एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में जिस तेजी से बिजली की मांग बढ़ रही है, उसके चलते आने वाले वर्षों में बिजली कटौती का सामना करना पड़ सकता है। इंडिया एनर्जी एंड क्लाइमेट सेंटर (आईईसीसी) ने अपनी नई टेक्निकल रिपोर्ट में खुलासा किया है कि 2027 तक भारत को शाम के समय 20 से 40 गीगावाट तक बिजली की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक यह स्थिति तब है जब वर्तमान में निर्माणाधीन सभी थर्मल और पनबिजली परियोजनाएं योजना के मुताबिक समय पर पूरी हो जाएं। बता दें कि भारत की योजना 2027 तक अक्षय ऊर्जा में 100 गीगावाट, थर्मल पावर क्षमता में 28 गीगावाट का इजाफा करने की है। मौजूदा समय में देखें तो भारत की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता 446.2 गीगावाट है। इसमें से 48.8 फीसदी ऊर्जा कोयला आधारित है। वहीं 19.2 फीसदी सौर, 10.5 फीसदी पवन ऊर्जा, 10.5 फीसदी पनबिजली पर निर्भर है, जबकि शेष अन्य स्रोतों जैसे न्यूक्लियर, तेल एवं गैस, बायोपावर आदि से प्राप्त हो रही है।
बिजली की बढ़ती मांग को लेकर रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें 2023 के दौरान सात फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी। देखा जाए तो यह वृद्धि वैश्विक रूप से बढ़ रही बिजली की मांग से कहीं ज्यादा है। आंकड़ों के मुताबिक वैश्विक स्तर पर बिजली की मांग में 2.2 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।
वहीं भारत में 2019 से 2024 के बीच पीक समय में बिजली की मांग को देखें तो इसमें सालाना साढ़े छह फीसदी की वृद्धि हुई है। मई 2019 में पीक समय में बिजली की मांग 182 गीगावाट थी, जो मई 2024 में 68 गीगावाट के इजाफे के साथ बढ़कर 250 गीगावाट पर पहुंच गई। रिपोर्ट के मुताबिक यदि यह प्रवत्ति जारी रहती है तो पीक समय में बिजली की मांग 2027 तक 50 से 80 गीगावाट तक बढ़ सकती है।
महामारी के बाद से देखें तो देश में बिजली की अधिकतम मांग केवल दो वर्षों में नाटकीय रूप से बढ़ी है। इन दो वर्षों में इसमें 46 गीगावाट की वृद्धि दर्ज की है। बता दें कि जहां मई 2022 में अधिकतम मांग 204 गीगावाट दर्ज की गई, वो मई 2024 में बढ़कर रिकॉर्ड 250 गीगावाट पर पहुंच गई थी।
उस दौरान अक्षय ऊर्जा उत्पादन 57 गीगावाट था। देखा जाए तो कहीं न कहीं महामारी के बाद आर्थिक विकास में आई तेजी और गर्मी की बढ़ती मार की वजह से बिजली की मांग में भी भारी बढ़ोतरी हुई है।
रिपोर्ट के मुताबिक 17 से 31 मई 2024 के बीच भीषण गर्मी के दौरान भारत की बिजली व्यवस्था भी गहरे दबाव में थी। हालांकि इस दौरान 140 गीगावाट से अधिक अक्षय ऊर्जा क्षमता (बड़ी पनबिजली को छोड़कर) मौजूद थी, लेकिन मई 2024 की शुरूआत में शाम के पीक समय के दौरान केवल आठ से दस गीगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन ही उपलब्ध था।
कयास लगाए जा रहे हैं कि बिजली की मांग में होती यह वृद्धि 2025 में भी जारी रह सकती है। अनुमान है कि इस वित्त वर्ष में बिजली की मांग छह फीसदी तक बढ़ सकती है। ऐसे में आईईसीसी ने रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि यदि देश में बिजली की मांग सालाना छह फीसदी से अधिक की दर से बढ़ती है तो देश में अगले चार वर्षों में बिजली की भारी कमी का सामना करना पड़ सकता है।
क्या सौर ऊर्जा में छुपा है समाधान
यही वजह है कि रिपोर्ट में बिजली की मांग और पूर्ति के बीच बढ़ती खाई को भरने के लिए तत्काल नीतिगत कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया है। सवाल यह है कि इस कमी को कैसे पूरा किया जा सकता है? इस बारे में रिपोर्ट का कहना है कि इसके लिए सौर ऊर्जा के साथ स्टोरेज क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान देना सबसे अच्छा विकल्प है।
आईईसीसी के मुताबिक सौर ऊर्जा संयंत्रों को नए थर्मल और हाइड्रो प्लांट्स की तुलना में कहीं तेजी से स्थापित किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रकाश डाला गया है कि 2027 तक 100 से 120 गीगावाट नई सौर ऊर्जा जोड़ने से, जिसमें 50 से 100 गीगावाट की भंडारण क्षमता चार से छह घंटे होगी, बिजली की कमी से निपटने में मदद मिल सकती है।
गौरतलब है कि जुलाई 2024 में सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) ने 600 मेगावाट बैटरी स्टोरेज के साथ 1200 मेगावाट सौर ऊर्जा के लिए नीलामी आयोजित की थी। इसमें जीतने वाली बोली 3.41 रुपए प्रति किलोवाट घंटा थी, जो दर्शाती है कि बैटरी स्टोरेज में नाटकीय रूप से कमी आई है। इसका मतलब है कि नए सौर ऊर्जा संयंत्र पहले से कहीं ज्यादा लागत प्रभावी हैं।
यही वजह है कि रिपोर्ट में जल्द से जल्द बड़े पैमाने पर स्टोरेज क्षमता में विस्तार करने के लिए नीतिगत समर्थन की आवश्यकता जताई है। इसमें वित्तीय प्रोत्साहन देने के साथ नियमों पर ध्यान देने की बात कही गई है।
रिपोर्ट में आशंका जताई है कि भारत में बिजली की मांग 2047 तक चार गुणा बढ़ सकती है। ऐसे में उपभोक्ता बिलों को कम करने और तेजी से होते आर्थिक विकास को सहारा देने के लिए बड़े पैमाने पर सस्ती अक्षय ऊर्जा और बेहतर भंडारण क्षमता की आवश्यकता होगी।