
एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि अगर अक्षय ऊर्जा से जुड़े लक्ष्यों को सही नीतियों और निवेश के साथ जोड़ा जाए तो इससे न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था और पर्यावरण को फायदा होगा। बल्कि साथ ही करोड़ों लोगों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव आएगा।
अनुमान है कि इससे उन करोड़ों लोगों की जिंदगी बेहतर हो सकती है, जो आज भी गरीबी के भंवर जाल में फंसे हैं।
इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी), डेनवर यूनिवर्सिटी और ऑक्टोपस एनर्जी ने मिलकर तैयार किया है। इसका मकसद यह समझना था कि अगर साफ ऊर्जा के लिए सही समय पर कदम उठाए जाएं, और सरकारें उसमें समझदारी से निवेश करें, तो उसका कितना फायदा होगा?
रिपोर्ट के मुताबिक इस रणनीति को अपनाने से तीन बड़े फायदे मिल सकते हैं। इससे जहां बढ़ते उत्सर्जन में कमी आएगी। साथ ही आर्थिक विकास के साथ समाज के कमजोर तबके को भी फायदा मिलेगा।
रिपोर्ट में जो निष्कर्ष साझा किए गए हैं, उनके मुताबिक इस बदलाव से ऊर्जा क्षेत्र में 20.4 ट्रिलियन डॉलर की बचत हो सकती है। साथ ही वैश्विक जीडीपी में 21 फीसदी की बढ़ोतरी और 2060 तक प्रति व्यक्ति औसत आय में 6,000 डॉलर का इजाफा हो सकता है, लेकिन अगर हम पुराने ढर्रे पर ही चलते रहें, तो ऐसा मुमकिन नहीं होगा।
तीन परिदृश्य, एक स्पष्ट संदेश
अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने तीन अलग-अलग परिदृश्यों का तुलनात्मक विश्लेषण किया है।
इसमें पहली स्थिति है कि जैसा चल रहा है वैसा ही चलता रहे। मतलब की दुनिया बदलावों को अपनाने की जगह पुराने ढर्रे पर ही चलती रहे। इस परिदृश्य मे यदि दुनिया 2060 तक अपनी ऊर्जा सम्बन्धी जरूरतों के 50 फीसदी के लिए कोयला, तेल जैसे पारंपरिक जीवाश्म ईंधनों पर निर्भर रहती है तो धरती बेहद गर्म हो जाएगी।
अनुमान है कि इससे धरती का तापमान 2.6 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। इसका सीधा असर बिजली, पानी, खाना, शिक्षा, पोषण और स्वच्छता जैसे जरूरी विकास कार्यों पर पड़ेगा। आशंका है कि इसकी वजह से करोड़ों लोग गरीबी के गर्त में जा सकते हैं।
दूसरा रास्ता है, 'तेजी से स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ना', जैसा कि पहली वैश्विक समीक्षा में तय हुआ है कि देश तीन गुणा स्वच्छ ऊर्जा, जैसे सौर और पवन ऊर्जा का उपयोग करें। ऊर्जा की दोगुनी बचत करें और जीवाश्म ईंधन जैसे पारंपरिक ईंधनों को उपयोग धीरे-धीरे बंद कर दें तो इस स्थिति में 2060 तक दुनिया अपनी ऊर्जा जरूरतों के महज 12 फीसदी के लिए ही जीवाश्म ईंधन पर निर्भर होगी।
साथ ही यह राह धरती के तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने में भी मददगार हो सकती है। इससे पर्यावरण को भी राहत मिलेगी।
वहीं तीसरा विकल्प है साफ ऊर्जा का तेजी से विस्तार के साथ-साथ प्रणाली में निवेश को बढ़ावा देना और ऐसी नीतियों को शामिल करना जो सतत विकास के लक्ष्यों के अनुरूप हों। इस राह पर चलने से मौजूदा हालात की तुलना में सभी लोगों को बिजली और खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन की सुविधा मिलेगी।
कुपोषण मुक्त होंगे 14.2 करोड़ लोग
इस कदम से जहां 19.3 करोड़ लोगों को गरीबी के गर्त से निकला जा सकेगा। साथ ही 14.2 करोड़ लोग को भरपेट भोजन मिलेगा और कुपोषण घटेगा। इतना ही नहीं इन नीतियों को अपनाने से 55 करोड़ लोगों को साफ पानी और स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाएं मिल सकेंगी।
साफ ऊर्जा के लक्ष्यों को सही नीतियों और निवेश के साथ जोड़ना आर्थिक रूप से भी बेहत फायदेमंद हो सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक इस तीसरी राह पर चलने से जहां कुल 20.4 ट्रिलियन डॉलर की बचत संभव है। इसमें से 8.9 ट्रिलियन डॉलर का फायदा ऊर्जा की होती बचत से होगा, जबकि 11.5 ट्रिलियन डॉलर की बचत सस्ती साफ-सुथरी ऊर्जा के बढ़ते उपयोग से होगी।
यूएनडीपी की जलवायु परिवर्तन प्रमुख कैसी फ्लिन का कहना है, "आज दुनिया दोहरी चुनौती से जूझ रही है, एक ओर लोगों के जीवन को बेहतर बनाना, और दूसरी ओर पारंपरिक ईंधनों से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को कम करना। यह अध्ययन दर्शाता है कि साफ ऊर्जा का भविष्य संभव है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि हम स्वच्छ ऊर्जा से जुड़े लक्ष्यों को विकास से जुड़ी समावेशी नीतियों के साथ मिलाकर आगे बढ़ें।"
रिपोर्ट के मुताबिक पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए दुनिया को अपनी ऊर्जा प्रणाली में तेजी से बड़े बदलाव करने होंगे, ताकि वह ज्यादा स्वच्छ और दक्ष बन सके।
इसके साथ ही अनुकूलन, प्राकृतिक समाधान और आपदा झेलने की क्षमता जैसे जरूरी क्षेत्रों में भी काम करना होगा। ये सभी बदलाव एक व्यापक विकास ढांचे के तहत होने चाहिए, जहां स्वच्छ ऊर्जा का विस्तार लोगों और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए फायदेमंद हो।
क्या है मौजूदा स्थिति?
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि 2025 में स्वच्छ ऊर्जा में हो रहा निवेश रिकॉर्ड 2.2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। यह लगातार दूसरा साल है जब यह निवेश पारंपरिक (फॉसिल) ईंधनों से ज्यादा होगा। अब तक दुनिया में 4,448 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित की जा चुकी है। मतलब कि 90 फीसदी नई बिजली अब साफ ऊर्जा से आ रही है।
देखा जाए तो सौर, पवन और ऊर्जा भंडारण में आई तकनीकी प्रगति इस बदलाव को तेज कर रही है। हालांकि फिर भी दुनिया अपनी 70 फीसदी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए अब भी जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो 2024 में वैश्विक ऊर्जा की मांग में 2.2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जिसमें भले ही स्वच्छ ऊर्जा ने अहम भूमिका निभाई, लेकिन इस बढ़ोतरी के 54 फीसदी हिस्से की पूर्ति अब भी जीवाश्म ईंधन से की गई है। इसी दौरान ऊर्जा दक्षता में सुधार की गति भी धीमी रही।