्जा को बनाए रख सकता है।
खास बात यह है कि यह बिना अमीनीकरण वाली सामग्री से पांच गुना ज्यादा ऊर्जा स्टोर करता है, जो इसे प्रभावी और व्यावसायिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाता है।"
भारत में मिल चुका है पेटेंट
वैज्ञानिकों की यह नई खोज भारत में स्वच्छ और पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा तकनीकों को बढ़ावा देने के राष्ट्रीय प्रयासों से मेल खाती है। यह तकनीक पारंपरिक तरीकों की तुलना में सस्ती और काफी तेज है। इससे न केवल उत्पादन की लागत घटेगी, बल्कि प्रक्रिया भी पारंपरिक तरीकों की तुलना में काफी तेज हो जाएगी। इससे तैयार सामग्री ने बेहतरीन इलेक्ट्रोकेमिकल गुण भी प्रदर्शित किए हैं।
इस तकनीक के प्रयोगशाला में किए शुरुआती परीक्षणों में अच्छे नतीजे मिले हैं और इसे भारतीय पेटेंट भी मिल चुका है। इसकी वजह से अब इसे व्यावसायिक स्तर पर उपयोग के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है।
अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता सूरज कुमार ने इस नए तरीके के फायदों को समझते हुए प्रेस विज्ञप्ति में कहा है, कि "पारंपरिक तरीके में उच्च तापमान, दबाव और लंबा समय लगता है, जिससे उत्पादन महंगा और जटिल हो जाता है।
इनमें ग्रेफाइट को पहले ग्रेफीन ऑक्साइड में बदलना होता है और फिर कई चरणों से इसे तैयार किया जाता है। लेकिन नया तरीका एक ही प्रक्रिया में ग्रेफाइट को सीधे ऐमीनेटेड ग्रेफीन में बदल देता है।“
यह अध्ययन नागालैंड विश्वविद्यालय के डीएसटी-इंस्पायर फेलो सुरज कुमार के नेतृत्व में किया गया है। इसमें उनका मार्गदर्शन नागालैंड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर दीपक सिन्हा और विश्वेश्वरैया टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, कर्नाटक के प्रोफेसर दिनेश रंगप्पा द्वारा किया गया है। इस अध्ययन में शोधकर्ता प्रियाक्षी बोरा, कुनाल रॉय और नागार्जुन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी से जुड़ी डॉक्टर नव्या रानी भी शामिल थी।
दीपक सिन्हा ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "पारंपरिक तरीकों की तुलना में, जो समय और संसाधनों की अधिक खपत करते हैं, यह नई प्रक्रिया सामान्य तापमान और दबाव पर काम करती है, जिससे यह ऊर्जा-दक्ष, तेज और बड़े पैमाने पर उत्पादन के उपयुक्त है।"
इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल आई साइंस में प्रकाशित हुए हैं।