जाने कैसे 24 वर्षों में साकार हो सकता है भारत का ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने का सपना

ऊर्जा क्षेत्र में यह आत्मनिर्भरता पर्यावरण के साथ-साथ उपभोक्ताओं के लिए भी फायदेमंद होगी, इससे 2047 तक उपभोक्ताओं को 205.8 लाख करोड़ रुपए का फायदा पहुंचेगा
ग्रामीण भारत में बढ़ता सौर ऊर्जा का उपयोग; फोटो: आईस्टॉक
ग्रामीण भारत में बढ़ता सौर ऊर्जा का उपयोग; फोटो: आईस्टॉक
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स्वच्छ ऊर्जा की मदद से भारत का ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने का सपना पूरा हो सकता है। अनुमान है कि यदि सही दिशा में प्रयास किए जाए तो पर्यावरण अनुकूल तकनीकों की मदद से 2047 तक यह लक्ष्य हासिल हो सकता है। यह जानकरी अमेरिकी ऊर्जा विभाग की लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी द्वारा किए अध्ययन “पाथवेज टू आत्मनिर्भर भारत” में सामने आई है।

अपने इस अध्ययन में बर्कले लैब ने भारत में उन तीन क्षेत्रों का अध्ययन किया है जो ऊर्जा उपयोग पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं। इनमें ऊर्जा, परिवहन और उद्योग शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने से भारत को न केवल ऊर्जा के क्षेत्र में बल्कि आर्थिक और पर्यावरण रूप से भी फायदा होगा।

रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि इससे 2047 तक उपभोक्ताओं को बचत के रुप में सीधे तौर पर 205.8 लाख करोड़ रुपए का फायदा होगा। इसी तरह जीवाश्म ईंधन के आयात पर होने वाले खर्च में 90 फीसदी की कटौती के साथ हर वर्ष करीब 20 लाख करोड़ रुपए का फायदा पहुंचेगा। इतना ही नहीं इससे औद्योगिक क्षेत्र में भारत की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता में इजाफा होगा। साथ ही भारत समय से पहले ही शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल कर पाने में सक्षम होगा।

जैसा कि हाल के वर्षों में देखा गया है वैश्विक ऊर्जा बाजार में मूल्य और आपूर्ति की अस्थिरता, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर अतिरिक्त दबाव डाल सकती है, जिसके परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति में देशव्यापी वृद्धि हो सकती है।

आंकड़ों की मानें तो भारत दुनिया में ऊर्जा का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। वहीं जिस तेजी से देश में आर्थिक विकास हो रहा है उसके चलते आने वाले दशकों में भारत की ऊर्जा संबंधी मांग चौगुनी हो जाएगी। वर्तमान में भारत अपने 90 फीसदी तेल, 80 फीसदी औद्योगिक कोयले और 40 फीसदी प्राकृतिक गैस की जरूरत को पूरा करने के लिए विदेशी आयात पर निर्भर है। जो न केवल अर्थव्यवस्था, बल्कि पर्यावरण पर भी भारी दबाव डाल रहा है।

वहीं इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता और बर्कले लैब में वैज्ञानिक निकित अभ्यंकर का कहना है कि भारत इस मामले में पहले कभी भी इतना सशक्त नहीं रहा। भारत ने अक्षय ऊर्जा कीमतों में कमी का नया मुकाम हासिल किया है। साथ ही देश में दुनिया के कुछ सबसे बड़े लिथियम भंडार पाए हैं। उनके अनुसार यह भारत को लागत प्रभावी रूप से ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की ओर प्रेरित कर सकता है। जो आर्थिक और पर्यावरण के नजरिए से फायदेमंद है।

जलवायु लक्ष्यों को भी हासिल करने में मिलेगी मदद

अध्ययन के अनुसार भारत ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के राह में 2030 तक 500 गीगावाट से ज्यादा स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन क्षमता को स्थापित कर सकता है। सरकार ने पहले ही 2040 तक 80 फीसदी और 2047 तक 90 फीसदी ऊर्जा को साफ सुथरे स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है। इसी तरह 2035 तक देश में बिकने वाला हर नया वाहन इलेक्ट्रिक होगा, इसकी उम्मीद है।

इसी तरह भारी औद्योगिक उत्पादन आने वाले वक्त में काफी हद तक ग्रीन हाइड्रोजन और स्वच्छ ऊर्जा पर निर्भर हो सकता है। अनुमान है 2047 तक 90 फीसदी लोहा और स्टील, 90 फीसदी सीमेंट, और 100 फीसदी उर्वरक उत्पादन ऊर्जा के साफ सुथरे स्रोतों पर निर्भर होंगे। वहीं भारत अपनी लिथियम की अधिकांश जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने घरेलू स्रोतों पर निर्भर करेगा।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लिथियम इलेक्ट्रिक वाहनों और ग्रिड-स्केल बैटरी स्टोरेज सिस्टम के लिए जरूरी होता है। अनुमान है कि भारत को इसके लिए 2040 तक 20 लाख टन लिथियम की जरूरत होगी। गौरतलब है कि हाल ही में भारत में लिथियम का बड़ा भण्डार मिला था। केंद्र सरकार ने 9 फरवरी, 2023 को जम्मू कश्मीर में "पहली बार" 59 लाख टन लिथियम के भंडार मिलने की घोषणा की थी। ऐसे में भारत में उद्योगों को इलेक्ट्रिक व्हीकल और ग्रीन स्टील मैन्युफैक्चरिंग जैसी स्वच्छ तकनीकों की बढ़ाने की जरूरत है।

भारत दुनिया के सबसे बड़े ऑटो और स्टील निर्यातकों में से एक है। इसका सबसे बड़ा बाजार यूरोपियन देश हैं, जो पहले ही कार्बन तटस्थता और संभावित कार्बन सीमा समायोजन शुल्क के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर चुके हैं। ऐसे में भारत को भी इस मुद्दे पर ध्यान देने की जरूरत है।

इस मामले में बर्कले लैब में स्टाफ साइंटिस्ट अमोल फड़के ने जानकारी दी है कि भारत को अपने ऊर्जा के बुनियादी ढांचे के लिए आने वाले दशकों में 247 लाख करोड़ रुपए के निवेश की जरूरत है। ऐसे में उन ऊर्जा संसाधनों को बढ़ावा देना जो लागत प्रभावी होने के साथ-साथ पर्यावरण अनुकूल भी हैं, वो दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता के लिए बहुत ज्यादा मायने रखते हैं। ऐसे में भारत स्वच्छ ऊर्जा का विस्तार करने के लिए अपने मौजूदा नीतिगत ढांचे का फायदा उठा सकता है।

अध्ययन के मुताबिक भारत के पास स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाने का एक स्वर्णिम अवसर है क्योंकि इसके ऊर्जा संबंधी बुनियादी ढांचे का अभी भी एक बड़ा हिस्सा विकसित किया  जाना बाकी है। ऐसे में भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग, मौजूदा जीवाश्म ऊर्जा साधनों को स्वच्छ ऊर्जा में बदलने के लिए पंद्रह वर्षों का एक महत्वपूर्ण समय प्रदान करती है।

यह बदलाव सबसे ज्यादा प्रभावित समुदायों के साथ मिलकर करने के नजरिए से महत्वपूर्ण होगा। इससे देश में कार्यबल के लिए एक समान बदलाव सुनिश्चित होगा। ऊर्जा के क्षेत्र में इस बदलाव के लिए महत्वपूर्ण रूप से नीतिगत समर्थन की आवश्यकता होगी। इसमें स्वच्छ प्रौद्योगिकियों की तैनाती के आदेश से ग्रीन हाइड्रोजन जैसी उभरती हुई प्रौद्योगिकियों के लिए वित्तीय और नीतिगत समर्थन के साथ घरेलू विनिर्माण क्षमता में निवेश तक शामिल है।

इस बारे में बर्कले लैब और अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता प्रियंका मोहंती का कहना है कि, "भारत आने वाले दशकों में एक महत्वाकांक्षी ऊर्जा बदलाव की शुरुआत करेगा।" वहीं उनके अनुसार इस बदलाव के लिए जो ट्रांजिशन रनवे मौजूद है वो बड़े पैमाने पर स्वच्छ तकनीकों को रणनीतिक रूप से तैनात करने के साथ बदलाव की योजना तैयार करने के लिए समय प्रदान करता है।

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